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Showing posts from 2008

पढ़ती थी तूम मेरे लिये किताबें

पढ़ती थी तूम मेरे लिये किताबें अच्छी किताबें,सच्ची किताबें, मेरा होता था सिर तेरी आगोश मे तेरे बगल में होती थी किताबें। हंसती थी तू उन किताबों के संग रोती थी तू उन किताबों के संग, कई रंग बदले किताबों ने तेरे कई राज खोले किताबों ने तेरे। जब किताबों से होकर गुजरती थी तुम चमकती थी आंखे,और हटाती बालें, शरारतों पर मुझको झिड़कने के बाद फिर तेरी आंखों में उतरती थी किताबें। होठों से तेरी झड़ती थी किताबें मेरे अंदर उतरती थी किताबें, डूबी-डूबी सी अलसायी हुई हाथों में तू यूं पकड़ती थी किताबें । चट्टानों से अपनी पीठ लगाये हुये सुरज ढलने तक तूम पढ़ती थी किताबें, अंधरे के साया बिखरने के बाद बड़े प्यार से तुम समेटती थी किताबें । उलटता हूं जब अपनी दराजों की किताबें हर किताब में तेरा चेहरा दिखता है, चल गई तुम, पढ़ कर मेरी जिंदगी को मेरे हिस्से में रह गई तेरी किताबें। शब्द गढ़ता हूं मैं तेरी यादों को लेकर तेरी यादों से जुड़ी हैं कई किताबें, मेरे प्यार का इन्हें तोहफा समझना तेरी याद में लिख रहा हूं कई किताबें।

थिंकर की बीवी

क्या सभ्यता के विकास की कहानी हथियारों के विकास की कहानी है ? इनसान ने पहले पत्थरों को जानवरों के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया,फिर लोहे को और अब आणविक शक्तियों से लैस है,यह क्या है? हथियारों के विकास की ही तो कहानी है !!! पृथ्वी पर से अपने वजूद को मिटाने के लिए इनसान वर्षो् से लगा हुआ है। थिंकर की आंखे दीवार पर टीकी थी, लेकिन उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। दीमाग में एक साथ कई बातें घूम रही थी। गैस बंद कर देना, दूध चढ़ा हुआ है,बाथरूम से पत्नी की आवाज सुनाई दी। गैस चूल्हे की तरफ नजर पड़ते ही उसके होश उड़ गये। सारा दूध उबल कर चूल्हे के ऊपर गिर रहा था। सहज खतरे को देखते हुये उसने जल्दी से चूल्हा बुताया और गिरे हुये दूध को साफ एक कपड़े से साफ करने लगा। लेकिन किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया और बीवी उसके सिर पर आकर खड़ी हो गई। तुम्हारी सोचने की यह बीमारी किसी दिन घर को ले डूबेगी। तुम्हारे सामने दूध उबल कर गिरता रहा और तूम्हे पता भी नहीं चला...हे भगवान मेरी किस्मत में तुम्ही लिखे थे। घर में दो छोटे-छोटे बच्चे हैं..अब खड़ा खड़ा मेरा मूंह क्या देख रहे हो। जाओ, जाकर दूध ले आओ। बीवी की फटकार

युद्ध ! युद्ध !! युद्ध !!!

बहुत बकबास सुनाई दे रहा है चारो तरफ, युद्ध युद्ध युद्ध ! क्या होता है युद्ध? तीन घंटे की फिल्म,ढेर घंटे का नाटक, ट्वेंटी-ट्वेंटी का क्रिकटे मैच, कविता पाठ ? क्या होता है यह युद्ध? युद्ध में मौत तांडव करता है और खून बहती है, गरम-गरम। इनसानी लोथड़े इधर से ऊधर बिखरते हैं और धरती लाल होती है। युद्ध ब्लॉगबाजी नहीं है। एक बार में सबकुछ ले उड़ेगी। जमीन थर्रायेगा, आसमान कांपेगी और हवाएं काली हो जाएगी, क्योंकि दुनिया परमाणु बम पर बैठी हुई है। लोग सांस के लिए तरसेंगे। चलो माना कि रगो में लहू दौड़ रही है। और जब लहू उफान मारेगी तो युद्ध का उन्माद खोपड़ी पर चढ़ेगा ही। कोई समझा सकता है कि युद्ध का उद्देश्य क्या है??? अब यह मत कहना कि पाकिस्तान को सबक सीखाना है। यह सुनते-सुनते कान पक चुका है। जिस वक्त पाकिस्तान का जन्म हो रहा था, उसके बाद से ही उसे सबक सीखाने की बात हो रही है। अब यह सबक सीखाने का तरीका क्या होगा ? सेना लेकर पाकिस्तान के अंदर घुस जाना और कत्लेआम करते हुये इस्लामाबाद की ओर बढ़ना ? यह सबकुछ करने में कितना समय लगेगा ? सेना में जमीन स्तर पर रणनीति तैयार करने वालों से पूछों। वो भी दावे

न तुमने निभाई,न हमने निभाया

कसमें खाई थी संग-संग हमने न तुमने निभाई,न हमने निभाया । एक अनजानी डगर पे संग चले थे मीलों न तुझे होश थी,न मैं कुछ जान पाया। दुरियों के साथ मिटते गये फासले मैं जलता गया,औ तुम पिघलती गई। तुझे आरजू थी,मेरी नम्र बाहों की मुझे आरजू थी तेरी गर्म लबों की। दामन बचाना मुश्किल हुआ तूम बहती रही, हम बहकते रहे। टपकता रहा आंसू तेरी आंखों से मेरी रातों की नींद जाती रही । चांद तले हम संग सफर में रहे न मैं कुछ कहा, न तू कुछ कही । तेरी धड़कन मेरी सांसों में घुली खामोश नजरों ने सबकुछ कहे । नये मोड़ पर नई हवायें बही मैं भी ठिठका,और तू भी सिहरी । छुड़ाया था दामन हौले से तुमने मैंने भी तुझको रोका नहीं था । हवाओं के संग-संग तू बह चली थी घटाओं में मैं भी घिरता गया था। बड़ी दूर तक निकलने के बाद खाली जमीं थी,खुला आसमां था। गुजरे पलों को समेटू तो कैसे आगे पथरीला रास्ता जो पड़ा है ? तुझे भी तो बढ़ना है तंग वादियों जमाने की नजरे तुझपे टिकी है मोहब्बत की मर्सिया लिखने से पहले दफन करता हूं मै तेरी हर वफा को तुमसे भी ना कोई उम्मीद है मुझको लगाये न रखो सीने से मेरी खता को कसमें खाई थी संग-संग हमने न तुमने निभाई, न हमन

कामांध समूह की लौंडी है सेक्यूलरिज्म

इंग्लैंड के एक राजा परकामुकता सवार होती है, एक महिला को पाने की जिद। इसायित को संगठन के तौर पर इस्तेमाल कर रहा एक गिरोह उसकी राह में खड़ा होता है. हर तरह की तिकड़मबाजी और घूसखोरी चलती है,लेकिन अंदर खाते। नीति, कूटनिती को ताक पर रखकरवह राजा आगे बढ़ता है इसायित की चाबूक से त्रस्त जनताराजा के पक्ष में कमर कसती है। धर्म को राजनीति से बेदखल करते हुये राजा अपनी जिद पूरा करता है.. अपनी मन पसंद महिला को अपनी बाहों में भरता है, वैधानिक तरीके से। और इसके साथ ही धर्म पर राज्य की विधि स्थापित होती है और यहीं से सेक्यूलरिज्म का बीज छिटकता है. सेक्यूलरिज्म एक कामांध राजा के दिमाग की उपज है.. .और अब इसका इस्तेमाल सत्ता के लिए कामांध समूह कर रहा है..अनवरत। विज्ञान कहता है,कोई भी चीज निरपेक्ष नहीं होती सेक्यूलरिज्म कामांध समूह की लौंडी है, बजाते रहो.

इसे मैंने भी चुराई थी

वो रसियन जूते थे, भूरे-भीरे। उनके फीतों में लोहे के बोल्ट लगे थे। दाये पैर के जूते के मुंह पर एक बड़ा सा छेद था, जॉन बनार्ड शा की काली कोट की तरह। याकोब उन जूतों से बेहद प्यार करता था। उन जूतों ने दुनियाभर की घाटियों में उसका खूब साथ दिया था। महानगरों की सड़कों पर चलने में उसे मजा नहीं आता था। याकोब से कई बार दोनों जूतों ने एक साथ शिकायत किया था कि महानगरों की हवायें उसे उच्छी नहीं लगती, उन्हें खुली हवायें चाहिए। लेकिन याकोव के सिर पर महानगरों में रहने की जिम्मेदारी थी, और इस जिम्मेदारी से वह चाहकर भी नहीं भाग सकता था। एक दारूखाने में उसे रात गुजरानी थी,छककर शराब पीते हुये, चार लोगों के साथ। बड़ी मुश्किल से इस बैठक में शामिल होने की उसने जुगत लगाई थी। चेचेन्ये में एक थियेटर को कैप्चर करने की योजना पर बनाई जा रही थी। याकोब जमकर उनके साथ पीता रहा। सुबह उसके जूते गायब हो चुके थे। उनचारों में से किसी एक ने चुरा लिया था। वे जूते उससे बातें करती थी, जंगलों में, घाटियों में, दर्राओं में, नदियो में। कमांडर, क्या सोंच रहों हों, एक साथी ने पूछा। अपनी जूतों के विषय में, वो तूम्हारे पैरों मे

चोरी के मामले में इस्लाम वाला कानून सही

ले लोटा, इ बतवा तो बिल्कूल सही है कि यहां लोग बिजली के तरवे काट लेता है,और उसको गला-गुलाकर के बेचकर दारू पी जाता है या सोनपापड़ी खा जाता है। इहां के अदमियन के कोई कैरेक्टरे नहीं है। लगता नहीं कि बिना डंडा के ये सुधरेंगा सब. मेरे गंऊआ में एक पहलवान जी थे, किसी को भी दबाड़ देते थे। उन्हीं की कृपा से आज तक मेरे गंऊआ बिजली नहीं आयी, जबकि सरकार ने सबकुच पास कर दिया था, यहां तक की तार और पोल भी गिर गये थे। पहलवान जी की अपनी समस्या थी। अपनी बीवी की जब और जैसे इच्छा होती थी भरमन कुटाई करते थे। उनकी कुटाई से त्रस्त आकर वह कई बार कुइंया में छलांग मार चुकी थी, लेकिन हर बार पहलवान जी रस्सी डोल डालकर उसे निकाल लेते थे, और फिर कूटते थे, दे दना, दे दना, दे दना दन। जब गांव में बिजली आने की बात हुई तो किसी ने पहलवान जी के कान में यह बात डाल दी कि गांव में जितनी भी औरतों की कुटाई हो रही है वो बिजली का बहुत बेसब्री से इंतजार कर रही हैं, क्योंकि बिजली के तार में लटककर मरना आसान है। फिर क्या था पहलवान जी ने बिजली के खिलाफ शंख फूंक दिया। कसकी मजाल जो पहलवान जी से पंगा ले....गांव वालों ने समझाया, इंजीनियरों

एक धारधार हथियार के तौर पर उभर रहा है ब्लॉग

डॉ.भावना की कविता पर प्रतिक्रया देते हुये संतोष कुमार सिंह ने एक सवाल उठाया है कि भारत की कोख से गांधी, नेहरू, पटेल और शात्री जैसा नेता क्यों पैदा नहीं हो रहे है। अन्य कई ब्लॉगों पर की गई टिप्पणियों में भी बड़ी गंभीरता के साथ भारत की वर्तमान व्यवस्था पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं। एक छटपटाहट और अकुलाहट ब्लॉग जगत में स्पष्टरूप से दिखाई दे रहा है। विभिन्न पेशे और तबके के लोग बड़ी गंभीरता से चीजों को ले रहे हैं और अभिव्यक्त कर रहे हैं। डा. अनुराग, ज्ञानदत्त पांडे, ताऊ रामपुरिया, कॉमन मैन आदि कई लोग हैं, जो न सिर्फ अपने ब्लॉग पर धुरन्धर अंदाज में की-बोर्ड चला रहे हैं, बल्कि अन्य ब्लॉगों पर पूरी गंभीरता के साथ दूसरों की ज्वलंत बातों को पूरी शालीनता से बढ़ा भी रहे हैं। प्रतिक्रियाओं में चुटकियां भी खूब ली जा रही हैं, और ये चुटकियां पूरी गहराई तक मार कर रही हैं। सुप्रतिम बनर्जी ने एक सचेतक के अंदाज में अभी हाल ही में एक आलेख लिखा है दूसरो का निंदा करने का मंच बनता ब्लॉग। यानि ब्लॉगबाजी को लेकर हर स्तर पर काम हो रहा है, और लोग अपने खास अंदाज में बड़ी बेबाकी से सामने आ रहें हैं। अभिव्यक्ति का द

ये सच दिखाते हैं,हर कीमत पर

सूनो, सूनो, सूनो कान खोल कर सूनो दिल थाम कर सुनो टीवी चैनलों के खिलाफ देश में एक गहरी साजिश चल रही है. आतंकियों ने इनके कनपटे पर बंदूक ताना था,लेकिन मारा नहीं क्योंकि ये प्रेस-प्रेस चिल्लाये थे . इनके अगल-बगल से गोलियां गुजरती रही लेकिन सीने से एक भी गोली नहीं टकरायी क्योंकि गोलियों को पता था ये प्रेस है. सड़कों पर फटा ग्रेनेड के छींटे इनके कैंमरे से होते हुये,न्यूजरूम में पहुंच गये दो सकेंड के लिए थम गई इनकी सांसे साठ घंटे तक ये लोग डटे रहे टीआरपी के लिए नहीं,पत्रकारिता के लिए खूब की पत्रकारिता, आतंकवाद के कवरेज पर इन्हें गर्व है अपनी जान जोखिम में डालकर इन्होंने सच परोसा इन्हें किसी की सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है क्योंकि ये सच दिखाते हैं,हर कीमत पर। सरकार में बैठे हुये लोगों ने इनकी सराहना की है ...जिम्मेदारी के साथ काम किया इन लोगों ने. अपनी पीठ थपथपाने के बाजाये भाई लोग, शीशे के कमरे से बाहर निकलो आम आदमी की आंखों में झांको और पता लगाओ कौन से सवाल तैर रहे हैं उनकी आंखों में मैं बताता हूं 12 घंटे तक एक ऑफिस में काम करने वाले एक व्यक्ति का सवाल सूनो यह मासूम सवाल.... यदि मेरी अंतोनो

घंटा न कुछ उखड़ेगा डेमोक्रेसी का

सलाखों के पीछे बंद सुकरात से पहरे पर खड़े एक सैनिक ने कहा था, तुम इस जेल से भाग जाओ,क्योंकि मुझे पता हैं कि ये लोग जघन्य अपराध कर रहे हैं। मुस्कराते हुये सुकरात ने जवाब दिया था, लोकतंत्र के इन पहरेदारों को पता होना चाहिए कि मेरी मौत से यह डेमोक्रेसी और मजबूत होगी। सुकरात की मौत पूरी तरह से डेमोक्रेटिक थी मतदान हुये थे---मौत के पक्ष और विपक्ष में। अंतिम फैसला के बाद सुकरात ने विष के रूप में अपने लिए मौत का प्याला खुद चुना था ---------एक सच्चे डेमोक्रेट की तरह। बंदुक के साये में घूमने वाले नेताओं की रखैल नहीं है डेमोक्रेसी... इसके नाम पर अब और दलाली और धंधेबाजी नहीं, बस बहुत हुआ। डेमोक्रेसी मेरी बीवी है, जो लड़ती है, झगड़ती है और मुझे प्यार करती है। और मैं भी इससे प्यार करता हूं, डेमोक्रेसी को मैं हाथ में विष का प्याला लिये सुकरात के मुस्कराते हुये होठों पर देखता हूं और उनलोगों के चेहरे को भी पहचानता हूं जो डेमोक्रेसी को उसी के नाम पर जहर दे रहे हैं इन चेहरों को नोंचने से घंटा न कुछ उखड़ेगा डेमोक्रेसी का।

अब तुम्हारे होने का अहसास नहीं होता

(अपनी प्रेयसी के लिए) अब तुम्हारे होने का अहसास नहीं होता तुम्हारी आंखों से टपकती थी जिंदगी और अधखुले होठों से फूल बरसते थे तुम्हारे गेसुओं की महक मुझे खींच ले जाती थी परियों के देश में रुनझून रुनझून सपने,गहरे चुंबन फिजा में तैरती हुई सर्द हवायें और इन सर्द हवाओं में तेरी सांसों की गरमी रफ्ता-रफ्ता बढ़ती हुई जिंदगी और उफान मारता प्यार का सैलाब हां दोस्त,तुने मुझसे बेपनाह मोहब्ब्त की और मैंने भी तुझे हर ओर से समेटा लेकिन अब तुम्हारे होने का अहसास नहीं होता ताज की गुंबदों से निकलने वाली लपटों ने मेरे जेहन में तेरे वजूद का स्थान ले लिया है गगनगनाकर निकलती हुई गोलियां और लोगों की चीखे सड़कों पर फैले हुये खून,और सिसकियों ने तुझे मेरे दिल से बेदखल कर दिया है मैं चाहता हूं, तू एक बार फिर सिमटे मेरी बाहों में और एक बार फिर मैं तेरी गहराइयों में डूबता जाऊं लेकिन आने वाले समय की पदचाप सुनकर मैं ठिठक जाता हूं,और शून्य में निहारता हूं फिर रिसने लगता है खून मेरी आंखों से तुम डूबती थी मेरी आंखों में,यह कहते हुये कितनी अच्छी और सच्ची है तुम्हारी आंखे क्या मेरी आंखों से रिसते हुये खून को तुम देख पाओ

वो दढ़ियल पत्रकार भाई क्या बोलता है

बाप अपुन जो भी बोलेगा बिंदास बोलेगा,क्या ? वो क्या बोलता है, किसी को मिर्ची लगती है तो लगे। साला तुम नेता लोग अपुन लोग का हड्डी तक तक को चूस गया है। अपुन तो पब्लिक है, कुछ भी बोल सकता है , और क्यों नहीं बोलने का ? साला तुम लोग चुनाव कराता है, देश में दंगा करता है ऊधर संसद में जाकर नंगा होता है, अपुन सब समझता है, लेकिन तेरे का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। लेकिन आपुन को भौंकने से तू नहीं रोक सकता है। आपुन भौंकेगा और खूब जोर जोर से भौकेगा और आपुन के साथ-साथ अखा पब्लिक भौंकेगा, तेरे को मालूम होना मांगता कि जब एक कुत्ता भौंकता है तो उसके साथ साला अखा कुत्ता भौंकता है। साला इस बार सड़को पर दिखाई देगा ना, तो अपुनलोग तेरे को काटेगा भी, ये देख,एसा दांत गड़ाएगा, बिंदास। वो दढ़ियल पत्रकार भाई क्या बोलता है, साला तुमलोग सुरक्षा में घूमता है, ब्लैक कैट लेकर,लेकिन अपुन लोग डॉग है, डॉग ! जब आपुन लोग भौंकेगा तो सारा ब्लैक कैट भाग जाएगा। यईच बात है। और साला तेरे को काटेगा भी, दौड़ा-दौड़ा कर काटेगा। तुम लोग साला हलकट है, हलकट। अपुन साला कमर तोड़ करके काम करता है, चोरी नहीं करता,हराम की नहीं खाता। दा

आतंकवाद का जूठन खाकर मोटी होती मीडिया

यदि गौर से देखा जाये तो आतंकवाद और मीडिया दोनों विश्वव्यापी है और विश्व व्यवस्था में दोनों के आर्थिक तार एक दूसरे से जुड़े हुये है। मीडिया को खाने और उगलने के लिए दंगे, फसाद और युद्ध चाहिये और इसी जूठा भोजन के सहारे मीडिया पल बढ़ कर मोटी होती है। आतंकवाद एक तरफ जहां शहरों और लोगों को निशाना बनाकर अपने संगठनों के लिए अधिकतम संशाधनों की जुगाड़ करता है वहीं मीडिया आतंकवाद के जूठे को परोसकर उसे महिमामंडित करते हुये अपने लिए अधिक से अधिक से कमाई करती है। वैश्विक स्तर पर दोनों एक दूसरे को पाल पोस रहे हैं, हालांकि इस जुड़ाव का अहसास मीडिया को नहीं हैं और हो भी नहीं सकता, क्योंकि मीडिया के पास ठहरकर सोचने का वक्त कहां हैं। वैसे मीडिया में आर्थिक मामलों (मैनेजमेंट)से जुड़े लोगों को इस बात का पूरा अहसास है कि मुंबई में हुये हमलों के बाद मीडिया में बूम आ रहा है और इसी तरह के दो चार हमलें और हो गये तो कम से कम मीडिया का धंधा तो आर्थिक मंदी के दौर से निकल हीजाएगा। मीडिया एक संगठित उद्योग की तरह पूरी दुनिया में काम कर रही है। मुंबई हमले के बाद मीडिया के शेयरों में उछाल की खबरें आ रही हैं। चूंकि

मुंबई पुलिस का मोबाईल संदेश

मुंबई पुलिस की ओर से एक मोबाइल संदेश जारी किया गया है जो इस प्रकार है...एसएमएस के जरिये स्कूलों और अस्पतालों पर संभावित आतंकी हमलों को लेकर अफवाह फैलाये जा रहे हैं। हम सभी शहरी को शहर की सुरक्षा के प्रति आश्वस्त करते हैं। शहर पूरी तरह से सुरक्षित है। चिंता न करे और अफवाह को फैलने से रोके। यदि आतंकियों के विषय में इस तरह के एसएमएस किसी के पास आते हैं तो उन्हें इधर-उधर फेंकने के बजाय, प्रोपर ऑथोरिटी तक पहुंचाना बेहतर होगा, संदेश को इधर-उधर फेंकना या चेपना एक गैरजिम्मेदार कदम है। यदि दिल्ली में इस तरह का कोई एसएमएस दौड़ रहा है तो अधिक सावधानी की जरूरत है। यदि वहां की ऑथोरिटी पर यकीन नहीं है तो खुद जाकर देखें....राष्टीय सुरक्षा के नाम पर इतनी ड्यूटी तो की ही जा सकती है, लेकिन प्लीज पब्लिक फोरम पर एसी खबरे न प्रेषित करें। मुंबई में एसे एमएमएस पिछले कई दिनों से हवा में तैरते हुये मोबाईल सेट पर धावा बोल रहे हैं। स्टाप इट !!!

डर गये है गांधी

मुंबई पर आतंकी हमले के बाद गांधी फिल्म में गांधी की भूमिका के लिए ऑस्कर पुरस्कार हथियाने वाले बेन किंग्सले डरे हुये हैं और इसी कारण वह अपनी फिल्म बुद्ध की शूटिंग को टालने की बात कर रहे हैं। बुद्ध फिल्म की शूटिंग अगले साल भारत में किये जाने की योजना बहुत पहले से बन रही थी और इस फिल्म से जुड़ी पूरी यूनिट भारत आने की तैयारी में थी। ब्रिटिश इंडेपेंडेंड फिल्म अवार्ड में एक रेडियो से बातचीत के दौरान मुंबई में आतंकी हमले से हैरान परेशान बेन किंग्सले ने कहा है कि इस घटना से हमारा प्रोजेक्ट बूरी तरह से प्रभावित हुआ है और फिलहाल हम भारत नहीं जा रहे हैं। अब प्रोजेक्ट को भारत में शूट करने का निर्णय हमारे फायनेंसर और प्रोड्यूसर करेंगे। यह फिल्म उद्योग पर आतंकवाद की एक बहुत बड़ी मार है। विश्वव्यापी आर्थिक मंदी से मुंबई का फिल्म उद्योग पहले से चरमराया हुआ है। बेन किंग्सले भारत में बुद्ध फिल्म भी शूटिंग के अलावा यहां पर और भी दो फिल्मों की शूटिंग की योजना बना रहे थे। अपनी अगली दो फिल्मों के विषय में फिलहाल वह कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं हैं। इस मामले पर कुछ बोलने की स्थिति में तो अभी गांधी जी

फ्रेश लीडरशीप की बात कर रहे हैं आमिर खान

आमीर खान अपने ब्लॉग पर वर्तमान हालात को लेकर गंभीर चिंता करते हुये दिख रहे हैं। फिल्मी दुनियां में काम करने वाले लोग जानते हैं कि आमीर एक गंभीर इनसान हैं और कई बार बड़ी बेबाकी से सार्वजिनक जीवन पर टिप्पणी करने के कारण उनकी खूब टांग खीचाई भी हो चुकी है। उनको लेकर लोगों की चाहे जो अवधारणा हो,लेकिन उनकी बातों को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। वे देश में आतंकवाद के लिए सीधेतौर पर प्रमुख राजनीतिक दलों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वह लिखते हैं कि मुंबई में जो कुछ भी हुआ उसके लिए सीधे तौर पर नपुंसक कांग्रेस जिम्मेदार है। इसके पहले इंडियन एयरलायंस 814 के अपहरण के समय भाजपा ने तीन आतंकियों को छोड़कर आतंकवाद को लेकर अपनी नपुंसकता जाहिर कर चुका है। इन घटनाओं से वह सबक सीखने की बात करते हुये कहते है कि आतंकवादियों से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जाना चाहिए। सभी आतंकियों को यह स्पष्ट संदेश दे देना चाहिए कि भारत उनसे किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करेगा। आगे वह लिखते हैं कि भविष्य में मुझे परिवार के साथ यदि आतंकी बंधक बना लेते हैं तो मुझे छुड़ाने के लिए उनसे किसी तरह का समझौता नहीं किया जाना चाहिए। उन्

पत्नी का अंतिम मिस कॉल

दो दिसंबर को इंग्लैंड से निकलने वाले एक अखबार सन में कवर पेज पर एक तगड़ी खबर छपी है। इस खबर में कहा गया है कि आजम ने बताया है कि उसे किस तरह आर्डर अपने आका से दिये गये थे। उसे दो मकदस दिये गये थे। पहला, किसी गोरे को उड़ाना, दूसरा ताज को जलाना। गोरे में खासतौर पर अमेरिकन और ब्रिटेनवासियों पर जोर दिया गया था। यह खबर चीख-चीख कर यह कह रही है कि शैतानों का पहला टारगेट अमेरिका और इंग्लैंड के लोग थे,चूंकि युद्ध क्षेत्र भारत था इसलिए इसलिए यहां पर उत्पात मचाना जरूरी था, और दूसरा टारगेट- ताज-को हिट करने के बाद उन्होंने यहां पर जमकर उत्पाद मचाया। एक तरह से अपने दोनों टारगेटों को हिट करने के बाद वे भारत के साथ गिल्ली डंडा खेल रहा थे। यह एक सफल हमला है, भारत पर नहीं बल्कि अमेरिका और ब्रिटेन पर। भारत तो सिर्फ रणभूमि है। रणभूमि के तौर पर इसका चयन काफी सोंच समझ कर किया जा रहा है। अभी कुछ देर पहले असम भी फिर एक विस्फोट की खबर मिली है,यह गिल्ली डंडा का खेल नहीं है तो और क्या है। निक पार्कर मुंबई से अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं कि मुंबई पर हमला करने वाले गिरोह में दो लड़को संबंध इग्लैंड के लीड्स से है। इ

सभीको सलाम कर.. अपने माई बाप हैं

ये जमूरे हां उस्ताद जो पूछूंगा वो बोलेगा बालूंगा तो बता मेरे हाथ में क्या है डुगडुगी बजाऊ बजाओ उस्ताद डुग डुग डुग डुग डुग... तो भाइयों तमाशा शुरु होता है...चल जमूरे सभी लोगों को सलाम करे...ये अपने माई बाप है....हम तमाशा दिखाते हैं और ये हमारा पेट पालते हैं.. ...लेकिन तुम्हारी डुगडुगी सुनकर तो कोई नहीं आया... ...जमूरे ये क्या हो रहा है, समझ में नहीं आ रहा... ...कोई आएगा कैसे उस्ताद। अब तमाशा तो ऊपर हो रहा है.... ... क्या मतलब... उस्ताद, टेलीविजन वाले अब रियल ड्रामा दिखा रहे हैं, नेता लोग शहीदों को कुत्ते बता रहे हैं..पाटिल जा रहे हैं, चिंदबरम आ रहे हैं..देशमुख अपने बेटे का फिल्मी कैरियर बनाने के लिए रियल लोकेशन खोज रहे हैं...ये सारा ड्रामा पूरा देश रखा है उस्ताद...अब हमें कौन देखेगा... ...जमूरे यह तू क्या बोले जा रहा है.... ....मुंबई में आतंकियों ने जो ड्रामा दिखाया है उसके आगे सबकुछ फीका है...और रहा सहा कसर हमारे हमारे हाई प्रोफाइल पर्लनाल्टी लोग पूरा कर कर दे रहे हैं.... ...अरे जमूरे मैंने तुझे ये सब तो नहीं सिखाया था, कहां से सीखा..... उस्ताद दुनिया चांद पर नगर बसाने जा रही है....

.....इससे कुछ भी कम राष्ट्रीय बेशर्मी है

मुंबई में समुद्र के रास्ते कितने लोग घुसे थे इस बात का तो अभी तक पता नहीं चल पाया है,लेकिन हथियार से खेलने वाले सभी शैतानों को ध्वस्त कर दिया गया है। हो सकता है कुछ शैतान बच निकले हो और किसी बिल में घुसे हो। हर पहलु को ध्यान में रखकर सरकारी तंत्र काम कर रहा है। बहुत जल्द मुंबई पटरी पर आ जाएगी। यहां की आबादी की जरूरते मुंबई को एक बार फिर से सक्रिय कर देंगी। फिर से इसमें गति और ताल आ जाएगा। लेकिन क्या अब हम आराम से यह सोच कर बैठ सकते हैं कि गुजरात, बंगाल, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब आदि राज्यों का कोई शहर नहीं जलेगा या नहीं उड़ेगा? आम आदमी रोजी-रोटी के चक्कर में किसी शहर के सीने पर किये गये बड़े से बड़े जख्म सबसे जल्दी भूलता है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वाले ब्रेकिंग खबरों की होड़ में मस्त हो जाते हैं, और तब तक मस्त रहते हैं जबतक दुबारा इस तरह की घटना किसी और शहर में नहीं घट जाती, नेता लोगों के सिर पर तो पूरा देश ही, क्या क्या याद रखेंगे ???? पढ़े-लिखे लोगों की अपनी सिरदर्दी है, कोई इस ऑफिस में काम कर रहा है, तो कई उस ऑफिस में। अपने बड़े अधिकारियों की फटकार से ही ये लोग भी सबकुछ भूल जाएंगे, और

झलकियां मुंबई की

श्रद्धांजलि के लिए होड़ मुंबई की सड़कों पर हेमंत करकरे, विजय सालस्कर और अशोक काम्टे को श्रद्धांजलि देने की होड़ राजनीतिक पार्टियों में होड़ लगी हुई है। भाजपा और समाजवादी पार्टी कुछ ज्यादा तेजी दिखा रहे हैं। कल रात पूरे मुंबई में इन दोनों दलों की ओर से हेमंत करकरे, विजय सालस्कर और अशोक काम्टे के बड़े-बड़े पोस्टर सड़कों के किनारे लगाये गये। इन पोस्टरों पर मोटे-मोटे अक्षरों में उन्हें श्रद्धांजलि दिया गया है। शराबखानों में सन्नाटा मुंबई के शराब खानों में सन्नाटा है। अच्छे-अच्छे शराबियों की फटी पड़ी है। जीभ चटचटाने के बावजूद वे लोग शराबखानों की ओर मुंह नहीं कर रहे हैं। शराब बिक्री 70 फीसदी की कमी आई है। हार्ड कोर दारूबाज ही रिस्क लेकर दारू की दुकानों पर पहुंच रहे है। बारों में तो भूत रो रहा है। तीन दिनों से बारों में चहल-पहल पूरी तरह से ठप्प है। अंधेरी के आर्दश बार में कभी रात भर दारूबाजों की भीड़ लगी रहती थी, खूब बोतले खाली होती थी। अब यह पूरी तरह से ठप्प है। फुटपाथ की बिक्री ठप्प चर्चगेट के पास सड़क के किनारे दुकान लगाने वाले लोगों का धंधा पूरी तरह से बंद है। यहां पर करीब दो किलोमीटर तक

टक्कर लादेनवादियों से है

कुत्ते की तरह पिटाई के बाद अजमल आमिर कमाल ने बहुत कुछ उगला है। यह फरीदकोट का रहने वाला है, जो पाकिस्तान के मुलतान में पड़ता है। इसने बताया है कि पाकिस्तान में 40 लोगों को दो राउंड में ट्रेनिंग दिया गया और मुंबई शहर पर हमला करने की तैयारी पिछले एक साल से चल रही थी। इसके लिए खासतौर पर पाकिस्तान और बांग्लादेश से लोगों को भरती किया गया था। मबई की गहराई से थाह ली गई थी, ये लोग यहां पर कई राउंड आये भी थे। जिस समय ये सारी योजनाएं बनाई जा रही थी, लगता है उस समय रॉ के अधिकारी घास छील रहे थे। यदि समय रहते वे दूर दराज के मुल्कों में इस तरह की योजनाओं का पता नहीं चला सकते तो उनपर सरकारी पैसा बहाना फिजूल की बात है। रॉ को भंग कर देना बेहतर होगा। एक के बाद एक जिस तरह से भारत के बड़े-बड़े शहरों को निशाना बनाया जा रहा है,उसे देखकर कहा जा सकता है कि रॉ के काम करने के तरीके में कहीं कुछ गड़बड़ी है। किसी जमाने में हाथों में बैंक के फाइल लेकर इधर से उधर घूमने वाले भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कल आपात बैठक में बैठे हुये थे, भारत की इंटेलिजेंसिया के अधिकारियों के साथ। काफी माथापच्ची करने के बाद किसी लाल

मांद में घुसकर सफाया करने की जरूरत

भारत में आतंकवाद का फन कुचलने के लिए एक लंबी स्ट्रेटजी की जरूरत है,मुंबई पर हुआ संगठित हमला से यही सबक सीखने की जरूरत है। भारतीय नेशन स्टेट को आधुनिक तरीके से काम करना होगा, हर लिहाज से,और पूरी तरह से संगठित होकर। इसके लिए गेस्टापू जैसी कोई चीज चाहिए ही चाहिए। यह कई लेवल पर काम करेगा और बिंदास अंदाज में। अभी-अभी मुंबई के एक रहने वाले एक यंग लड़के ने संगठिततौर पर ऊंचे लेवर पर काम करने का एक तरीका कुछ इस तरह से बताया। उसी के शब्दों में... वे लोग अफजल को मांग रहे हैं...उन्हें दे दो। लेकिन नकली अफजल...साइंस बहुत आगे निकल गया है...चेहरे और हुलिया चुटकियों में बदल जाएंगे...उनके बीच अपने आदमी घुसाने की जरूरत है, जो उनको लीड करे। इसके पहले कांधार में भी जब उन्होंने अपने लोग मांगे थे एसा ही करना चाहिए था...थोड़ा रिस्क है, लेकिन मुझे लगता है कि भारत के नौजवान इस रिस्क को इन्जॉव करेंगे। भारत के नक्शे पर जो कश्मीर दिख रहा है उसकी आधी से अधिक जमीन तो उधर घुसी पड़ी है...पूरे पर कब्जा करने की जरूरत है....वो साले कुछ नहीं कर पाएंगे...एक बार में सूपड़ा साफ हो जाएगा....दुनिया की एसे ही फटी पड़ी है...को

राष्ट्रीय मीडिया को वार जोन की तमीज नहीं

समुद्री सुरक्षा को भेदते हुये मुंबई टारगेट को बहुत ही पेशेवराना तरीके से अंजाम दिया गया है। इनकी मंशा चाहे जो भी रही हो, लेकिन हमला का यह अंदाज एक स्पष्ट रणनीति की ओर संकेत कराता है। इनके पास से एक सीडी में बंद मुंबई शहर का पूरा खाका मौजूद था और इनके पास से बरामद राशन पानी से स्पष्ट हो जाता है कि ये लोग फील्ड में अधिक से अधिक समय तक टीक कर हंगामा मचाने के इरादे से लैस थे। इनका एक्शन एरिया पांच किलोमीटर के अंतर था, हालांकि इनके एक्शन एरिया को समेटने के लिए एटीएस ने शानदार तरीके से काम किया। ये लोग एक साथ कई टारगेट को हिट कर रहे थे। ताज और ओबराय में ए ग्रेट के सिटीजन ही जाते हैं और यहां पर विदेशी आगंतुको का भी भरमार रहता है। यदि ताज से निकलने वाले एक बंदे की बात माने तो ये लोग ये लोग अमेरिकी पासपो्रट धारियों को पकड़ने पर ज्यादा जोर दे रहे थे। वीटी रेल्वे स्टेशन पर इनलोगों ने आम आदमी को टारगेट पर लिया। कोलाबा में उतरने के बाद ये लोग कई टुकडि़यों में बंट गये थे। करकरे,आम्टे और कालस्कर इनके अभियान में इन्हें बोनस के रूप में मिले। अपने इस अभियान के प्रारंभिक दौर में इन्होंने भारत के इलेक्ट्

मुंबई का वार जोन

1. मुं बई उड़ गई ...अबे साले कहां है ... ....क्या हुआ ? .... ...तेरी मां की...जो पूछ रहा हूं, वो बता.... ..साले होश में रह, नहीं तो घुसेड़ दूंगा... ...बेटा मुंबई उड़ गई है.... ..हुआ क्या... .. ...तेरी मां की...बेटा मुंबई उड़ गई है,और मझे रिपो्रट चाहिये..और हां कुछ..चल बात में बाद होती है...दीपक के कुछ कहने के पहले ही, उधर से फोन की लाईन कट गई। - -------------------- 2. --साला, अखबार का सारा स्टॉक की खलास है। रात भर की अफरातफरी के बाद का कुछ आलम यह था। ठसाठस भरी रहने वाली बसे खाली खालीदौड़ रही थीं। ओशिवारा बस डिपों में बसों की कतार लगी हुई थी। रातभर की गतिविधियों के बाद मुंबई की सड़कों पर दीपक चलता जा रहा था। बदलते दृश्यों के बीच दीपक की आंखों के सामने रात की घटनाएं तेजी से तैर रही थी। 3. ....बहन की भूत, कहां पहुंचा,... ...पता नहीं......साले बार जोन में घुस,..... .लेकिन ये है किधर... . ..बहन की भूत,वहां तू बैठा है... दीपक के कुछ कहने के पहले ही, उधर से फोन की लाईन एक बार फिर कट गई।............ 4. ....अबे साले कहां है..... ...दारू पी रहा हूं..... ...कहां..... .दारू खाना मे

यदि संभव हो तो गेस्टापू बनाओ

सडे़-गले हुये एक बर्बर समाज के बीच एक खूबसूरत नौजवान बड़ा होता है, अपने चाचा के धंधे में हाथ बटाते हुये तिजारत की भाषा सीखता है। बाद में एक अमीर विधवा का कारोबार बड़ी मेहनत और लगन से संभालता है। वह अमीर विधवा उसके ऊपर फिदा होती है। उसके साथ शादी करने के बाद उसे दिन प्रति दिन के जीवन की जरुरतों से मुक्ति मिल जाती है। अब वह अपने अगल बगल के परिवेश को पुरी नंगई में देखता है और आंखे बंद कर सोचता है...बस सोंचता ही जाता है, सोंचता ही जाता है....घंटो, दिनो.. महीनों--वर्षों। लोगों के विकृत जीवन उसकी बंद आंखों में घूमते हैं..बार-बार, लगातार। वह हैलूसिनेशन की स्थिति में आ जाता है...उसे अपने अगल-बगल अनजान सी आवाज सुनाई देती है। पहली बार इस आवाज को सुनकर वह डरता है...अपनी पत्नी को बताता है...उसकी पत्नी उसकी बातों में यकीन करती है और उसे समझाती है इस आवाज को वह लगातार सुने...और समझने की कोशिश करे। बस इसी आवाजा के सहारे वह पैंगम्बर का रूप अख्तियार करता है। उसके दिमाग में समाज को एक धागे में बांधने का प्रारुप तैयार होता है...उसको अमली जामा पहनाने के लिए उसे तलवार का सहारा लेना पड़ता है...क्योंकि उ

लपटों में सबकुछ जलेगा--तेरा झूठ भी

तुमने हमे स्कूलों में पढ़ाया कि देश को तुमने आजाद कराया, हमने मान लिया,क्योंकि हम बच्चे थे। हमारी खोपड़ी में दनादन कूड़ा उड़ेलेते रहे और उसकी बदबू से उकता कर जब भी हमने सवाल किया, तुमने कहा, परीक्षाये पास करनी है तो पढ़ते जाओ, और हम पढ़ते रहे, क्योंकि परीक्षाये पास करनी थी। विज्ञान और गणित के सवाल तो ठीक थे, लेकिन इतिहास के सवाल पर तुम हमेशा मुंह मोड़ते रहे, और बाध्य करते रहे कि तुम्हारी सोच में ढलू अच्छे और बुरे की पहचान तुम्हारी तराजू से करूं कभी तुमने नहीं बताया, लेकिन अब समझ गया हूं कि इतिहास पढ़ने और पढ़ाने की चीज नहीं है, यह तो बनाने की चीज है। मौजूदा सवालों से रू-ब-रू होकर आज मैं तुमसे पूछता हूं---- देश के टूटते ज्योगरफी की झूठी गौरव गाथा तुने क्यो लिखी ? क्यों नहीं बताया कि हमारी सीमाओंका लगातार रेप होता रहा, कभी अंदर से तो कभी बाहर से ? तुमने सच्चाई को समझा नहीं ? या तुम्हारे अंदर सच्चाई को बताने का साहस नहीं था? या फिर सोच समझकर अपनी नायिकी को हमारे उभर थोपते रहे ? तुमने वतमान के साथ-साथ खुद को धोखा दिया, अब तेरी झूठी किताबें और नहीं...!!! तेरी झूठ की कब्र तो खोदनी है, रेग

मुंबई में नापतौल की घपलेबाजी

मुंबई के किराना दुकानों में नापतौल के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक तराजुओं में मामूली सी घपलेबाजी है, लेकिन इससे दुकानदारों को अच्छा खासा लाभ हो रहा है। दुकानदार सामानों के नापतौल में 15 से 20 ग्राम का बट्टा मार रहे हैं। चावाल,दाल और गेहू जैसे खाद्य सामग्री पर इनके द्वारा मारे गये बट्टे को तो कोई खास असर नहीं पड़ रहा है, लेकिन जीरा,लाल मिरच, इलायची, दालचीनी, गोलकी, काजू, किसमिस आदि पर ये लोग 15-20 ग्राम का बट्टा मारकर अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं,चूंकि इन सामानों का वजन कम होता है और कीमत ज्यादा। नापतौल की व्यवस्था पर नजर रखने वाले अधिकारी भी इस बात से अच्छी तरह अवगत हैं कि दुकानदारों ने अपने इलेक्ट्रॉनिक नापतौल की मशीनों गति बढ़ा रखी है। लेकिन दुकानदार इनकी भी जेबे गरम करते रहते हैं, इसलिए ये लोग अपनी इस उपरी कमाई को बंद करना नहीं चाहते हैं। इसके अलावा दुकानदारों से इन्हें कम कीमत पर अपने घरों के लिए महीनवारी सामान भी मिल जाते है। मीट और मूरगों के दुकानों में इस्तेमाल किये जाने वाले बाटों और तराजुओं में भी 50 से 100 ग्राम के बीच डंडीबाजी चल रही है। ये लोग पैसे चोखे लेकर सा

गोली मारो पोस्टर....झकझोरो मुझे...

लोगों के चेहरे और घटनायें आपस मे गुंथकर तेजी से बदलते हैं, बिना किसी लयताल के।....यह तो मेरी छोटी सी बेटी है...यह मर रही है, लेकिन क्यों ..नहीं नहीं...मैं इसे मरने नहीं दूंगा..अरे यह तो मरी हुई है...इसका तो शरीर ही नहीं है...यह तो छाया है । वह क्या है, धूल भरी आंधी...यह तो वही महिला है, जिसके पति को एक पागल भीड़ ने मार दिया था...क्या हुआ था...ओह, अपने काम से लौट रहा था...कितनी निदयता से मारा था लोगों ने. ...रथ दौड़ा था-कसम राम की खाते है, हम मंदिर वहीं बनाएंगे...रथ के बाद खून की लहर...यह क्या बाबरी ढांचा एक बार फिर ढहढहा कर गिर रहा है...साथ में आरक्षण की हवा...भूरा बाल साफ करो...100 में शोषित नब्बे है, नब्बे भाग हमारा है...जो हमसे टकराएगा चूर-चूर हो जाएगा... ...मैं सपना देख रहा हूं...हां, हां, मैं सपना देख रहा हूं...मुझे उठना चाहिए...कमबख्त नींद भी तो नलीं टूट रही है...लेकिन है यह सपना ही...तू कौन है? तू मुझे नहीं पहचानता...मैं इंदल हूं...तेरा बचपन का दोस्त...और मेरे साथ अजुन है... लेकिन तूम दोनों तो मर गये थे ? ...हां...मर गया था...मुझे अपनी बेटी की शादी करनी थी...सारा खेत बेच डाला..

लादेन की कविताई

  इष्ट देव सांकृत्यायन हाल ही मेँ मैने एक खबर पढी. आपने भी पढी होगी. महान क्रांतिकारी (जैसा कि वे मानते हैँ) ओसामा बिन लादेन की कविताओँ का एक संग्रह जल्दी ही आने वाला है. यह जानकर मुझे ताज्जुब तो बिलकुल नहीँ हुआ. लेकिन जैसा कि आप जानते ही हैँ, कविता का जन्म कल्पना से होता है. पहले कवि कल्पना करता है और फिर कविता लिखता है. इसके बाद कोई सुधी श्रोता उसे पढता है और फिर उसका भावार्थ समझने के लिए वह भी कल्पनाएँ करता है. तब जाकर कहीँ वह उसे समझता है. अपने ढंग से. मुक्तिबोध ने इसीलिए कविता को यथार्थ की फंतासी कहा है. वैसे कबीर, तुलसी, रैदास जैसे छोटे-छोटे कवियोँ पर समझने के लिए कल्पना वाली शर्त कम ही लागू होती है. सिर्फ तब जब कोई 'ढोल गंवार.....' या 'पंडित बाद बदंते...' जैसी कविताओँ का अर्थ अपने हिसाब से निकालना चाह्ता है. वरना इन मामूली कवियोँ की मामूली कविताओ का अर्थ तो अपने-आप निकल आता है. और जैसा कि आप जानते ही है, नए ज़माने के काव्यशास्त्र के मुताबिक ऐसी रचनाएँ दो कौडी की होती है, जिनका मतलब कोई आसानी से समझ ले. लिहाजा इस उत्तर आधुनिक दौर के बडे कवि ऐसी कविताएँ नही लिखत

बसंती जवान हो रही है

रिपोताज बसंती जवान हो रही है, उसके अंग फूटने लगे हैं और स्कूल की किताबों को छोड़कर ए गनपत चल दारू ला पर पर कमर लचकाने का निराला अभ्यास करने लगी है। करे भी क्यों नहीं, उसे धंधे में जो आना है, और अब धंधे का गुर सीखने का उसका उमर हो चला है। उसकी नानी ने उसके नाक में नथिया डाल दी है, इस नथिये को उतारने की अच्छी-खासी कीमत वह उसे सेठ से वसुलेगी,जो पहली बार बार इसके साथ हम बिस्तर होगा। उसकी नानी को सबसे अधिक रकम सुलेखा के समय मिला था, उसे उम्मीद है कि बसंती सुलेखा के रिकाड को तोड़ देगी। और तोड़ेगी क्यों नहीं, देखो तो कैसे खिल रही है। यह खानदानी धंधा है जिसपर दुनिया की आथिक मंदी का मार कभी नहीं पड़ने वाला। बसंती अपने नानी की तरह गुटखा खाती है, घंटों आइने के सामने खड़ी होकर अपने सीने पर आ रहे उभार को देखती है, और खुद पर फिदा होती है। कच्ची उम्र की कसक उसके आंखों में देखी जा सकती है। गाली निकालने में तो उसने अपने नानी को भी मीलों पीछे छोड़ दिया है, तेरी मां की साले....अबे चुतिये तुझे दिखाई नहीं देता...तेरी बहन की बारात निकाल दूंगा...उसके होठों पर हमेशा बजते रहते हैं। जबरदस्त निकलेगी। मु

मुंबई में काली हवाओं और टोटको का मायाजाल

मुंबई में काली हवाओं और टोटको का भी खूब मायाजाल है। नीचले तबके की बहुत बड़ी आबादी को ये गिरफ्त में लिये हुये। आधी रात को एक महिला अपने कमरे में चिल्लाने लगती है, मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा, बहुत दिन के बाद तू मेरी गिरफ्त में आई है। उसके पति की फट कर हाथ में जाती है। शोर मचाकर वह अगल-बगल के लोगों को एकत्र करता है, लेकिन वह महिला काबू ने नहीं आती, मरदाना अंदाज में लगातार चिल्लाती जाती है, तुने मुझे बहुत तरसाया है, आज तुझे कोई नहीं बचा सकता। यह नाटक रात भर चलता है और सुबह उसका पति उस महिला को किसी फकीर के पास ले जाता है। फकीर मोटा माल एठकर उसकी झाड़फूंक करता है। टूटी हुई हालत में वह अपने घर में आती है और बेसुध पड़ जाती है। झाड़फूंक का यह क्रम एक सप्ताह तक चलता रहता है। शंकर जी के बसहा बैल को लेकर चंदनधारी लोगों के झूंड भी यहां गली-चौराहों में दर-दर भटकते हुये मिल जाएंगे। लोगों के अंदर साइकोलॉजिकल भय पैदा करके उनसे माल खींचना इन्हें खूब आता है। अपनी डफली-डमरू के साथ ये लोग कहीं भी घूस जाते हैं और कुछ न कुछ लेकर ही निकलते हैं। बड़ी चालाकी से लोगों के हाथों में ये लोग तावीज और भभूति पकड़ा कर दो

एक रुपये की खबर

एक रुपये की खबर है। मुंबई में एयरटेल का 10 रुपये का प्री-पेड काड पर खुदड़ा बिक्रेता एक रुपया ज्यादा ज्यादा ले रहे हैं। यानि 10 रुपये का प्री-पेड काड 11 रुपये में बेचे जा रहे है। अब यह एक रूपये एयरटेल के तंत्र और बिचौलियों के बीच किस अनुपात में बट रहा है, इसका कोई लिखित रिकाड तो नहीं है, लेकिन एक अनुमान के मुताबिक यह एक रुपया का खेल करोड़ों के खेल में तब्दील हो गया है। महानगरीय आबादी में मोबाईल फोन हर तबके की जरूरत बन चुकी है। गरीबी रेखा पर चलने वाले(यह गरीबी रेखा का कंसेप्ट हमेशा से कन्फ्युजिंग रहा है।)या इस रेखा के नीचे बसर करने वाले लोगों की अरथ व्यवस्था पर इस एक रुपये की कालाबाजारी का सीधा मार पड़ रहा है। ये लोग अक्सर अपने मोबाईल में 10 रुपये के प्री-पेड काड का इस्तेमाल करते हैं। एयरटेल के 10 रुपये की प्री-पेड पर एक रुपया अतिरिक्त कमाने के लिए एयटेल के तंत्र से जुड़े आला अधिकारियों और खुदड़ा बिक्रेताओं के बीच गहरी सांठ-गांठ हुई है। पहले बहुत सलीके से 10 रुपये के प्री-पेड काड को मारकेट से गायब किया गया। इसकी स्कारसिटी बताई गई। कुछ दिन के बाद इसे 11 रुपये में बेचा जाने लगा। आथिक मंदी

बोले तो बिंदास लाइफ है मुंबई का

बोले तो बिंदास लाइफ है मुंबई का,सबकुछ चकाचक। सड़ेले नाले के ऊपर झुग्गियों की कतार और उस कतार के दरबे में जानवरों की तरह ठूंसे हुये लोग, हर किसी को अपनी पेट की जुगाड़ खुद करनी पड़ती है। सुबह उठकर कोकिल बच्चों के झुंड के साथ कचड़े के पास जाकर यूज्ड कॉन्डमों को लोहे की छड़ से अलग करते हुये अपने लिए इन कॉन्डमों के साथ फेके हुये जूठे भोजन निकालने की कला सीख चुकी है, हालांकि इसके लिए बच्चों के साथ-साथ कुत्तों के झुंड से भी निपटना पड़ता है। भोजन उठाने के क्रम में लोहे के छड़ को कुत्तों पर तानते हुये कहती है, साला अपुन से पंगा....देखता नहीं है घुसेड़ दुंगी। रज्जो अभी अभी दुबई से लौटी है...मुंबई में ढल चुकी बार बालायें उसे घेरे हुये है...उसकी किस्मत से सब को जलन हो रहा है, उनकी जवानी को साला मुंबई ने चूस लिया...रज्जो की किस्मत अच्छी थी दुबई निकल गई...शेखों के नीचे लेटकर खूब माल कमाया है. ...अरे मेरे लिए कुछ लाई.. हां...लाई ना..ये है घड़ी, ये है हार और ये है चुडि़या...रुक रुक...तेरे बच्चों के लिए टेडी बीयर लेकर आई हूं... काहे के मेरे बच्चे...किसी हरामी ने मेरे पेट में छोड़ दिया था। चल दे दे सा

स्टाइललेस स्टाइल से भी आगे थे सत्यजीत रे

इटैलियन नियोरियलिज्म फिल्म मूवमेंट का दुनियाभर के फिल्मों पर जोरदार प्रभाव पड़ा है। इस मूवमेंट को हांकने वाले इटली के फिल्मकारों पर फ्रेंच पोयटिक रियलिज्म का जोरदार प्रभाव था। इटैलियन नियोरिलिज्म को आकार देने वाले मिसेलेंजो एंटोनियोनी और ल्यूसिनो विस्कोंटी फ्रेंच फिल्मकार जीन रिनॉयर के साथ कर चुके थे। जीन रिनॉयर के साथ जुड़ने का मौका भारतीय फिल्मकार सत्यजीत राय को भी मिला था। जीन रिनॉयर कोलकात्ता में अपनी फिल्म दि रिवर की शूटिंग करने आये थे। उस वक्त सत्यजीत राय ने लोकेशन तलाश करने में उनकी मदद की थी। जिस वक्त इटली में नियोरियलिज्म की नींव रखी जा रही थी, उस वक्त सत्यजीत राय भी इस पैटरन पर गंभीरता से काम कर रहे थे। 1928 में बिभूतिभूषण द्रारा लिखित बंगाली उपन्यास पाथेर पांचाली को फिल्म की भाषा में ट्रांसलेट करने की दिशा में वह गंभीर तरीके से सोच रहे थे। इस बात की चरचा सत्यतीज रे ने कोलकात्ता प्रवास के दौरान जीन रिनॉयार से भी की थी और जीन रिनॉयर ने उन्हें इस पर काम करने के लिए प्रेरित किया था। उस वक्त सत्यजीत रे कोलकात्ता में लंदन की एड एजेंसी डीजे केमर में काम कर रहे थे। उस एजेंसी क

ऑटर थ्योरी के ग्रामर पर गुरदत्त

गुरुदत्त के बिना वल्ड फिल्म की बात करना बेमानी है। जिस वक्त फ्रांस में न्यू वेव मूंवमेंट शुरु भी नहीं हुआ था, उस वक्त गुरदत्त इस जेनर में बहुत काम कर चुके थे। फ्रांस के न्यू वेव मूवमेंट के जन्मदाताओं ने उस समय दुनियां की तमाम फिल्मों को उलट-पलट कर खूब नाप-जोख किया, लेकिन भारतीय फिल्मों की ओर उनका ध्यान नहीं गया। गुरदत्त की फिल्मों का प्रदशन उस समय जमनी,फ्रांस और जापान में भी किया जा रहा था और सभी शो फूल जा रहे थे। गुरुदत्त हर लेवल पर विश्व फिल्म को लीड कर रहे थे। 1950-60 के दशक में गुरु दत्त ने कागज के फूल, प्यासा, साहिब बीवी और गुलाम और चौदंहवी का चांद जैसे फिल्मे बनाई थी, जिनमें उन्होंने कंटेट लेवल पर फिल्मों के क्लासिकल पोयटिक एप्रोच को बरकार रखते हुये रियलिज्म का भरपूर इस्तेमाल किया था, जो फ्रांस के न्यू वेव मूवमेवट की खास विशेषता थी। विश्व फिल्म परिदृश्य में गुरुदत और उनकी फिल्मों को समझने के लिए फ्रांस के न्यू वेव मूवमेवट के थियोरिटकल फामूलों का सहारा लिया जा सकता है, हालांकि गुरु दत्त अपने आप में एक फिल्म मूवमेवट थे। किसी फिल्म मूवमेवट के ग्रामर पर उन्हें नही कसा जा सकता।

बात भारतीय फिल्मों पर

पता नहीं किस व्यक्ति ने पहली बार देश में हिन्दी फिल्मों के लिए बॉलीवुड शब्द का इस्तेमाल किया और कैसे यह शब्द फिल्मी पत्रिकाओं और अखबारों से लेकर टीवी बालाओं के होठों पर आ गया। इस पर कभी बात में बात होगी, आज बात भारतीय फिल्मों पर। यूरोप और अमेरिका को बहुत दिनों तक पता ही नहीं था कि भारतीय फिल्मों में नाच गान का इस्तेमाल शानदार तरीके से किया गया था। उस दौर में दुनियां की अन्य फिल्में भारत की फिल्मों से इतर नहीं थी, लेकिन अन्य जगहों पर तकनीक के स्तर पर प्रयोग हो रहे थे, जबकि भारतीय फिल्मकार उन तकनीकों का बेहतर इस्तेमाल करने की कला के अभ्यास में पारंगत थे। चाहे मूक फिल्मों का ही दौर क्यों न हो, उस समय भारत में बेहतरीन फिल्में बन रही थी। साउंड फिल्मों के युग में तो भारतीय फिल्मकारों के हाथ में तो एक खजना लग गया था, नाच और गाने स तमाम भारतीय फिल्मी भरी पड़ी है। गीतों के बिना तो भारतीय फिल्म की परिकल्पना ही नहीं की जा सकती थी। दादा फालके से लेकर आज तक भारतीय फिल्मकार अपनी फिल्मों में गीतों का भरपूर प्रयोग करते रहे हैं। अमेरिका और यूरोप में फिल्म कई मूवमेंटों से होकर गुजरा है,जैसे इटली का रिय

मेरा बच्चा मनमोहन की भाषा नहीं समझेगा

अर्थ विज्ञानियों की भाषा में आथिक मंदी की बात आम लोगों के समझ में नहीं आ रही है। वे दिन प्रति दिन की समस्याओं से रूबरू होते हुए इस मंदी की मार झेल रहे हैं। पिछले आठ महीने में दूध की कीमत में प्रिंट के लेवल पर प्रति लीटर दो रुपये का इजाफा हुआ है, लेकिन खुदरे दुकानदार इस पर प्रिंट लेवल से तीन रूपया जादा कमा रहे हैं। पहले पैकेट वाले दूध की कीमत प्रति आधा लीटर 9 रुपये था, जिसे बढ़ाकर 10 रुपये किया गया। लेकिन मुंबई के बाजार में यह 12 रूपये में बेचा जा रहा है। इसी तरह चावल, दाल, तेल, चीनी, नमक और खाने पीने के वस्तुओं की कीमतों में इजाफा हुआ है। दुकानदार मनमाना रेट लगा रहे हैं और लोग इन आवश्यक वस्तुओं को उनके मनमाना दामों पर खरीदने के लिए मजबूर है। साग सब्जी का भाव भी आसमान छू रहा है। मुंबई की सडकों पर गाजर 80 रुपये प्रति किलो बिक रहे हैं। खाने पीने के वस्तुओं की कीमतों में जहां उझाल आया है , वहीं प्रोपटी की कीमतों में गिरावट आ रहा है। तमाम बिल्डर फ्लैट बनाकर बैठे हुये हैं, लेकिन उन्हें कोई खरीदने वाला नहीं है। अभी कुछ दिन पहले तमाम बिल्डरों ने ग्राहकों के लिए अपनी अवासीय परियोजनाओं को लेकर ए

नए स्वर में आज की हिंदी कविता

हिन्दी जगत के प्रतिष्ठित प्रकाशन समूह किताबघर की ओर से आई कवि ने कहा - कविता श्रृंखला की यह समीक्षा युवा रचनाधर्मी विज्ञान भूषण ने की है इकट्ठे दस किताबों पर यह समीक्षात्मक टिप्पणी लम्बी ज़रूर है , पर मेरा ख़याल है की इससे सरासर तौर पर भी होकर गुज़रना आपके लिए भी एक दिलचस्प अनुभव होगा : हमारी भौतिकतावादी जीवन”ौली और आडंबरों के कपाट में स्वयं को संकुचित रखने की मनोवृत्ति ने हमारी संवेदनाओं को मिटाने का ऐसा कुचक्र रचा है जिससे बचकर निकलना लगभग असंभव सा दिखता है। आज के कठिन समय में आदमी के भीतर का ‘ आदमीपन’ ही कहीं गुम होता जा रहा।है. इससे भी बड़ी हतप्रभ करने वाली बात यह है कि हम अपने भीतर लगातार पिघलते जा रहे आदमीयत को मिटते हुए देख तो रहें हैं पर उसे बचाने के लिए कोई भी सार्थक प्रयास नहीं करते हैं या यद ऐसा कुछ करना ही नहीं चाहते हैं।ऐसे प्रतिकूल समय के ताप से झुलसते आम आदमी की हता”ा होती जा रही जिजीवि’ाा को संरक्षित रखते हुए संघर्’ा में बने रहने की क्षमता सिर्फ साहित्य ही प्रदान कर सकता है। कुछ समय पूर्व किताबघर प्रका”ान ने वर्तमान दौर के कुछ महत्वपूर्ण कवियों की चुनी हुई कविताओं की श्र

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