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बाइट प्लीज (उपन्यास भाग-5)

8.              रांची के सफर पर नीलेश पहली बार निकला था। बिहार के बटवारे के पहले वह हजारीबाग में सेंट कोलंबस कालेज के ठीक बगल के एक रिहायसी इलाके में रह चुका था । वहां की जंगलों , झाड़ों और खुले मैदानों ने उसे खासा आकर्षित किया था। जंगलों में अकेले दूर तक भटकना उसे अच्छा लगता था। जब सुकेश से उसकी रांची चलने की बात हुई थी , उसने यात्रा के लिए सबसे पहले बस को ही चुना था। एक रात की दूरी वाली यात्राओं के लिए वह अक्सर बस को ही पसंद करता था। बस के सफर में पूरी रात उसे सोचने का मौका मिल जाता था , यदि कोई साथ में सफर कर रहा हो तो , बातचीत का मौका भी। सुबह परिवहन भवन से बस की टिकट लेने के बाद रात में दोनों बिहार परिवहन विभाग की एक बस में सवार में थे। बस सरपट रांची की ओर दौड़ रही थी , हवाओं के तेज झोंके बस के आरपार हो रहे थे , क्योंकि खिड़कियां खुली हुई थी। नीलेश बस की अंतिम सीट पर आराम से लेटा हुआ था , उसके ठीक आगे वाली सीट पर साइड में सुकेश बैठा हुआ था। रात हो चली थी , सड़कों पर आगे और पीछे तेजी से भागती हुई गाड़ियों की लाइटें दिख रही थी और कभी - कभी उनके कानों में हार्न की तीखी आवाजें

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