Haldighati and Nathdwara
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यात्रा संस्मरण शौर्य एवं स्वाभिमान की भूमि हल्दीघाटी -हरिशंकर राढ़ी राणा प्रताप स्मारक पर लेखक हल्दीघाटी की भूमि पर पहुँचकर जैसे एक बहुत लंबी अभिलाषा पूरी हुई थी। स्मारक के चबूतरे पर चेतक पर सवार की विषाल मूर्ति देखना तथा उस काल को महसूस करना रोमांचक ही नहीं, स्वाभिमान, देशभक्ति और उच्च जीवनमूल्यों से जैसे साक्षात्कार करना था। हल्दीघाटी -- अरावली पर्वतमाला में उदयपुर के पास पहाड़ियों के बीच एक छोटा सा रणक्षेत्र विदेशी आक्रांता मुगलवंशज अकबर की विशाल सेना और स्वाभिमान के प्रतीक राणा प्रताप के बीच हुए भयंकर यु़द्ध का साक्षी है। यह वह युद्ध था जिसमें दस हजार राजपूत सैनिकों की आत्माहुति की भावना तथा स्थानीय वनवासी भीलों के सहयोग से राणा ने मुगलसेना के दाँत खट्टे कर दिए थे। यदि उस युद्ध में चेतक घायल नहीं होता तो निश्चित ही परिणाम कुछ और होता ! यह सच है कि बालमन पर पड़ी छाप को छुड़ा पाना बहुत मुश्किल होता है। हमारे समय में प्राथमिक कक्षाओं में राणा प्रताप के घोड़े चेतक पर एक कविता पढ़ाई जाती थी ‘रणबीच चौकड़ी भर-भरकर चेतक