फागुन आया रे!
मेरे एक कवि मित्र ने घोषणा की है – फागुन आया रे! कब आया, कहां से आया, किस रास्ते आया, किसके मार्फ़त आया और कब तक ठहरेगा... इन सवालों का उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है. सीधे काम की बात पर आ गए. सबसे पहले सीधे यही बता दिया कि किसलिए आया है. एकदम दिल्ली वालों की तरह. गोया फागुन के आने की सूचना सिर्फ़ दिल्ली वालों के लिए है. बल्कि सही पूछिए तो ‘ आपके लिए आपके साथ सदैव ’ का नारा देने वाली दिल्ली पुलिस के लिए. जो थाने में ख़ून से लथपथ आदमी की भी शक्ल देखते ही सीधा सवाल करती है, ‘ हां बोलो ’ . तो किसी को यह पूछने की ज़रूरत नहीं कि वह किसलिए आया है. उसके इरादे उन्होंने पहले ही ज़ाहिर कर दिए हैं. और जो इरादे उन्होंने ज़ाहिर किए हैं, वह बिलकुल नेक नहीं लगते. बहरहाल, फागुन नंगा-लुच्चा-उचक्का-लफंगा जो भी हो, पर मेरे कवि मित्र पूरे ईमानदार हैं. तो उन्होंने बताया है- गोरी को बहकाने फागुन आया रे. हालांकि एक जगह उन्होंने यह भी कहा है कि वह प्रेम रस बरसाने आया है, पर अगले ही बन्द में फिर स्पष्ट कर दिया है – तन-मन को भरमाने फागुन आया रे. अब अगर ग़ौर करें तो मालूम होता है कि ये प्रेम रस बरसाने वाला फाग...