जनता का ध्यान भटकाने का खेल
इष्ट देव सांकृत्यायन चीन एक ऐसा परोपकारी है जो चश्मा थमाकर आँखें छीन लेता है और चश्मा भी ऐसा जो सिर्फ़ धूप का होता है. कुछ नज़र आए तब तक तो वो अपने शिकार के पास आँखें होने का निशान भी ग़ायब कर देता है. भारत ने नेहरू के हाथ में अपनी कमान सौंपकर सिर्फ गलती की थी. उनके खानदान को सौंपकर ब्लंडर किया. ऐसी गलती जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती. नेपाल की जनता ने कम्युनिस्टों पर कभी भरोसा नहीं किया. उसकी गलती सिर्फ यह है कि राजपरिवार के नरसंहार के बाद उसके पास कोई चारा नहीं बचा. दुर्भाग्य से माओवादियों के इस कुकृत्य में हिस्सेदार ख़ुद राजपरिवार के ही कुछ लोग हुए. इसका अभिप्राय उस युवराज से कतई न लिया जाए जिनके सिर बाद में बेवजह सारा दोष मढ़ा गया. उस वक्त जनता के पास कोई चारा नहीं था. सिवा इसके जो भी तथाकथित लोकतांत्रिक प्रक्रिया घोषित कर देती , उसे ही वह मान लेती. इसी क्रम में चीन के पोषित कम्युनिस्टों ने जबरिया नेपाल पर कब्जा कर लिया. चीन ने वहाँ एक झूठमूठ की सत्ता सौंपी नेपाली कम्युनिस्टों को और परदे के पीछे से चलाता वह खुद रहा. बीते करीब दो दशकों से चीन लगातार नेपाल की व्यवस्था को अरा...