Azamgarh ke Bhairv Baba (Part-2)
आजमगढ़ के भैरो बाबा ( भाग - 2) -हरिशंकर राढ़ी पिछले सप्ताह भैरो बाबा के इस स्थान पर जाने का पुनः अवसर मिला। कुछ विशेष परिवर्तन तो होना नहीं था इस बीच। हाँ, पिछले लेख में कुछ छूट अवश्य गया था जिसे पूरा करने का खयाल मन में बैठा था। दशहरे का प्रसिद्ध मेला समाप्त हो रहा था। झूले और सर्कस वाले अपना डेरा-डम्पा हटा रहे थे। खजले की दुकानें अभी भी थीं, उनकी संख्या अब कम हो चली थी। दिन मंगलवार था नहीं और सुबह का समय था, इसलिएइक्का - दुक्का दर्शनार्थी आ रहे थे। मंदिर परिसर में प्रवेश करने पर एक सुखद आश्चर्य हुआ कि गर्भगृह में इस बार पंक्तिबद्धता के लिए बैरीकेड लग गए हैं जो अपार भीड़ में थोड़ा -बहुत तो काम करते ही होंगे। मंदिर का परिक्रमा पथ कीचड़ और फिसलन से लथपथ था। रात में बारिश हुई थी और सफाई करे तो कौन ? भैरव मंदिर का एक दृश्य छाया : हरिशंकर राढ़ी रोजगार की तलाश और भौतिकवाद ने सुविधाओं की बढ़ोतरी की है। मुझे याद है कि मेरे बचपन में यहां केवल मंगलवार को ही पूजा-प्रसाद यानी कि फूल-माला और बताशे की दुकानें लगती थीं। बाकी किसी दिन आइ