Posts

Showing posts from September, 2013

कैसे कहूं?

इष्ट देव सांकृत्यायन  ज़िंदगी से ज़िंदगी ही लापता है, कैसे कहूं? हर ज़ख़्म ही दिया हुआ आपका है, कैसे कहूं? हुक़ूमत क़ानून की है, ऐसा कहा जाए और ये भी हुक़्म उनके बाप का है, कैसे कहूं? सहाफ़त से शराफ़त के सारे रिश्ते ख़त्म  सियासत सा ये धंधा पाप का है, कैसे कहूं? किताब-ए-तर्ज़-ए-हुक़ूमत के हर सफ़े में सुन उसी के गर्ज़ का फैला रायता है, कैसे कहूं? झोपड़ी के सामने ही महल है, पर दरमियां करोड़ों मील लंबा फ़ासला है, कैसे कहूं?  

क्या करेंगे आप?

इष्ट देव सांकृत्यायन  इरादे बुनियाद से ही हिले हैं, क्या करेंगे आप? झूठो-फ़रेब के ही सिलसिले हैं, क्या करेंगे आप? इस समुंदर में रत्न तो लाखों पड़े हैं, मगर जो मिले ख़ैरात में ही मिले हैं, क्या करेंगे आप? हमको गुल दिखाकर खार ही कोंचे गए हैं हमेशा आब उनके बाग में ही खिले हैं, क्या करेंगे आप? अहा, अहिंसा! शान जिनके होंठों की है शुरू से ठंडे गोश्त पर वे ही पिले हैं, क्या करेंगे आप? एक-दो बटनें दबीं और सबके नुमाइंदे हो गए किसके क्या शिकवे-गिले हैं, क्या करेंगे आप?

मंडोर से आगे

Image
हरिशंकर राढ़ी  ( गतांक से आगे ) वर्तमान समय में यह लगभग 82 एकड़ के उद्यान  क्षेत्र में फैला हुआ है। मंडोर उधान की यात्रा राजस्थानी संस्कृति  का साक्षात्कार कराने में सक्षम है।  उद्यान में प्रवेश करते ही वीरों की दालान (हॉल ऑफ़ हीरोज) के दर्शन  होते हैं जो एक ही चटटान को काटकर बनार्इ गर्इ है। 18वीं शताब्दी में निर्मित वीरों एवं देवताओं की दालान मारवाड़ी स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है।  उद्यान में एक संग्रहालय भी स्थापित है जिसमें तत्कालीन राजपरिवारों का इतिहास दर्शाया  गया है। इस संग्रहालय का सबसे आकर्शक पक्ष इसमें अनेक शास्त्रीय  राग-रागिनियों पर आधारित चित्रकला का प्रदर्शन  है। राग मालकोश , मधु-माधवी, आदि का विभिन्न भाव-भंगिमाओं एवं काल्पनिक परिसिथतियों के आधार पर अत्यंत भावनात्मक और कोमल चित्रांकन किया गया है। वीरों  का दालान    छाया :  हरिशंकर राढ़ी     जनाना महल के बाहर इकथंबा महल नामक एक मीनार है जो तीन मंजिली है। इसका निर्माण महाराजा अजीत सिंह के काल (1705-1723 र्इ0) में हुआ था। परिसर में प्रचुर हरियाली और शांति  का वातावरण है। चिडि़यों का झुंड रह-रहकर आसमान को भर लेता

जहां वृक्ष ही देवता हैं

Image
हरिशंकर राढ़ी जब हमारा ऑटोरिक्शा  जोधपुर शहर  से बाहर निकला तो हमें कतई एहसास नहीं था कि जहां हम जा रहे हैं वह स्थान पर्यावरण का इकलौता तीर्थ होने की योग्यता रखता है। सदियों पहले जब पर्यावरण संरक्षण के नाम पर न कोई आंदोलन था और न कोई कार्यक्रम, तब वृक्षों के संरक्षण के लिए सैकडो़ं अनगढ़ और अनपढ़ लोगों ने यहां आत्मबलिदान कर दिया था। आत्माहुति का ऐसा केंद्र किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं हो सकता। लेकिन विडम्बना यह है कि पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर इतनी चिल्ल-पों मचने और पर्यटन के धुंआधार विकास के बावजूद यह स्थल अपनी दुर्दशा  पर रोने के सिवा कुछ नहीं कर पा रहा है। इसे तो स्वप्न भी नहीं आता होगा कि देश  के पर्यटन मानचित्र में कभी इसका नाम भी आएगा ! खेजडली का शहीद स्मारक                                            छाया : हरिशंकर राढ़ी         राजस्थान के ऐतिहासिक शहर  जोधपुर से मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर प्रकृति के अंचल में बसा खेजड़ली गांव किसी भी पर्यावरण प्रेमी के लिए विषेश महत्त्व का हो सकता है। घुमक्कड़ी के क्रम में  जब जोधपुर यात्रा का कार्यक्रम बना तो निश्चित हुआ कि खेजड़ली गा

जो फाइलें सोचती ही नहीं

इष्ट देव सांकृत्यायन भारत एक प्रबुद्ध राष्ट्र है, इस पर यदि कोई संदेह करे तो उसे बुद्धू ही कहा जाएगा. हमारे प्रबुद्ध होने के जीवंत साक्ष्य सामान्य घरों से लेकर सड़कों, रेल लाइनों, निजी अस्पतालों और यहां तक कि सरकारी कार्यालयों तक में बिखरे पड़े मिलते हैं. घर कैसे बनना है, यह आर्किटेक्ट के तय कर देने के बावजूद हम अंततः बनाते अपने हिसाब से ही हैं. आर्किटेक्ट को हम दक्षिणा देते हैं, यह अलग बात है. इसका यह अर्थ थोड़े ही है कि घर बनाने के संबंध में सारा ज्ञान उसे ही है. ऐसे ही सड़कों पर डिवाइडर, रेडलाइट, फुटपाथ आदि के सारे संकेत लगे होने के बावजूद हम उसका इस्तेमाल अपने विवेकानुसार करते हैं. बत्ती लाल होने के बावजूद हम चौराहा पार करने की कोशिश करते हैं, क्योंकि बत्ती का क्या भरोसा! पर अपने आकलन पर हम भरोसा कर सकते हैं. सरकारी दफ्तरों में नियम-क़ानून किताबों में लिखे रहते हैं, लेकिन काम अपने ढंग से होते हैं. ये सभी बातें इस बात का जीवंत साक्ष्य हैं कि हम बाक़ी किसी भी चीज़ से ज़्यादा अपने विवेक पर भरोसा करते हैं. हमें अपने सोचने पर और किसी भी चीज़ से ज़्यादा भरोसा है, क्योंकि यूरोप के

Most Read Posts

रामेश्वरम में

Bhairo Baba :Azamgarh ke

इति सिद्धम

Maihar Yatra

Azamgarh : History, Culture and People

पेड न्यूज क्या है?

...ये भी कोई तरीका है!

विदेशी विद्वानों के संस्कृत प्रेम की गहन पड़ताल

सीन बाई सीन देखिये फिल्म राब्स ..बिना पर्दे का