मंडोर से आगे

हरिशंकर राढ़ी 

( गतांक से आगे )
वर्तमान समय में यह लगभग 82 एकड़ के उद्यान  क्षेत्र में फैला हुआ है। मंडोर उधान की यात्रा राजस्थानी संस्कृति  का साक्षात्कार कराने में सक्षम है।  उद्यान में प्रवेश करते ही वीरों की दालान (हॉल ऑफ़ हीरोज) के दर्शन  होते हैं जो एक ही चटटान को काटकर बनार्इ गर्इ है। 18वीं शताब्दी में निर्मित वीरों एवं देवताओं की दालान मारवाड़ी स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है।  उद्यान में एक संग्रहालय भी स्थापित है जिसमें तत्कालीन राजपरिवारों का इतिहास दर्शाया  गया है। इस संग्रहालय का सबसे आकर्शक पक्ष इसमें अनेक शास्त्रीय  राग-रागिनियों पर आधारित चित्रकला का प्रदर्शन  है। राग मालकोश , मधु-माधवी, आदि का विभिन्न भाव-भंगिमाओं एवं काल्पनिक परिसिथतियों के आधार पर अत्यंत भावनात्मक और कोमल चित्रांकन किया गया है।
वीरों  का दालान    छाया :  हरिशंकर राढ़ी 
   जनाना महल के बाहर इकथंबा महल नामक एक मीनार है जो तीन मंजिली है। इसका निर्माण महाराजा अजीत सिंह के काल (1705-1723 र्इ0) में हुआ था। परिसर में प्रचुर हरियाली और शांति  का वातावरण है। चिडि़यों का झुंड रह-रहकर आसमान को भर लेता है और उनके मधुर कलरव से मंडोर का उधान गुंजित हो जाता है। पता नहीं चलता कि वे आगंतुकों के लिए स्वागत गीत गा रही हैं या स्वयं के रनिवास में होने का उत्सव मना रही हैं। दूसरी ओर उधान में लगभग 120 फुट ऊंचा फव्वारा अपनी छटा बिखेर रहा होता है और मद्धिम फुहारों से मन को रोमांचित कर देता है। उद्यान परिसर में ही बने मंदिर की वास्तुकला और महीन नक्काशी  कम जादू नहीं करती। फव्वारे से ऊपर की तरफ हमने कुछ लोगों को आते-जाते देखा तो उत्सुकतावश  हम भी उधर ही चल पड़े। ऊपर पहाड़ी पर एक छोटा सा मंदिर था और बहुत से ध्वंसावशेष । महेश मंदिर अवशेष  और विष्णु  मंदिर अवशेष को देखकर फिर एक बार लगा कि तालिबानी मानसिकता की पृष्ठभूमि  में कोर्इ धर्मांध अपने धर्म को श्रेष्ठ  मानकर एक सुंदर संरचना को जमींदोज करके अपनी नजरों में ऊंचा उठ गया होगा और मानवता का इतिहास रोता रह गया होगा।
राग चित्रांकन    

        अगली सुबह हमारा पहला कार्यक्रम मेहरानगढ़ का किला देखना था। मेहरानगढ़ का किला काफी ऊंचार्इ पर बना है और किलों के प्रदेश राजस्थान में इसका बहुत महत्त्व है। यह दुर्ग एक ऊंची पहाड़ी पर बना है और इसकी खड़ी चारदीवारी इसे अतिरिक्त भव्यता प्रदान करती है। इस किले का निर्माण राव जोधाजी द्वारा सन 1454 में किया गया था। मेहर का अर्थ सूर्य होता है और राठौड़ों ने सूर्यवंशी होने के कारण इस किले को मेहरानगढ़ नाम दिया। क्षेत्रफल में यह दुर्ग बहुत विशाल  तो नहीं है किंतु वास्तु और महत्ता में किसी भी दुर्ग से कमतर नहीं है। दुर्ग की ऊंचार्इ तक पहुंचने में एक सामान्य व्यक्ति  को कम पसीना नहीं बहाना पड़ता है। दुर्ग के प्रथम पोल पर टिकटघर है जहां से टिकट लेकर ही किले में प्रवेश किया जा सकता है और फिर राव जोधाजी का फलसा पार करते हुए तीसरे पोल से दुर्ग में प्रवेश  हो पाता है। यहां राजस्थानी वेशभूषा  में (केशरिया साफा धारण किए) शहनार्इ वादकों का मधुर शहनार्इ वादन चढ़ार्इ की सारी थकान दूर कर देता है। किले के अंदर स्थापित संग्रहालय राजपूताना इतिहास की सुंदर झलक दिखाता है। किले के पीछे की तरफ स्थापित तोपखाना किले को और भी भव्यता प्रदान करता है। यहां से पूरे जोधपुर शहर को एक दृष्टि में देखा जा सकता है।



किले की नक्काशी        छाया : हरिशंकर राढ़ी 

विष्णु मंदिर ध्वन्शावशेष के सामने लेखक 

      किले में कर्इ दरवाजे हैं और सुरक्षा की दृष्टि से कभी ये बहुत महत्त्वपूर्ण रहे होंगे। इस दुर्ग में कर्इ खण्ड बने हुए हैं जिन्हें आवश्यकता  और स्तर के अनुसार प्रयोग किया जाता रहा होगा। उनमें मोतीमहल, शीश महल और फूलमहल प्रमुख हैं। मोतीमहल में राजा का दरबार लगा करता था और वह प्रजा से मुखातिब हुआ करता था। शीश महल में दीवारों पर शीशे जड़े हुए हैं जो कि प्रकाश  के प्रकीर्णन में वृद्धि करके भवन की सुंदरता प्रदान करते थे। फूलमहल  में राजा सुंदर नर्तकियों के नर्तन से अपना मनोरंजन किया करता था। इसके अतिरिक्त जनाना डयोढ़ी भी देखने लायक है। दुर्ग में ही सिथत चामुंडा माता का मंदिर है जो राव जोधाजी की इष्टदेवी  थीं।
मेहरान  गढ़ का किला                                 छाया:   हरिशंकर राढ़ी 

        मेहरानगढ़ का किला देख लेने के बाद हमारा अगला पड़ाव जसवंत थड़ा था। रिमझिम-रिमझिम बारिश  हो रही थी। अगस्त का मध्य था और राजस्थान में बारिश  का महत्त्व ही अलग होता है। जसवंथ थड़ा मेहरानगढ़ से बमुश्किल एक किलोमीटर की दूरी पर होगा और दुर्ग की उंचाइयों से साफ-साफ दिखता है। हम तीनों ही  पैदल चलने के शौकीन हैं और निर्णय हुआ कि बारिश  का आनंद लेते टहलते-टहलते निकल लेते हैं। आटो वाले वैसे भी जो किराया मांग रहे थे वह तार्किक नहीं था।
मंडोर उद्यान में मंदिर 
मंडोर उद्यान में इष्ट देव  सांकृत्यायन 

   
        जसवंत थड़ा जोधपुर के प्रसिद्ध राजा जसवंत सिंह द्वितीय की स्मृति में बनवाया गया एक सुंदर भवन है। इसे राजा जसवंत सिंह के पुत्र राजा सरदार सिंह ने 1899 में मकराना से लाए गए संगमरमर के पत्थरों से बनवाया था। यहां महराजा जसवंत सिंह की छतरी मंदिर के आकार में बनार्इ गर्इ है। इससे पूर्व मारवाड़ के राजाओं और महारानियों का अंतिम संस्कार मंडोर में होता था जो वहां की तत्कालीन राजधानी थी। महाराजा जसवंत सिंह को जोधपुर में देवता की भांति पूजा जाता था और उनके प्रति वहां के निवासियों  का सम्मान जसवंत थड़ा के रूप में देखा जा सकता है। इस भवन की सुंदरता को चांदनी रात में निहारने के लिए पर्यटक दूर-दूर से आते हैं। प्रात: आठ बजे से सायं आठ बजे तक इसकी सुंदरता का आनंद लिया जा सकता है और इसके लिए हल्का प्रवेश  शुल्क भी चुकाना पड़ता है।
जसवंत थडा 
         जोधपुर जाकर उम्मेद पैलेस न देखा जाए और देखकर भी उसका बयान न किया जाए तो जोधपुर यात्रा का कोर्इ अर्थ नहीं रहता। उम्मेद भवन पैलेस जोधपुर की शान और पहचान है। मेहरानगढ़ दुर्ग के बाद यही एक भवन है जो जोधपुर की राजतंत्रीय विरासत की पहचान है और ब्रिटिश कालीन भारत में निर्मित अंतिम महल है। यह भवन छीतर पत्थरों द्वारा निर्मित है। राठौड़ वंश  के अंतिम शासक महाराज उम्मेद सिंह ने इस भवन का निर्माण 1929 में शुरू करवाया था और लगभग सोलह वर्षों  में यह भवन तैयार हो पाया था। इसके निर्माण के पीछे केवल वैभव प्रदर्शन  नहीं था बलिक लोककल्याण की भावना छिपी थी। दरअसल उस समय भीषण अकाल से जूझते स्थानीय निवासियों को रोजगार देने के लिए इसका निर्माण किया गया था। यह भी कहा जाता है कि 347 कमरों वाला यह भवन अपने निर्माण के समय विश्व का सबसे बड़ा निजी आवासगृह था। यह भी एक तथ्य है कि महाराज उम्मेद सिंह पाश्चात्य  स्थापत्य कला के दीवाने थे और उन्होंने इसके निर्माण के लिए एडवर्ड लुटियन के समकालीन और समकक्ष वास्तुकार हेनरी वान लैशेस्टर की सेवाएं ली थीं। आज भी इसकी भव्यता देखते ही बनती है। वर्तमान में इसमें एक संग्रहालय खोल दिया गया है और इसका एक बड़ा हिस्सा पांच सितारा होटल में तब्दील कर दिया गया है।
        जोधपुर के निकटवर्ती अन्य दर्शनीय स्थलों में कर्इ झीलें हैं जिनमें कायलाना झील प्रमुख है। यह झील शहर से आठ किमी की दूरी पर सूरसागर रोड पर सिथत है। चारों  तरफ से पहाड़ी से घिरी होने के कारण यह बहुत सुंदर दिखती है। कायलाना के ही निकट माचिया सफारी पार्क भी पर्यटकों को बहुत आकर्षित करता है।
        जोधपुर और उसके आस-पास देखने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन हर पर्यटक के पास इतना समय नहीं होता कि सब कुछ देख सके और उसे अपनी मजबूरियों के मद्देनजर सफर को समेटना पड़ता है। आखिर दुनिया है भी तो बहुत बड़ी और घूमने-देखने के लिए बहुत कुछ बचा रह जाता है। उम्मेद पैलेस देखते-देखते शाम घिर आर्इ थी और दिल्ली के लिए मंडोर एक्सप्रेस हमारा इंतजार कर रही थी। शहर के अंदरूनी हिस्सों का भ्रमण हमने पहले ही कर लिया था। हां, जोधपुर की कचौडि़यां (विशेषतः  प्याज की) खाना हम नहीं भूले थे। राजस्थान के शहर अपने स्वादिष्ट  व्यंजनों का अलग आकर्षण रखते हैं।
उमेद सिंह पैलेस 
        खाने के अलावा जोधपुर की बंधेज की साडि़यां और लाख की चूडि़यां बहुत मशहूर हैं। लाख की चूडि़यों पर इस शहर और आस-पास की एक बहुत बड़ी जनसंख्या निर्भर है किंतु सिंथेटिक जमाने में इनकी घटती मांग ने लाख के कारीगरों के पेट पर लात मारना शुरू  कर दिया है। ये दोनों चीजें यहां की विशेष पहचान हैं इसलिए मैंने और हमने भी साडि़यां और चूडि़यां खरीदीं। आखिर पत्नी को तो खुश करना ही था।
            नि:संदेह जोधपुर एक आकर्षक पर्यटन स्थल है। लेकिन, अधिकांश  पर्यटक इस ऐतिहासिक शहर को घूमकर वापस चले जाते हैं। बहुत ही कम लोगों को मालूम होता है कि इस शहर से थोड़ी दूर एक पर्यावरण बलिदान स्थल भी है और उसे देख आना ही उन बलिदानियों के प्रति श्रद्धांजलि है। यदि हमें पर्यावरण की तनिक भी चिंता होती तो आज प्रकृति को हम इतना दमघोंटू बनाकर ही क्यों रखते? बिना किसी पुरस्कार और प्रचार की लालच में यदि कुछ लोग वृक्ष जैसी जड़ सृष्टि की रक्षा के लिए गर्दन कटवा दें तो कटवाते रहें, हमें क्या? हम तो आधुनिक और विकसित हैं। अपने जैसे दूसरे मनुष्य की गर्दन को हम गर्दन समझते ही कब हैं? फिर क्यों याद करें खेजड़ली जैसे छोटे से गांव को, जंगल में मोर नाचा किसने देखा?




                                         

Comments

  1. बहुत अच्छा.पूरा संस्मरण ताजा हो गया.

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  2. सुंदर यात्रा वृतांत और जानकारी..... इस धरोहर को सहेजना हर भारतीय की जिम्मेदारी है

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  3. सुन्दर दृश्य, विस्तृत विवरण

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  4. Very beautiful pandyji jodhpur happy jurnai

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  5. Very beautiful pandyji jodhpur happy jurnai

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