आलेख गोस्वामी बिंदु जी की संगीतमय भक्ति - हरिशंकर राढ़ी Hari Shanker Rarhi इसे हिंदी साहित्य एवं संगीत का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि भक्तिकाल के बाद आए भक्तिकाव्य को साहित्य में स्थान नहीं दिया गया। कुछ तो सामयिक आवश्यकताओं के अनुसार वैचारिक बदलाव , कुछ नई विचारधारा का आगमन तो कुछ भक्ति साहित्य को पिछड़ा एवं अंधविश्वास मानने वाली पाश्चात्य सोच। माना कि उन्नीसवीं एवं बीसवीं सदी की परिस्थितियाँ कुछ और थीं , विदेशी सत्ता , भूख , अत्याचार और अंधविश्वासों से छुटकारा पाने की जिद थी और उसी के अनुसार भक्ति से इतर साहित्य की आवश्यकता थी , फिर भी यदि कुछ अलग और स्तरीय लिखा जा रहा था तो उसे उपेक्षित भी नहीं किया जाना चाहिए था। हम कितने भी आगे बढ़ जाएँ , कितने भी वैज्ञानिक सोच के हो जाएँ , लेकिन हम कबीर , रैदास , सूरदास , तुलसीदास , मीराबाई और रसखान को तो उपेक्षित नहीं कर सकते। बीच में इस परंपरा में अच्छे-बुरे सब आए होंगे , किंतु एक बार हम गोस्वामी बिंदु जी का भक्ति साहित्य , उसका भाव एवं संगीत देख लेते तो उन्हें इसी परंपरा में बैठाते , भले ही उनकी उत्पादकता उपरोक्त संत क
रामेश्वरम में
हरिशंकर राढ़ी दोपहर बाद का समय हमने घूमने के लिए सुरक्षित रखा था और समयानुसार ऑटोरिक्शा से भ्रमण शुरू भी कर दिया। पिछले वृत्तांत में गंधमादन तक का वर्णन मैंने कर भी दिया था। गंधमादन के बाद रामेश्वरम द्वीप पर जो कुछ खास दर्शनीय है उसमें लक्ष्मण तीर्थ और सीताकुंड प्रमुख हैं। सौन्दर्य या भव्यता की दृष्टि से इसमें कुछ खास नहीं है। इनका पौराणिक महत्त्व अवश्य है । कहा जाता है कि रावण का वध करने के पश्चात् जब श्रीराम अयोध्या वापस लौट रहे थे तो उन्होंने सीता जी को रामेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए, सेतु को दिखाने के लिए और अपने आराध्य भगवान शिव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए पुष्पक विमान को इस द्वीप पर उतारा था और भगवान शिव की पूजा की थी। यहाँ पर श्रीराम,सीताजी और लक्ष्मणजी ने पूजा के लिए विशेष कुंड बनाए और उसके जल से अभिषेक किया । इन्हीं कुंडों का नाम रामतीर्थ, सीताकुंड और लक्ष्मण तीर्थ है । हाँ, यहाँ सफाई और व्यवस्था नहीं मिलती और यह देखकर दुख अवश्य होता है। स्थानीय दर्शनों में हनुमान मंदिर में (जो कि बहुत प्रसिद्ध और विशाल नहीं है) तैरते पत्थरों के दर्शन करना