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Showing posts from December, 2008

पढ़ती थी तूम मेरे लिये किताबें

पढ़ती थी तूम मेरे लिये किताबें अच्छी किताबें,सच्ची किताबें, मेरा होता था सिर तेरी आगोश मे तेरे बगल में होती थी किताबें। हंसती थी तू उन किताबों के संग रोती थी तू उन किताबों के संग, कई रंग बदले किताबों ने तेरे कई राज खोले किताबों ने तेरे। जब किताबों से होकर गुजरती थी तुम चमकती थी आंखे,और हटाती बालें, शरारतों पर मुझको झिड़कने के बाद फिर तेरी आंखों में उतरती थी किताबें। होठों से तेरी झड़ती थी किताबें मेरे अंदर उतरती थी किताबें, डूबी-डूबी सी अलसायी हुई हाथों में तू यूं पकड़ती थी किताबें । चट्टानों से अपनी पीठ लगाये हुये सुरज ढलने तक तूम पढ़ती थी किताबें, अंधरे के साया बिखरने के बाद बड़े प्यार से तुम समेटती थी किताबें । उलटता हूं जब अपनी दराजों की किताबें हर किताब में तेरा चेहरा दिखता है, चल गई तुम, पढ़ कर मेरी जिंदगी को मेरे हिस्से में रह गई तेरी किताबें। शब्द गढ़ता हूं मैं तेरी यादों को लेकर तेरी यादों से जुड़ी हैं कई किताबें, मेरे प्यार का इन्हें तोहफा समझना तेरी याद में लिख रहा हूं कई किताबें।

थिंकर की बीवी

क्या सभ्यता के विकास की कहानी हथियारों के विकास की कहानी है ? इनसान ने पहले पत्थरों को जानवरों के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया,फिर लोहे को और अब आणविक शक्तियों से लैस है,यह क्या है? हथियारों के विकास की ही तो कहानी है !!! पृथ्वी पर से अपने वजूद को मिटाने के लिए इनसान वर्षो् से लगा हुआ है। थिंकर की आंखे दीवार पर टीकी थी, लेकिन उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। दीमाग में एक साथ कई बातें घूम रही थी। गैस बंद कर देना, दूध चढ़ा हुआ है,बाथरूम से पत्नी की आवाज सुनाई दी। गैस चूल्हे की तरफ नजर पड़ते ही उसके होश उड़ गये। सारा दूध उबल कर चूल्हे के ऊपर गिर रहा था। सहज खतरे को देखते हुये उसने जल्दी से चूल्हा बुताया और गिरे हुये दूध को साफ एक कपड़े से साफ करने लगा। लेकिन किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया और बीवी उसके सिर पर आकर खड़ी हो गई। तुम्हारी सोचने की यह बीमारी किसी दिन घर को ले डूबेगी। तुम्हारे सामने दूध उबल कर गिरता रहा और तूम्हे पता भी नहीं चला...हे भगवान मेरी किस्मत में तुम्ही लिखे थे। घर में दो छोटे-छोटे बच्चे हैं..अब खड़ा खड़ा मेरा मूंह क्या देख रहे हो। जाओ, जाकर दूध ले आओ। बीवी की फटकार

युद्ध ! युद्ध !! युद्ध !!!

बहुत बकबास सुनाई दे रहा है चारो तरफ, युद्ध युद्ध युद्ध ! क्या होता है युद्ध? तीन घंटे की फिल्म,ढेर घंटे का नाटक, ट्वेंटी-ट्वेंटी का क्रिकटे मैच, कविता पाठ ? क्या होता है यह युद्ध? युद्ध में मौत तांडव करता है और खून बहती है, गरम-गरम। इनसानी लोथड़े इधर से ऊधर बिखरते हैं और धरती लाल होती है। युद्ध ब्लॉगबाजी नहीं है। एक बार में सबकुछ ले उड़ेगी। जमीन थर्रायेगा, आसमान कांपेगी और हवाएं काली हो जाएगी, क्योंकि दुनिया परमाणु बम पर बैठी हुई है। लोग सांस के लिए तरसेंगे। चलो माना कि रगो में लहू दौड़ रही है। और जब लहू उफान मारेगी तो युद्ध का उन्माद खोपड़ी पर चढ़ेगा ही। कोई समझा सकता है कि युद्ध का उद्देश्य क्या है??? अब यह मत कहना कि पाकिस्तान को सबक सीखाना है। यह सुनते-सुनते कान पक चुका है। जिस वक्त पाकिस्तान का जन्म हो रहा था, उसके बाद से ही उसे सबक सीखाने की बात हो रही है। अब यह सबक सीखाने का तरीका क्या होगा ? सेना लेकर पाकिस्तान के अंदर घुस जाना और कत्लेआम करते हुये इस्लामाबाद की ओर बढ़ना ? यह सबकुछ करने में कितना समय लगेगा ? सेना में जमीन स्तर पर रणनीति तैयार करने वालों से पूछों। वो भी दावे

न तुमने निभाई,न हमने निभाया

कसमें खाई थी संग-संग हमने न तुमने निभाई,न हमने निभाया । एक अनजानी डगर पे संग चले थे मीलों न तुझे होश थी,न मैं कुछ जान पाया। दुरियों के साथ मिटते गये फासले मैं जलता गया,औ तुम पिघलती गई। तुझे आरजू थी,मेरी नम्र बाहों की मुझे आरजू थी तेरी गर्म लबों की। दामन बचाना मुश्किल हुआ तूम बहती रही, हम बहकते रहे। टपकता रहा आंसू तेरी आंखों से मेरी रातों की नींद जाती रही । चांद तले हम संग सफर में रहे न मैं कुछ कहा, न तू कुछ कही । तेरी धड़कन मेरी सांसों में घुली खामोश नजरों ने सबकुछ कहे । नये मोड़ पर नई हवायें बही मैं भी ठिठका,और तू भी सिहरी । छुड़ाया था दामन हौले से तुमने मैंने भी तुझको रोका नहीं था । हवाओं के संग-संग तू बह चली थी घटाओं में मैं भी घिरता गया था। बड़ी दूर तक निकलने के बाद खाली जमीं थी,खुला आसमां था। गुजरे पलों को समेटू तो कैसे आगे पथरीला रास्ता जो पड़ा है ? तुझे भी तो बढ़ना है तंग वादियों जमाने की नजरे तुझपे टिकी है मोहब्बत की मर्सिया लिखने से पहले दफन करता हूं मै तेरी हर वफा को तुमसे भी ना कोई उम्मीद है मुझको लगाये न रखो सीने से मेरी खता को कसमें खाई थी संग-संग हमने न तुमने निभाई, न हमन

कामांध समूह की लौंडी है सेक्यूलरिज्म

इंग्लैंड के एक राजा परकामुकता सवार होती है, एक महिला को पाने की जिद। इसायित को संगठन के तौर पर इस्तेमाल कर रहा एक गिरोह उसकी राह में खड़ा होता है. हर तरह की तिकड़मबाजी और घूसखोरी चलती है,लेकिन अंदर खाते। नीति, कूटनिती को ताक पर रखकरवह राजा आगे बढ़ता है इसायित की चाबूक से त्रस्त जनताराजा के पक्ष में कमर कसती है। धर्म को राजनीति से बेदखल करते हुये राजा अपनी जिद पूरा करता है.. अपनी मन पसंद महिला को अपनी बाहों में भरता है, वैधानिक तरीके से। और इसके साथ ही धर्म पर राज्य की विधि स्थापित होती है और यहीं से सेक्यूलरिज्म का बीज छिटकता है. सेक्यूलरिज्म एक कामांध राजा के दिमाग की उपज है.. .और अब इसका इस्तेमाल सत्ता के लिए कामांध समूह कर रहा है..अनवरत। विज्ञान कहता है,कोई भी चीज निरपेक्ष नहीं होती सेक्यूलरिज्म कामांध समूह की लौंडी है, बजाते रहो.

इसे मैंने भी चुराई थी

वो रसियन जूते थे, भूरे-भीरे। उनके फीतों में लोहे के बोल्ट लगे थे। दाये पैर के जूते के मुंह पर एक बड़ा सा छेद था, जॉन बनार्ड शा की काली कोट की तरह। याकोब उन जूतों से बेहद प्यार करता था। उन जूतों ने दुनियाभर की घाटियों में उसका खूब साथ दिया था। महानगरों की सड़कों पर चलने में उसे मजा नहीं आता था। याकोब से कई बार दोनों जूतों ने एक साथ शिकायत किया था कि महानगरों की हवायें उसे उच्छी नहीं लगती, उन्हें खुली हवायें चाहिए। लेकिन याकोव के सिर पर महानगरों में रहने की जिम्मेदारी थी, और इस जिम्मेदारी से वह चाहकर भी नहीं भाग सकता था। एक दारूखाने में उसे रात गुजरानी थी,छककर शराब पीते हुये, चार लोगों के साथ। बड़ी मुश्किल से इस बैठक में शामिल होने की उसने जुगत लगाई थी। चेचेन्ये में एक थियेटर को कैप्चर करने की योजना पर बनाई जा रही थी। याकोब जमकर उनके साथ पीता रहा। सुबह उसके जूते गायब हो चुके थे। उनचारों में से किसी एक ने चुरा लिया था। वे जूते उससे बातें करती थी, जंगलों में, घाटियों में, दर्राओं में, नदियो में। कमांडर, क्या सोंच रहों हों, एक साथी ने पूछा। अपनी जूतों के विषय में, वो तूम्हारे पैरों मे

चोरी के मामले में इस्लाम वाला कानून सही

ले लोटा, इ बतवा तो बिल्कूल सही है कि यहां लोग बिजली के तरवे काट लेता है,और उसको गला-गुलाकर के बेचकर दारू पी जाता है या सोनपापड़ी खा जाता है। इहां के अदमियन के कोई कैरेक्टरे नहीं है। लगता नहीं कि बिना डंडा के ये सुधरेंगा सब. मेरे गंऊआ में एक पहलवान जी थे, किसी को भी दबाड़ देते थे। उन्हीं की कृपा से आज तक मेरे गंऊआ बिजली नहीं आयी, जबकि सरकार ने सबकुच पास कर दिया था, यहां तक की तार और पोल भी गिर गये थे। पहलवान जी की अपनी समस्या थी। अपनी बीवी की जब और जैसे इच्छा होती थी भरमन कुटाई करते थे। उनकी कुटाई से त्रस्त आकर वह कई बार कुइंया में छलांग मार चुकी थी, लेकिन हर बार पहलवान जी रस्सी डोल डालकर उसे निकाल लेते थे, और फिर कूटते थे, दे दना, दे दना, दे दना दन। जब गांव में बिजली आने की बात हुई तो किसी ने पहलवान जी के कान में यह बात डाल दी कि गांव में जितनी भी औरतों की कुटाई हो रही है वो बिजली का बहुत बेसब्री से इंतजार कर रही हैं, क्योंकि बिजली के तार में लटककर मरना आसान है। फिर क्या था पहलवान जी ने बिजली के खिलाफ शंख फूंक दिया। कसकी मजाल जो पहलवान जी से पंगा ले....गांव वालों ने समझाया, इंजीनियरों

एक धारधार हथियार के तौर पर उभर रहा है ब्लॉग

डॉ.भावना की कविता पर प्रतिक्रया देते हुये संतोष कुमार सिंह ने एक सवाल उठाया है कि भारत की कोख से गांधी, नेहरू, पटेल और शात्री जैसा नेता क्यों पैदा नहीं हो रहे है। अन्य कई ब्लॉगों पर की गई टिप्पणियों में भी बड़ी गंभीरता के साथ भारत की वर्तमान व्यवस्था पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं। एक छटपटाहट और अकुलाहट ब्लॉग जगत में स्पष्टरूप से दिखाई दे रहा है। विभिन्न पेशे और तबके के लोग बड़ी गंभीरता से चीजों को ले रहे हैं और अभिव्यक्त कर रहे हैं। डा. अनुराग, ज्ञानदत्त पांडे, ताऊ रामपुरिया, कॉमन मैन आदि कई लोग हैं, जो न सिर्फ अपने ब्लॉग पर धुरन्धर अंदाज में की-बोर्ड चला रहे हैं, बल्कि अन्य ब्लॉगों पर पूरी गंभीरता के साथ दूसरों की ज्वलंत बातों को पूरी शालीनता से बढ़ा भी रहे हैं। प्रतिक्रियाओं में चुटकियां भी खूब ली जा रही हैं, और ये चुटकियां पूरी गहराई तक मार कर रही हैं। सुप्रतिम बनर्जी ने एक सचेतक के अंदाज में अभी हाल ही में एक आलेख लिखा है दूसरो का निंदा करने का मंच बनता ब्लॉग। यानि ब्लॉगबाजी को लेकर हर स्तर पर काम हो रहा है, और लोग अपने खास अंदाज में बड़ी बेबाकी से सामने आ रहें हैं। अभिव्यक्ति का द

ये सच दिखाते हैं,हर कीमत पर

सूनो, सूनो, सूनो कान खोल कर सूनो दिल थाम कर सुनो टीवी चैनलों के खिलाफ देश में एक गहरी साजिश चल रही है. आतंकियों ने इनके कनपटे पर बंदूक ताना था,लेकिन मारा नहीं क्योंकि ये प्रेस-प्रेस चिल्लाये थे . इनके अगल-बगल से गोलियां गुजरती रही लेकिन सीने से एक भी गोली नहीं टकरायी क्योंकि गोलियों को पता था ये प्रेस है. सड़कों पर फटा ग्रेनेड के छींटे इनके कैंमरे से होते हुये,न्यूजरूम में पहुंच गये दो सकेंड के लिए थम गई इनकी सांसे साठ घंटे तक ये लोग डटे रहे टीआरपी के लिए नहीं,पत्रकारिता के लिए खूब की पत्रकारिता, आतंकवाद के कवरेज पर इन्हें गर्व है अपनी जान जोखिम में डालकर इन्होंने सच परोसा इन्हें किसी की सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है क्योंकि ये सच दिखाते हैं,हर कीमत पर। सरकार में बैठे हुये लोगों ने इनकी सराहना की है ...जिम्मेदारी के साथ काम किया इन लोगों ने. अपनी पीठ थपथपाने के बाजाये भाई लोग, शीशे के कमरे से बाहर निकलो आम आदमी की आंखों में झांको और पता लगाओ कौन से सवाल तैर रहे हैं उनकी आंखों में मैं बताता हूं 12 घंटे तक एक ऑफिस में काम करने वाले एक व्यक्ति का सवाल सूनो यह मासूम सवाल.... यदि मेरी अंतोनो

घंटा न कुछ उखड़ेगा डेमोक्रेसी का

सलाखों के पीछे बंद सुकरात से पहरे पर खड़े एक सैनिक ने कहा था, तुम इस जेल से भाग जाओ,क्योंकि मुझे पता हैं कि ये लोग जघन्य अपराध कर रहे हैं। मुस्कराते हुये सुकरात ने जवाब दिया था, लोकतंत्र के इन पहरेदारों को पता होना चाहिए कि मेरी मौत से यह डेमोक्रेसी और मजबूत होगी। सुकरात की मौत पूरी तरह से डेमोक्रेटिक थी मतदान हुये थे---मौत के पक्ष और विपक्ष में। अंतिम फैसला के बाद सुकरात ने विष के रूप में अपने लिए मौत का प्याला खुद चुना था ---------एक सच्चे डेमोक्रेट की तरह। बंदुक के साये में घूमने वाले नेताओं की रखैल नहीं है डेमोक्रेसी... इसके नाम पर अब और दलाली और धंधेबाजी नहीं, बस बहुत हुआ। डेमोक्रेसी मेरी बीवी है, जो लड़ती है, झगड़ती है और मुझे प्यार करती है। और मैं भी इससे प्यार करता हूं, डेमोक्रेसी को मैं हाथ में विष का प्याला लिये सुकरात के मुस्कराते हुये होठों पर देखता हूं और उनलोगों के चेहरे को भी पहचानता हूं जो डेमोक्रेसी को उसी के नाम पर जहर दे रहे हैं इन चेहरों को नोंचने से घंटा न कुछ उखड़ेगा डेमोक्रेसी का।

अब तुम्हारे होने का अहसास नहीं होता

(अपनी प्रेयसी के लिए) अब तुम्हारे होने का अहसास नहीं होता तुम्हारी आंखों से टपकती थी जिंदगी और अधखुले होठों से फूल बरसते थे तुम्हारे गेसुओं की महक मुझे खींच ले जाती थी परियों के देश में रुनझून रुनझून सपने,गहरे चुंबन फिजा में तैरती हुई सर्द हवायें और इन सर्द हवाओं में तेरी सांसों की गरमी रफ्ता-रफ्ता बढ़ती हुई जिंदगी और उफान मारता प्यार का सैलाब हां दोस्त,तुने मुझसे बेपनाह मोहब्ब्त की और मैंने भी तुझे हर ओर से समेटा लेकिन अब तुम्हारे होने का अहसास नहीं होता ताज की गुंबदों से निकलने वाली लपटों ने मेरे जेहन में तेरे वजूद का स्थान ले लिया है गगनगनाकर निकलती हुई गोलियां और लोगों की चीखे सड़कों पर फैले हुये खून,और सिसकियों ने तुझे मेरे दिल से बेदखल कर दिया है मैं चाहता हूं, तू एक बार फिर सिमटे मेरी बाहों में और एक बार फिर मैं तेरी गहराइयों में डूबता जाऊं लेकिन आने वाले समय की पदचाप सुनकर मैं ठिठक जाता हूं,और शून्य में निहारता हूं फिर रिसने लगता है खून मेरी आंखों से तुम डूबती थी मेरी आंखों में,यह कहते हुये कितनी अच्छी और सच्ची है तुम्हारी आंखे क्या मेरी आंखों से रिसते हुये खून को तुम देख पाओ

वो दढ़ियल पत्रकार भाई क्या बोलता है

बाप अपुन जो भी बोलेगा बिंदास बोलेगा,क्या ? वो क्या बोलता है, किसी को मिर्ची लगती है तो लगे। साला तुम नेता लोग अपुन लोग का हड्डी तक तक को चूस गया है। अपुन तो पब्लिक है, कुछ भी बोल सकता है , और क्यों नहीं बोलने का ? साला तुम लोग चुनाव कराता है, देश में दंगा करता है ऊधर संसद में जाकर नंगा होता है, अपुन सब समझता है, लेकिन तेरे का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। लेकिन आपुन को भौंकने से तू नहीं रोक सकता है। आपुन भौंकेगा और खूब जोर जोर से भौकेगा और आपुन के साथ-साथ अखा पब्लिक भौंकेगा, तेरे को मालूम होना मांगता कि जब एक कुत्ता भौंकता है तो उसके साथ साला अखा कुत्ता भौंकता है। साला इस बार सड़को पर दिखाई देगा ना, तो अपुनलोग तेरे को काटेगा भी, ये देख,एसा दांत गड़ाएगा, बिंदास। वो दढ़ियल पत्रकार भाई क्या बोलता है, साला तुमलोग सुरक्षा में घूमता है, ब्लैक कैट लेकर,लेकिन अपुन लोग डॉग है, डॉग ! जब आपुन लोग भौंकेगा तो सारा ब्लैक कैट भाग जाएगा। यईच बात है। और साला तेरे को काटेगा भी, दौड़ा-दौड़ा कर काटेगा। तुम लोग साला हलकट है, हलकट। अपुन साला कमर तोड़ करके काम करता है, चोरी नहीं करता,हराम की नहीं खाता। दा

आतंकवाद का जूठन खाकर मोटी होती मीडिया

यदि गौर से देखा जाये तो आतंकवाद और मीडिया दोनों विश्वव्यापी है और विश्व व्यवस्था में दोनों के आर्थिक तार एक दूसरे से जुड़े हुये है। मीडिया को खाने और उगलने के लिए दंगे, फसाद और युद्ध चाहिये और इसी जूठा भोजन के सहारे मीडिया पल बढ़ कर मोटी होती है। आतंकवाद एक तरफ जहां शहरों और लोगों को निशाना बनाकर अपने संगठनों के लिए अधिकतम संशाधनों की जुगाड़ करता है वहीं मीडिया आतंकवाद के जूठे को परोसकर उसे महिमामंडित करते हुये अपने लिए अधिक से अधिक से कमाई करती है। वैश्विक स्तर पर दोनों एक दूसरे को पाल पोस रहे हैं, हालांकि इस जुड़ाव का अहसास मीडिया को नहीं हैं और हो भी नहीं सकता, क्योंकि मीडिया के पास ठहरकर सोचने का वक्त कहां हैं। वैसे मीडिया में आर्थिक मामलों (मैनेजमेंट)से जुड़े लोगों को इस बात का पूरा अहसास है कि मुंबई में हुये हमलों के बाद मीडिया में बूम आ रहा है और इसी तरह के दो चार हमलें और हो गये तो कम से कम मीडिया का धंधा तो आर्थिक मंदी के दौर से निकल हीजाएगा। मीडिया एक संगठित उद्योग की तरह पूरी दुनिया में काम कर रही है। मुंबई हमले के बाद मीडिया के शेयरों में उछाल की खबरें आ रही हैं। चूंकि

मुंबई पुलिस का मोबाईल संदेश

मुंबई पुलिस की ओर से एक मोबाइल संदेश जारी किया गया है जो इस प्रकार है...एसएमएस के जरिये स्कूलों और अस्पतालों पर संभावित आतंकी हमलों को लेकर अफवाह फैलाये जा रहे हैं। हम सभी शहरी को शहर की सुरक्षा के प्रति आश्वस्त करते हैं। शहर पूरी तरह से सुरक्षित है। चिंता न करे और अफवाह को फैलने से रोके। यदि आतंकियों के विषय में इस तरह के एसएमएस किसी के पास आते हैं तो उन्हें इधर-उधर फेंकने के बजाय, प्रोपर ऑथोरिटी तक पहुंचाना बेहतर होगा, संदेश को इधर-उधर फेंकना या चेपना एक गैरजिम्मेदार कदम है। यदि दिल्ली में इस तरह का कोई एसएमएस दौड़ रहा है तो अधिक सावधानी की जरूरत है। यदि वहां की ऑथोरिटी पर यकीन नहीं है तो खुद जाकर देखें....राष्टीय सुरक्षा के नाम पर इतनी ड्यूटी तो की ही जा सकती है, लेकिन प्लीज पब्लिक फोरम पर एसी खबरे न प्रेषित करें। मुंबई में एसे एमएमएस पिछले कई दिनों से हवा में तैरते हुये मोबाईल सेट पर धावा बोल रहे हैं। स्टाप इट !!!

डर गये है गांधी

मुंबई पर आतंकी हमले के बाद गांधी फिल्म में गांधी की भूमिका के लिए ऑस्कर पुरस्कार हथियाने वाले बेन किंग्सले डरे हुये हैं और इसी कारण वह अपनी फिल्म बुद्ध की शूटिंग को टालने की बात कर रहे हैं। बुद्ध फिल्म की शूटिंग अगले साल भारत में किये जाने की योजना बहुत पहले से बन रही थी और इस फिल्म से जुड़ी पूरी यूनिट भारत आने की तैयारी में थी। ब्रिटिश इंडेपेंडेंड फिल्म अवार्ड में एक रेडियो से बातचीत के दौरान मुंबई में आतंकी हमले से हैरान परेशान बेन किंग्सले ने कहा है कि इस घटना से हमारा प्रोजेक्ट बूरी तरह से प्रभावित हुआ है और फिलहाल हम भारत नहीं जा रहे हैं। अब प्रोजेक्ट को भारत में शूट करने का निर्णय हमारे फायनेंसर और प्रोड्यूसर करेंगे। यह फिल्म उद्योग पर आतंकवाद की एक बहुत बड़ी मार है। विश्वव्यापी आर्थिक मंदी से मुंबई का फिल्म उद्योग पहले से चरमराया हुआ है। बेन किंग्सले भारत में बुद्ध फिल्म भी शूटिंग के अलावा यहां पर और भी दो फिल्मों की शूटिंग की योजना बना रहे थे। अपनी अगली दो फिल्मों के विषय में फिलहाल वह कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं हैं। इस मामले पर कुछ बोलने की स्थिति में तो अभी गांधी जी

फ्रेश लीडरशीप की बात कर रहे हैं आमिर खान

आमीर खान अपने ब्लॉग पर वर्तमान हालात को लेकर गंभीर चिंता करते हुये दिख रहे हैं। फिल्मी दुनियां में काम करने वाले लोग जानते हैं कि आमीर एक गंभीर इनसान हैं और कई बार बड़ी बेबाकी से सार्वजिनक जीवन पर टिप्पणी करने के कारण उनकी खूब टांग खीचाई भी हो चुकी है। उनको लेकर लोगों की चाहे जो अवधारणा हो,लेकिन उनकी बातों को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। वे देश में आतंकवाद के लिए सीधेतौर पर प्रमुख राजनीतिक दलों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वह लिखते हैं कि मुंबई में जो कुछ भी हुआ उसके लिए सीधे तौर पर नपुंसक कांग्रेस जिम्मेदार है। इसके पहले इंडियन एयरलायंस 814 के अपहरण के समय भाजपा ने तीन आतंकियों को छोड़कर आतंकवाद को लेकर अपनी नपुंसकता जाहिर कर चुका है। इन घटनाओं से वह सबक सीखने की बात करते हुये कहते है कि आतंकवादियों से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जाना चाहिए। सभी आतंकियों को यह स्पष्ट संदेश दे देना चाहिए कि भारत उनसे किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करेगा। आगे वह लिखते हैं कि भविष्य में मुझे परिवार के साथ यदि आतंकी बंधक बना लेते हैं तो मुझे छुड़ाने के लिए उनसे किसी तरह का समझौता नहीं किया जाना चाहिए। उन्

पत्नी का अंतिम मिस कॉल

दो दिसंबर को इंग्लैंड से निकलने वाले एक अखबार सन में कवर पेज पर एक तगड़ी खबर छपी है। इस खबर में कहा गया है कि आजम ने बताया है कि उसे किस तरह आर्डर अपने आका से दिये गये थे। उसे दो मकदस दिये गये थे। पहला, किसी गोरे को उड़ाना, दूसरा ताज को जलाना। गोरे में खासतौर पर अमेरिकन और ब्रिटेनवासियों पर जोर दिया गया था। यह खबर चीख-चीख कर यह कह रही है कि शैतानों का पहला टारगेट अमेरिका और इंग्लैंड के लोग थे,चूंकि युद्ध क्षेत्र भारत था इसलिए इसलिए यहां पर उत्पात मचाना जरूरी था, और दूसरा टारगेट- ताज-को हिट करने के बाद उन्होंने यहां पर जमकर उत्पाद मचाया। एक तरह से अपने दोनों टारगेटों को हिट करने के बाद वे भारत के साथ गिल्ली डंडा खेल रहा थे। यह एक सफल हमला है, भारत पर नहीं बल्कि अमेरिका और ब्रिटेन पर। भारत तो सिर्फ रणभूमि है। रणभूमि के तौर पर इसका चयन काफी सोंच समझ कर किया जा रहा है। अभी कुछ देर पहले असम भी फिर एक विस्फोट की खबर मिली है,यह गिल्ली डंडा का खेल नहीं है तो और क्या है। निक पार्कर मुंबई से अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं कि मुंबई पर हमला करने वाले गिरोह में दो लड़को संबंध इग्लैंड के लीड्स से है। इ

सभीको सलाम कर.. अपने माई बाप हैं

ये जमूरे हां उस्ताद जो पूछूंगा वो बोलेगा बालूंगा तो बता मेरे हाथ में क्या है डुगडुगी बजाऊ बजाओ उस्ताद डुग डुग डुग डुग डुग... तो भाइयों तमाशा शुरु होता है...चल जमूरे सभी लोगों को सलाम करे...ये अपने माई बाप है....हम तमाशा दिखाते हैं और ये हमारा पेट पालते हैं.. ...लेकिन तुम्हारी डुगडुगी सुनकर तो कोई नहीं आया... ...जमूरे ये क्या हो रहा है, समझ में नहीं आ रहा... ...कोई आएगा कैसे उस्ताद। अब तमाशा तो ऊपर हो रहा है.... ... क्या मतलब... उस्ताद, टेलीविजन वाले अब रियल ड्रामा दिखा रहे हैं, नेता लोग शहीदों को कुत्ते बता रहे हैं..पाटिल जा रहे हैं, चिंदबरम आ रहे हैं..देशमुख अपने बेटे का फिल्मी कैरियर बनाने के लिए रियल लोकेशन खोज रहे हैं...ये सारा ड्रामा पूरा देश रखा है उस्ताद...अब हमें कौन देखेगा... ...जमूरे यह तू क्या बोले जा रहा है.... ....मुंबई में आतंकियों ने जो ड्रामा दिखाया है उसके आगे सबकुछ फीका है...और रहा सहा कसर हमारे हमारे हाई प्रोफाइल पर्लनाल्टी लोग पूरा कर कर दे रहे हैं.... ...अरे जमूरे मैंने तुझे ये सब तो नहीं सिखाया था, कहां से सीखा..... उस्ताद दुनिया चांद पर नगर बसाने जा रही है....

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