इसे मैंने भी चुराई थी
वो रसियन जूते थे, भूरे-भीरे। उनके फीतों में लोहे के बोल्ट लगे थे। दाये पैर के जूते के मुंह पर एक बड़ा सा छेद था, जॉन बनार्ड शा की काली कोट की तरह। याकोब उन जूतों से बेहद प्यार करता था। उन जूतों ने दुनियाभर की घाटियों में उसका खूब साथ दिया था। महानगरों की सड़कों पर चलने में उसे मजा नहीं आता था। याकोब से कई बार दोनों जूतों ने एक साथ शिकायत किया था कि महानगरों की हवायें उसे उच्छी नहीं लगती, उन्हें खुली हवायें चाहिए। लेकिन याकोव के सिर पर महानगरों में रहने की जिम्मेदारी थी, और इस जिम्मेदारी से वह चाहकर भी नहीं भाग सकता था। एक दारूखाने में उसे रात गुजरानी थी,छककर शराब पीते हुये, चार लोगों के साथ। बड़ी मुश्किल से इस बैठक में शामिल होने की उसने जुगत लगाई थी। चेचेन्ये में एक थियेटर को कैप्चर करने की योजना पर बनाई जा रही थी। याकोब जमकर उनके साथ पीता रहा। सुबह उसके जूते गायब हो चुके थे। उनचारों में से किसी एक ने चुरा लिया था। वे जूते उससे बातें करती थी, जंगलों में, घाटियों में, दर्राओं में, नदियो में।
कमांडर, क्या सोंच रहों हों, एक साथी ने पूछा।
अपनी जूतों के विषय में, वो तूम्हारे पैरों में है।
मेरे जूते,यह तो मैंने चुराई थी, एक कमांडर की थी।
मैंने चुराई थी.
मैंने चुराई थी.
बहुत बढिया!!
ReplyDeleteवाह क्या बात है.....
ReplyDeleteधन्यवाद
सच बोलना भी ग़लत नही है .
ReplyDelete... जूते भी कमाल कर गये / कर रहे हैं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
ReplyDeleteB122732EB4
ReplyDeletehacker bulma
hacker kirala
tütün dünyası
hacker bulma
hacker kirala