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मकरन्द छोड़ जाऊँगा

-हरि शंकर राढ़ी जहाँ भी जाऊँगा, मकरन्द छोड़ जाऊँगा। हवा में प्यार की इक गन्ध छोड़ जाऊँगा। करोगे याद मुझे दर्द में , खुशी भी निभा के उम्र भर सम्बन्ध छोड़ जाऊँगा। तुम्हारी जीत मेरी हार पर करे सिजदे निसार होने का आनन्द छोड़ जाऊँगा। मिलेंगे जिस्म मगर रूह का गुमाँ होगा नंशे में डूबी पलक बन्द छोड़ जाऊँगा। बगैर गुनगनाए तुम न सुकूँ पाओगे तुम्हारे दिल पे लिखे छन्द छोड़ जाऊँगा। जमीन आसमान कायनात छोटे कर बड़े जिगर में किसी बन्द छोड़ जाऊँगा। बिछड़ के भी न जुदा हो सकोगे ‘राढ़ी’ से तुम्हारे रूप की सौगन्ध छोड़ जाऊँगा।

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