तुम्हारी आंखें क्रिमिनल की तरह लगती है
आज तक मैंने भूत देखे नहीं है, लेकिन उनके किस्से खूब सुने हैं...इनसान के रुप में आरपी यादव भूत था...पूजा पाठ से उसका दूर दूर तक कोई सरोकार नहीं था, लेकिन खिलाने के नाम पर वह मरघट में भी आ सकता था...उसके बिछापन पर चारों तरफ मार्क्स की मोटी-मोटी किताबें बिखरी रहती थी...और उन किताब के पन्नों पर ही वह पेंसिल से छोटे-छोटे अक्षर में अपने कामेंट्स लिखा करता था...हर चार वाक्य के बाद वह लोहिया का नाम जरूर लेता था...उसके गले में रुद्राक्ष की एक माला हमेशा रहती थी...पंद्रह मिनट पढ़ता था और पैंतालिस मिनट मार्क्स, लोहिया, जेपी आदि की टीआरपी बढ़ाता था...उसकी अधिकांश बातें खोपड़ी के ऊपर बाउंस करते हुये निकलती थी...उसकी जातीय टिप्पणी से कभी -कभी तो मार पीट तक की नौबत आ जाती थी...वह अपने आप को प्रोफेसर कहता था...वह एक एसे कालेज का प्रोफेसर था, जिसे सरकार की ओर से मान्यता नहीं मिली थी...वेतन के नाम पर उसे अठ्ठनी भी नहीं मिलता था, लड़को को अंग्रेजी पढ़ाकर वह अपने परिवार को चला रहा था...कभी-कभी वह अजीबो गरीब हरकत करता था...बड़े गर्व से वह बताता था कि उसके अपने ही जात बिरादरी वाले लोग उसका दुश्मन बन गये हैं...