ब्लैक डाग थ्योरी और स्लम डाग मिलेनियर में समानता
क्या स्लम डाग मिलयेनेयर का इतिहास में स्थापित ब्लैक डाग थ्योरी से कोई संबंध है ? किसी फिल्म को आस्कर में नामांकित होने और अवार्ड पाने की थ्योरी क्या है? कंटेंट और मेकिंग के लेवल पर स्लम डाग मिलयेनेयर अंतरराष्ट्रीय फिल्म जगत में अपना झंडा गाड़ चुकी है, और इसके साथ ही भारतीय फिल्मों में वर्षों से अपना योगदान दे रहे क्रिएटिव फिल्ड के दो हस्तियों को भी अंतरराष्ट्रीय फिल्म पटल पर अहम स्थान मिला है। फिल्म की परिभाषा में यदि इसे कसा जाये तो तथाकथित बालीवुड (हालीवुड का पिच्छलग्गू नाम) से जुड़े लोगों को इससे फिल्म मेकिंग के स्तर पर बहुत कुछ सीखने की जरूरत है, जो वर्षों से हालीवुड के कंटेंट और स्टाईल को यहां पर रगड़ते आ रहे हैं। वैसे यह फिल्म इतिहास को दोहराते हुये नजर आ रही है, ब्लैक डाग थ्योरी और स्लम डाग मिलेनियर में कहीं न कहीं समानता दिखती है। क्या स्लम डाग मिलयेनेयर एक प्रोपगेंडा फिल्म है, फोर्टी नाइन्थ पैरलल (1941), वेन्ट दि डे वेल (1942), दि वे अहेड (1944), इन विच वि सर्व (1942) की तरह ?
लंदन में बिग ब्रदर में शिल्पा सेठ्ठी को जेडी गुडी ने स्लम गर्ल कहा था। जिसे नस्लीय टिप्पणी का नाम देकर खूब हंगामा किया गया था और जिससे शिल्पा ने भी खूब प्रसिद्धि बटोरी थी। इंग्लैंड की एक यूनिवर्सिटी ने उसे डाक्टरेट तक की उपाधि दे डाली थी। दिल्ली में हालीवूड के एक स्टार ने स्टेज पर शिल्पा को चूमकर इस बात का अहसास कराया था कि शिल्पा स्लम गर्ल के रूप में एक अछूत नहीं है। एक स्लम ब्याय इस फिल्म में एक टट्टी के गटर में गोता मारता है और मिलेनियम स्टार अमिताभ का ओटोग्राफ हासिल करके हवा में हाथ उछालता है। क्या कोई मिलेनियम स्टार एक टट्टी लगे हाथ से ओटोग्राफ बुक लेकर ओटोग्राफ देगा ? यदि इसे फिल्मी लिबर्टी कहा जाये तो बालीवुड की मसाला फिल्म बनाने वाले लोग भी इस लिबर्टी के बारे में कुछ भी कहेंगे तो उनकी बात बेमानी होगी, लेकिन बेस्ट स्क्रीन फिल्म के तौर इसे आस्कर दिया जाना आस्कर की अवार्ड मैकेनिज्म पर सवालिया निशान लगाता है।
इफेक्ट के स्तर पर यह फिल्म लोगों को बुरी तरह से झकझोर रही है। यदि बाडी लैंग्वेज की भाषा में कहा जाये तो लोग इस फिल्म के नाम से ही नाक भौं सिकोड़ रहे हैं, खासकर गटर शाट्स को देखकर। इस फिल्म की कहानी कसी हुई है, और साथ में स्क्रीप्ट भी। इस फिल्म में प्रतीक का इस्तेमाल करते हुये स्लम पर हिन्दूवादी आक्रमण को दिखाया गया है और इस फिल्म के चाइल्ड प्रोटेगोनिस्ट के संवाद के माध्यम से राम और अल्लाह के औचित्य पर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया गया है। 1947 में भारत का विभाजन इसी आधार पर हुआ था, जिसके लिए ब्रिटिश हुकुमत द्वारा जमीन बहुत पहले से तैयार की जा रही थी। उस समय ब्रिटिश हुकुमत से जुड़े तमाम लोग भारत के प्रति ब्लैक डाग की मानसिकता से ग्रसित थे और यही मानसिकता एक बार फिर स्लम डाग मिलयेनेयर के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय फिल्म पटल पर दिखाई दे रही है।
व्हाइट मैन बर्डेन थ्योरी के आधार पर दुनिया को सभ्यता का पाठ पढ़ाने का दम भरने वालों को उस समय झटका लगा था जब शिल्पा सेट्ठी ने बिग ब्रदर में नस्लीय टिप्पणी के खिलाफ झंडा खड़ा किया था और उसी दिन स्लम डाग मिलयेनेयर की पटकथा की भूमिका तैयार हो गई थी। पहले से लिखी गई एक किताब को आधार बनाया गया, जो भले ही व्हाइट मैन बर्डेन थ्योरी की वकालत नहीं करती थी, लेकिन जिसमें ब्लैक मैन थ्योरी को मजबूती से रखने के लिए सारी सामग्री मौजूद थे। यह फिल्म पूरी तरह से प्रोपगेंडा फिल्म है, जिसका उद्देश्य अधिक से अधिक कमाई करने के साथ-साथ ब्लैक डाग की अवधारणा को कलात्मक तरीके से चित्रित करना है। यह फिल्म दुनियाभर में एक बहुत बड़े तबके के लोगों के इगो को संतुष्ट करती है, और इस फिल्म की सफलता का आधार भी यही है। भारतीय दर्शकों को आकर्षित करने के लिए भी मसाला फिल्म की परिभाषा पर इस फिल्म को मजबूती से कसा गया है। इस फिल्म में वो सारे फार्मूले हैं, जो आमतौर पर मुंबईया फिल्मों में होता है। इन फार्मूलों के साथ रियलिज्म के स्तर पर एक सशक्त कहानी को भी समेटा गया है, और प्रत्येक चरित्र को एक खास टोन प्रदान किया गया है। इस फिल्म में बिखरा हुया बचपन से लेकर, बाल अपराध तक की कथा को मजबूती से पिरोया गया है। साथ ही टीवी शो के रूप में एक चमकते हुये जुआ घर को भी दिखाया गया है।
फिल्म लावारिश में गटर की दुनिया का किरदार निभाने वाले और कौन बनेगा करोड़पति जैसे कार्यक्रम में प्रत्येक सवाल पर लोगों को लाखों रुपये देने वाले मिलेनियम स्टार अमिताभ बच्चन स्लम डाग मिलयेनेयर पर अपनी नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त कर चुके हैं। अपनी प्रतिक्रिया में इन्होंने इस फिल्म के कथ्य पर सवाल उठाया है, जिसका कोई मायने मतलब नहीं है, क्योंकि कथ्य के लिहाज से अपनी कई फिल्मों में अमिताभ बच्चन ने क्या भूमिका निभाई है उन्हें खुद पता नहीं होगा। अनिल कपूर इस फिल्म में एक क्वीज शो के एंकर की भूमिका निभा कर काफी खुश हैं। एक कलाकार के तौर पर उन्हें एसा लग रहा है कि वर्षों से इसी भूमिका के लिए वह अपने आप को मांज रहे थे। उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि आसमान को गले लगाने जैसी है। गुलजार और रहमान को भी इस फिल्म ने एक नई ऊंचाई पर लाकर खड़ा दिया है। यह इन दोनों के लिये सपनों से भी एक कदम आगे जाने जैसी बात है, हालांकि इस फिल्म पर हायतौबा मचाने वाले गुलजार और रहमान के प्रशंसकों का कहना है कि गुलजार और रहमान ने इसके पहले कई बेहतरीन गीतों की रचना की है और धुन बनाया है। भले ही इस फिल्म में उन्हें आस्कर मिल गया हो, लेकिन इससे कई बेहतर गीत और संगीत उनके खाते में दर्ज हैं।
मुंबईया फिल्मों की कास्टिंग के दौरान जाने पहचाने फिल्मी चेहरों को खास तव्वजो दिया जाता है, स्लम डाग मिलयेनेयर में भी इस फार्मूले का मजबूती से अनुसरण किया गया है, साथ ही स्लम में रहने वाले बच्चों को भी इसमें सम्मिलित किया गया है, जो इस फिल्म के मेकिंग स्टाइल को इटली के नियो-रियलिज्म फिल्म मूवमेंट के करीब ले जाता है, जहां पर शूटिंग के दौरान राह चलते लोगों से अभिनय करवाया जाता था। इस लिहाज से इस फिल्म को एक एक्सपेरिमेंटल फिल्म भी कहा जा सकता है। लेकिन इसके साथ ही यह फिल्म एक प्रोपगेंडा फिल्म है, जिसमें बड़े तरीके से एक स्लम गर्ल के सेक्सुअल एक्पलायटेशन को चित्रित किया गया है, जो कहीं न कहीं बिग ब्रदर के दौरान शिल्पा सेट्ठी के बवाल से जुड़ा हुआ है और जिसकी जड़े बहुत दूर इतिहास के ब्लैक डाग थ्योरी तक जाती हैं। टट्टी में डूबकी लगाता हुआ भारत का बचपन भारत की हकीकत नहीं है, लेकिन जिस तरीके से इसे फिल्माया गया है, उसे देखकर विश्व फिल्म में रूची रखने वालों के बीच भारत के बचपन की यही तस्वीर स्थापित होगी, जो निसंदेह भारत के स्वाभिमान पर एक बार फिर सोंच समझ कर किया गया हमला है।
इस फिल्म को बनाने के पहले की इसे आस्कर के लिए खड़ा करने हेतु मजबूत लांमबंदी शुरु हो गई थी, और इस उद्देश्य को पाने के लिए हर उस हथकंडे का इस्तेमाल किया, जो आस्कर पाने के लिए किया जाता है। अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ खड़ा होने वाले मोहन दास करमचंद गांधी कहा करते थे, अच्छे उद्देश्य के लिए माध्यम भी अच्छे होने चाहिये। माध्यम के लिहाज से इस फिल्म पर कोई उंगली नहीं उठा सकता, लेकिन इसके उद्देश्य को लेकर एक अनंत बहस की दरकार है। यह फिल्म भारत को दुनियाभर में नकारात्मक रूप से स्थापित करने का एक प्रोपगेंडा है, जिसमें उन सारे तत्वों को सम्मिलित किया है, जो एक फिल्म की व्यवसायिक सफलता के लिए जरूरी माने जाते हैं।
लंदन में बिग ब्रदर में शिल्पा सेठ्ठी को जेडी गुडी ने स्लम गर्ल कहा था। जिसे नस्लीय टिप्पणी का नाम देकर खूब हंगामा किया गया था और जिससे शिल्पा ने भी खूब प्रसिद्धि बटोरी थी। इंग्लैंड की एक यूनिवर्सिटी ने उसे डाक्टरेट तक की उपाधि दे डाली थी। दिल्ली में हालीवूड के एक स्टार ने स्टेज पर शिल्पा को चूमकर इस बात का अहसास कराया था कि शिल्पा स्लम गर्ल के रूप में एक अछूत नहीं है। एक स्लम ब्याय इस फिल्म में एक टट्टी के गटर में गोता मारता है और मिलेनियम स्टार अमिताभ का ओटोग्राफ हासिल करके हवा में हाथ उछालता है। क्या कोई मिलेनियम स्टार एक टट्टी लगे हाथ से ओटोग्राफ बुक लेकर ओटोग्राफ देगा ? यदि इसे फिल्मी लिबर्टी कहा जाये तो बालीवुड की मसाला फिल्म बनाने वाले लोग भी इस लिबर्टी के बारे में कुछ भी कहेंगे तो उनकी बात बेमानी होगी, लेकिन बेस्ट स्क्रीन फिल्म के तौर इसे आस्कर दिया जाना आस्कर की अवार्ड मैकेनिज्म पर सवालिया निशान लगाता है।
इफेक्ट के स्तर पर यह फिल्म लोगों को बुरी तरह से झकझोर रही है। यदि बाडी लैंग्वेज की भाषा में कहा जाये तो लोग इस फिल्म के नाम से ही नाक भौं सिकोड़ रहे हैं, खासकर गटर शाट्स को देखकर। इस फिल्म की कहानी कसी हुई है, और साथ में स्क्रीप्ट भी। इस फिल्म में प्रतीक का इस्तेमाल करते हुये स्लम पर हिन्दूवादी आक्रमण को दिखाया गया है और इस फिल्म के चाइल्ड प्रोटेगोनिस्ट के संवाद के माध्यम से राम और अल्लाह के औचित्य पर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया गया है। 1947 में भारत का विभाजन इसी आधार पर हुआ था, जिसके लिए ब्रिटिश हुकुमत द्वारा जमीन बहुत पहले से तैयार की जा रही थी। उस समय ब्रिटिश हुकुमत से जुड़े तमाम लोग भारत के प्रति ब्लैक डाग की मानसिकता से ग्रसित थे और यही मानसिकता एक बार फिर स्लम डाग मिलयेनेयर के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय फिल्म पटल पर दिखाई दे रही है।
व्हाइट मैन बर्डेन थ्योरी के आधार पर दुनिया को सभ्यता का पाठ पढ़ाने का दम भरने वालों को उस समय झटका लगा था जब शिल्पा सेट्ठी ने बिग ब्रदर में नस्लीय टिप्पणी के खिलाफ झंडा खड़ा किया था और उसी दिन स्लम डाग मिलयेनेयर की पटकथा की भूमिका तैयार हो गई थी। पहले से लिखी गई एक किताब को आधार बनाया गया, जो भले ही व्हाइट मैन बर्डेन थ्योरी की वकालत नहीं करती थी, लेकिन जिसमें ब्लैक मैन थ्योरी को मजबूती से रखने के लिए सारी सामग्री मौजूद थे। यह फिल्म पूरी तरह से प्रोपगेंडा फिल्म है, जिसका उद्देश्य अधिक से अधिक कमाई करने के साथ-साथ ब्लैक डाग की अवधारणा को कलात्मक तरीके से चित्रित करना है। यह फिल्म दुनियाभर में एक बहुत बड़े तबके के लोगों के इगो को संतुष्ट करती है, और इस फिल्म की सफलता का आधार भी यही है। भारतीय दर्शकों को आकर्षित करने के लिए भी मसाला फिल्म की परिभाषा पर इस फिल्म को मजबूती से कसा गया है। इस फिल्म में वो सारे फार्मूले हैं, जो आमतौर पर मुंबईया फिल्मों में होता है। इन फार्मूलों के साथ रियलिज्म के स्तर पर एक सशक्त कहानी को भी समेटा गया है, और प्रत्येक चरित्र को एक खास टोन प्रदान किया गया है। इस फिल्म में बिखरा हुया बचपन से लेकर, बाल अपराध तक की कथा को मजबूती से पिरोया गया है। साथ ही टीवी शो के रूप में एक चमकते हुये जुआ घर को भी दिखाया गया है।
फिल्म लावारिश में गटर की दुनिया का किरदार निभाने वाले और कौन बनेगा करोड़पति जैसे कार्यक्रम में प्रत्येक सवाल पर लोगों को लाखों रुपये देने वाले मिलेनियम स्टार अमिताभ बच्चन स्लम डाग मिलयेनेयर पर अपनी नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त कर चुके हैं। अपनी प्रतिक्रिया में इन्होंने इस फिल्म के कथ्य पर सवाल उठाया है, जिसका कोई मायने मतलब नहीं है, क्योंकि कथ्य के लिहाज से अपनी कई फिल्मों में अमिताभ बच्चन ने क्या भूमिका निभाई है उन्हें खुद पता नहीं होगा। अनिल कपूर इस फिल्म में एक क्वीज शो के एंकर की भूमिका निभा कर काफी खुश हैं। एक कलाकार के तौर पर उन्हें एसा लग रहा है कि वर्षों से इसी भूमिका के लिए वह अपने आप को मांज रहे थे। उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि आसमान को गले लगाने जैसी है। गुलजार और रहमान को भी इस फिल्म ने एक नई ऊंचाई पर लाकर खड़ा दिया है। यह इन दोनों के लिये सपनों से भी एक कदम आगे जाने जैसी बात है, हालांकि इस फिल्म पर हायतौबा मचाने वाले गुलजार और रहमान के प्रशंसकों का कहना है कि गुलजार और रहमान ने इसके पहले कई बेहतरीन गीतों की रचना की है और धुन बनाया है। भले ही इस फिल्म में उन्हें आस्कर मिल गया हो, लेकिन इससे कई बेहतर गीत और संगीत उनके खाते में दर्ज हैं।
मुंबईया फिल्मों की कास्टिंग के दौरान जाने पहचाने फिल्मी चेहरों को खास तव्वजो दिया जाता है, स्लम डाग मिलयेनेयर में भी इस फार्मूले का मजबूती से अनुसरण किया गया है, साथ ही स्लम में रहने वाले बच्चों को भी इसमें सम्मिलित किया गया है, जो इस फिल्म के मेकिंग स्टाइल को इटली के नियो-रियलिज्म फिल्म मूवमेंट के करीब ले जाता है, जहां पर शूटिंग के दौरान राह चलते लोगों से अभिनय करवाया जाता था। इस लिहाज से इस फिल्म को एक एक्सपेरिमेंटल फिल्म भी कहा जा सकता है। लेकिन इसके साथ ही यह फिल्म एक प्रोपगेंडा फिल्म है, जिसमें बड़े तरीके से एक स्लम गर्ल के सेक्सुअल एक्पलायटेशन को चित्रित किया गया है, जो कहीं न कहीं बिग ब्रदर के दौरान शिल्पा सेट्ठी के बवाल से जुड़ा हुआ है और जिसकी जड़े बहुत दूर इतिहास के ब्लैक डाग थ्योरी तक जाती हैं। टट्टी में डूबकी लगाता हुआ भारत का बचपन भारत की हकीकत नहीं है, लेकिन जिस तरीके से इसे फिल्माया गया है, उसे देखकर विश्व फिल्म में रूची रखने वालों के बीच भारत के बचपन की यही तस्वीर स्थापित होगी, जो निसंदेह भारत के स्वाभिमान पर एक बार फिर सोंच समझ कर किया गया हमला है।
इस फिल्म को बनाने के पहले की इसे आस्कर के लिए खड़ा करने हेतु मजबूत लांमबंदी शुरु हो गई थी, और इस उद्देश्य को पाने के लिए हर उस हथकंडे का इस्तेमाल किया, जो आस्कर पाने के लिए किया जाता है। अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ खड़ा होने वाले मोहन दास करमचंद गांधी कहा करते थे, अच्छे उद्देश्य के लिए माध्यम भी अच्छे होने चाहिये। माध्यम के लिहाज से इस फिल्म पर कोई उंगली नहीं उठा सकता, लेकिन इसके उद्देश्य को लेकर एक अनंत बहस की दरकार है। यह फिल्म भारत को दुनियाभर में नकारात्मक रूप से स्थापित करने का एक प्रोपगेंडा है, जिसमें उन सारे तत्वों को सम्मिलित किया है, जो एक फिल्म की व्यवसायिक सफलता के लिए जरूरी माने जाते हैं।
तब शिल्पा ने अपने स्लम का फायदा उठाया था। अब डैनी बॉयल अपने स्लम को भुना रहे हैं। लेकिन जो वाकई स्लम का आदमी है वो अब भी वहीं है जहां स्लमडॉग से पहले था।
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छा विश्लेषण किया है। सच यही है कि स्लमडॉग को निगेटिवटी के कारण फायदा मिला है। विकसित देश सपने में भारत के विषय में जैसे सपने देखते हैं; उन्हीं सपनों की तस्वीर है ये फिल्म।
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