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Showing posts from December, 2009

एक सार्थक पहल के लिए

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कथाकार - ०००0 सुनीति 0००० ' अगली गोष्ठी में काव्या जी अपनी कहानी का वाचन करेंगी । ' सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया और गोष्ठी समाप्त हो गयी . ' काव्या जी, ' डॉ . ललित ने विदा लेते हुए कहा, ' अगली गोष्ठी में आपकी सार्थक कहानी सुनने का अवसर मिलेगा .' काव्या ने जैसे असमंजस की स्थिति में उनके निमंत्रण को मौन स्वीकृति दे दी . एक निरर्थक जीवन पर सार्थक कहानी कैसे लिखी जा सकती है ? जबकि कहानी की विषयवस्तु स्वयं के जीवन पर आधारित हो . काव्या को लगा मानो परीक्षा की घडी आ गयी . महीने में एक बार होने वाली इस गोष्ठी में कोई नामचीन कथाकार नहीं आते थे . बस ऐसे लोग जो केवल स्वान्तः सुखाय के लिए सृजन में विश्वास रखते थे . हाँ यह बात अलग है कि काव्या जी और डॉ. ललित जैसे जाने माने कथाकार इससे जुड़ गए हैं . ऐसे कथाकार सार्थक सृजन में विश्वास रखते हैं . वरना आज इतर लेखन की भरमार है . कुछ हद तक इसे सच माना जा सकता है कि साहित्य में समाज को बदलने की क्षमता नहीं है . समाज और देश को बदलने वाली शक्तियां दूसरी होती हैं . एक सजग ओत परिश्रमी लेखक ताउम्र लिखकर भी किसी आदमी के जीवन को सुधार नह

निठारीकरण हो गया

कर दिया जो वही आचरण हो गया । लिख दिया जो वही व्याकरण हो गया । गोश्त इन्सान का यूं महकने लगा जिंदगी का निठारीकरण हो गया । क्योंकि घर में ही थीं उसपे नज़रें बुरी द्रौपदी के वसन का हरण हो गया । उस सिया को बहुत प्यार था राम से पितु प्रतिज्ञा ही टूटी , वरण हो गया । 'राढ़ी ' वैसे तो कर्ता रहा वाक्य का वाच्य बदला ही था, मैं करण हो गया । कल भगीरथ से गंगा बिलखने लगी तेरे पुत्रों से मेरा क्षरण हो गया । ।

व्यंग्य को आलोचना की बैसाखी की जरूरत नहीं

हिन्दी व्यंग्य एवं आलोचना पर लखनऊ में यह राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई तो थी 30 नवंबर को ही थी और इसकी सूचना भी भाई अनूप श्रीवास्तव ने समयानुसार भेज दी थी, लेकिन मैं ही अति व्यस्तता के कारण इसे देख नहीं सका और इसीलिए पोस्ट नहीं कर सका. अब थोड़ी फ़ुर्सत मिलने पर देख कर पोस्ट कर रहा हूं. -इष्ट देव सांकृत्यायन हिन्दी व्यंग्य साहित्यिक आलोचना की परिधि से बाहर है ? इस विषय पर आज उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान और माध्यम साहित्यिक संस्थान की ओर से अट्टहास समारोह के अन्तर्गत आयोजित दो दिवसीय विचार गोष्ठी में यह निष्कर्ष निकला कि व्यंग्यकारों को आलोचना की चिन्ता न करते हुए विसंगतियों के विरूद्ध हस्तक्षेप की चिन्ता करनी चाहिए, क्योंकि वैसे भी अब व्यंग्य को आलोचना की बैसाखी की जरूरत नहीं. राष्ट्रीय संगोष्ठी की शुरूआत प्रख्यात व्यंग्यकार के.पी. सक्सेना की चर्चा से शुरू हुई. श्री सक्सेना का कहना था कि हिन्दी आलोचना को अब व्यंग्य विधा को गंभीरतापूर्वक लेना चाहिए.  उन्होंने यह भी कहा कि अब व्यंग्य को आलोचना की बैसाखी की जरूरत नहीं है. व्यंग्य लेखन अपने उस मुकाम पर पहुंच गया है कि  उसने राजनीति, समाज एवं शिक्षा

भांति-भांति के जन्तुओं के बीच मुंबई बैठक

आलोक नंदन मुंबई के संजय गांधी राष्ट्रीय नेशनल पार्क में भांति-भांति के जन्तुओं के बीच रविवार को भांति-भांति के ब्लौगर जुटे। लेकिन एन.डी.एडम अपनी ड्राइंग की खास कला से वाकई में कमाल के थे। पेंसिल और अपनी पैड से वह लगातार खेलते रहे, किसी बच्चे की तरह। और देखते ही देखते वहां पर मौजूद कई ब्लौगरों की रेखा आकृति उनके पैड पर चमकने लगी। भांति भांति के ब्लौगरों के बीच अपने अपने बारे में कहने का एक दौर चला था, और इसी दौर के दौरान किसी मासूम बच्चे की तरह वह अपने बारे में बता रहे थे। “मुझे चित्र बनाना अच्छा लगता था। एक बार अपने शहर में पृथ्वी कपूर से मिला था। वो थियेटर करते थे। मैं थियेटर के बाहर खड़ा था। एक आदमी ने उनसे मेरा परिचय यह कह कर दिया कि मैं एक चित्रकार हूं। वह काफी खुश हुये और मुझे थियेटर देखने को बोले। शाम को जब मैं अगली पंक्ति में बैठा हुआ था तो लोगों को आश्चर्य हो रहा था,” मुंबईया भाषा में वो इसे तेजी से बोलते रहे। जब वह अपना परिचय दे रहे थे तो बच्चों की तरह उनके मूंह से थूक भी निकल रहा था, जिसे घोंटते जाते थे। “मैं पांचवी तक पढ़ा हूं, फिर चित्र बनाता रहा। मुझे चि

ललन और लोलिता को सांस्कृतिक ठेकेदारों से बचाते हैं जज पंत

मैं एक जज की गरिमा को पूरी मजबूती से स्थापित करना चाह रहा था...इसलिये जज पंत के रुटीन को लेकर चल रहा था ताकि दर्शकों के बीच जज पंत की पहचान एक गंभीर जज के रूप में हो। सीन 6 और 7 में कहानी को आगे बढ़ाते हुये एक जज के मैनेरिज्म को ही स्थापित किया गया है। उसका नौकर भंडारी और बाकी के गनमैन जज पंत की आभा को ही विस्तार दे रहे हैं। सीन 8 में ललन और लोलिता एक बार फिर आ रहे हैं। वेलेंनटाइन डे के दिन ललन लोलिता को लेकर जाते हुये एक पार्क के करीब एक सांस्कृति संगठन का निशाना बनता है और जज पंत उन्हें बचाते हैं। Scene 6 Characters : Pant, Bhandari and four gunmen Ext/morning/ portico (Pant comes out from the door and advances to the portico. A white ambassador car is standing there. A police man with his gun and a driver are waiting for him. Having seen Pant the gunman open the back door of the car, the second police man sits at his driving seat.) Pant (standing at the car’s back door) ka

कहां है चैनलों को मिले 268 नोटिसों का जवाब ??

आलोक नंदन सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय ने कलर्स टीवी पर चलने वाला धारावाहिक “ना आना इस देश लाडो” और तथाकथित रियलिटी शो “बिग बास 3” के लिए कलर्स चैनल को कारण बताओं नोटिस जारी किया है। सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय का कहना है कि “ना आना इस देश लाडो” में एक मजिस्ट्रेट को नकारात्मरूप से दिखाया जा रहा है, जो सरासर गलत है। सूचना एंव प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी मजबूत तर्क प्रस्तुत कर रही हैं कि एक मजिस्ट्रेट को इस रूप में नहीं चित्रित किया जा सकता है। राज्य की छवि इससे खराब होती है, और राज्य को यह पूरा अधिकार है कि वह अपने सार्वजनिक पदों के मान और सम्मान की रक्षा करे। मंत्रालय का कहना है कि अब तक प्रोग्राम कोड को ठेंगा दिखाने वाले विभिन्न चैनलों को 268 नोटिस भेजे जा चुके हैं। यदि इनलोगों ने अपने आप को नियंत्रित नहीं किया तो अब नोटिस नहीं भेजा जाएगा, बल्कि सीधे कार्रवाई होगी। बिग बास 3 में संचालक की भूमिका में अमिताभ बच्चन भी हैं, और बिग पर अश्लीलता परोसने की बात सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय कर रहा है। ना आना इस देश लाड़ो को कन्या भ्रूण हत्या के इमोशनल ड्रामे के साथ परोसा जा रहा है, लेकिन जिस तरह से

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