एक सार्थक पहल के लिए
कथाकार - ०००0 सुनीति 0००० ' अगली गोष्ठी में काव्या जी अपनी कहानी का वाचन करेंगी । ' सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया और गोष्ठी समाप्त हो गयी . ' काव्या जी, ' डॉ . ललित ने विदा लेते हुए कहा, ' अगली गोष्ठी में आपकी सार्थक कहानी सुनने का अवसर मिलेगा .' काव्या ने जैसे असमंजस की स्थिति में उनके निमंत्रण को मौन स्वीकृति दे दी . एक निरर्थक जीवन पर सार्थक कहानी कैसे लिखी जा सकती है ? जबकि कहानी की विषयवस्तु स्वयं के जीवन पर आधारित हो . काव्या को लगा मानो परीक्षा की घडी आ गयी . महीने में एक बार होने वाली इस गोष्ठी में कोई नामचीन कथाकार नहीं आते थे . बस ऐसे लोग जो केवल स्वान्तः सुखाय के लिए सृजन में विश्वास रखते थे . हाँ यह बात अलग है कि काव्या जी और डॉ. ललित जैसे जाने माने कथाकार इससे जुड़ गए हैं . ऐसे कथाकार सार्थक सृजन में विश्वास रखते हैं . वरना आज इतर लेखन की भरमार है . कुछ हद तक इसे सच माना जा सकता है कि साहित्य में समाज को बदलने की क्षमता नहीं है . समाज और देश को बदलने वाली शक्तियां दूसरी होती हैं . एक सजग ओत परिश्रमी लेखक ताउम्र लिखकर भी किसी आदमी के जीवन को सुधार नह