Doosari Punyatithi
दूसरी पुण्यतिथि -हरिशंकर राढ़ी .....और धीर-धीरे मां की दूसरी पुण्यतिथि भी आ गई। सालभर पहले लगभग इसी जगह पर इसी मानसिकता में मां को और उनकी पुण्यतिथि को समझने की कोशिश कर रहा था, उनका आकलन कर रहा था। यह भी हिसाब लगा रहा था कि कितने घाटे में रहा था मैं। पहली पुण्यतिथि थी पिछले वर्ष और उस अवसर पर अपनी शाब्दिक वेदना और असमर्थता को ब्लॉग पर प्रकट कर देने के अलावा मैंने कुछ भी नहीं किया था - न कोई समारोह, न कोई औपचारिक शोकप्राकट्य और न कोई धार्मिक क्रियाकर्म। अंदर से ऐसी कोई आवाज नहीं आती। वे प्रदर्शन और पाखंड की घोर विरोधी थीं और किसी की मृत्यु पर होने वाले पाखंड को देखकर एक कहावत कहा करती थीं- जीते तपता न तपावे, मरे कीर्तन करावे! पता नहीं यह इस कहावत का असर था या मन का सूनापन कि उनकी स्मृति को ब्लॉग पर उतार देने के अलावा कुछ करने का मन ही नहीं हुआ था। एक-दो दिन बाद पता लगा था कि ब्लॉग की उस पोस्ट को फरीदाबाद से प्रकाशित और हरियाणा में अधिक प्रसारित दैनिक 'आज समाज