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श्रीशैलम : बांध लेता है यह छंद मुक्त-2

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इष्ट देव सांकृत्यायन  यहां देखें :   इस लेख का पहला भाग मंदिर से बाहर निकले तो धूप बहुत चटख हो चुकी थी। जनवरी के महीने में भी हाफ शर्ट पहन कर चलना मुश्किल हो रहा था। फुल मस्ती के मूड में बच्चे न जाने किसे शो ऑफ करने में लगे थे। उधर साथ की देवियां ख़ रीदारी के मूड में थीं और मंदिर के चारों तर फ़ फैले बाज़ार की एक-एक दुकान पर सामान देखने व मोलभाव का मौ क़ा हाथ से निकलने नहीं देना चाहती थीं। भला हो बच्चों का , जिन्हें एक तो डैम देखने की जल्दी थी और दूसरे भूख भी लगी थी। इसलिए बाज़ार हमने एक घंटे में पार कर लिया। बाहर गेस्ट हाउस के पास ही आकर एक होटल में दक्षिण भारतीय भोजन किया। श्रीशैलम की मनोरम पहाड़ियां  बच्चे डैम देखने के लिए इतने उतावले थे कि भोजन के लिए अल्पविश्राम की अर्जी भी नामंजूर हो गई और हमें तुरंत टैक्सी करके श्रीशैलम बांध देखने के लिए निकलना पड़ा। श्रीशैलम में एक अच्छी बात यह भी थी कि यहां तिरुपति की तरह भाषा की समस्या नहीं थी। वैसे यहां मुख्य भाषा तेलुगु ही है , लेकिन हिंदीभाषियों के लिए कोई असुविधा जैसी स्थिति नहीं है। हिंदी फिल्मों के गाने यहां ख़ू ब च

श्रीशैलम : बांध लेता है यह छंद मुक्त

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इष्ट देव सांकृत्यायन श्रीशैलम के लिए हमारा सफ़र तिरुपति से शुरू होना था। तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार एक दिन पूर्व यानी 31 दिसंबर को ही दिन में तिरुपति के सभी दर्शनीय स्थल घूमकर अगले दिन यानी 1    जनवरी को सुबह ही हमें वहां से श्रीशैलम    के लिए निकलना था। 31 दिसंबर को दिन में तो वहां घूमना संभव नहीं हो सका ,  क्योंकि पूरा समय तिरुमाला पर्वत स्थित भगवान श्री वेंकटेश्वर मंदिर में ही बीत गया। नए साल की पूर्व संध्या पर वहां दर्शनार्थियों की जो क़तार लगी थी ,  उसे देखकर किसी की भी हिम्मत छूट सकती थी। काफ़ी जद्दोजहद के बाद हमने दर्शन किया और रात में बा क़ी जगहें घूम लीं। छोटा   क़ स्बा होने के नाते बहुत अधिक समय नहीं लगा। तीर्थस्थल होने और दूर-दराज से अकसर श्रद्धालुओं के आते रहने से तिरुपति में किसी भी समय निकलना मुश्किल नहीं है। छोटा सा यह क़स्बा दिन-रात जागने और चलते रहने वाला है। अगले दिन सुबह 9 बजे ट्रेन पकडऩे में हमारे लिए कोई बाधा नहीं थी। तिरुपति में जिस गेस्टहाउस में हम ठहरे थे ,  वह रेलवे स्टेशन के ठीक सामने ही था। वहां से स्टेशन पहुंचना    मुश्किल नहीं था। रात में तय हुआ

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