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याली : एक मिथकीय आकृति

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नितीश ओझा रावण के दरबार में जब अंगद आते हैं तो उनके पीछे के खम्भों पर यही आकृति बनी हुई है . यह एक पौराणिक आकृति है जिसकी आधी आकृति शेर , आधी हाथी और आधी आकृति घोड़े की भी होती है. दक्षिण भारतीय मंदिरों में अक्सर खम्भे पर पाई जाने वाली एक आकृति , जिसका नाम याली है जो संस्कृत के व्याल से निकला जिसका अर्थ रक्षक , और कुछ स्थानों पर गज मुख सर्प से है यथा खलनायक रूप में , नाट्यशास्त्र में इनका सम्बन्ध दस नाम रूप दंडक से भी है 15 वी शताब्दी   में विकसित इस आकृति को दक्षिण भारत के सभी मंदिरों में देखा जा सकता - मदुरै तमिलानाडू , चेन्ना केशव , थिरुवन्नमलाई , हलेबीडू , होयसल मंदिरों कर्णाटक इत्यादि. मदुरै के मीनाक्षी नायक मंडपम में आपको 1000 याली दीखते हैं.  भारत के बाहर भी यह आकृतियाँ मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थलों में मिलती हैं , बर्मा थाईलैंड , कम्बोडिया , लाओस के बौद्ध मंदिरों में पैगोडा के आगे भी यह आकृति एक Guard / रक्षक के रूप मे मिलती है जहां इनका नाम Chinthe है . बौद्ध धर्म की कहानियों में इसका जन्म एक रानी से हुवा जिसने एक शेर (सिंह) से विवाह किया लेकिन कालांतर में उस शे...

दिल्ली में बैठे-बैठे यूरोप की सैर

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गोथिक कला की बारीकियां बताने के लिए प्रदर्शनी 23 तक गोथिक कला की बारीकियों से दुनिया को परिचित कराने और इस पर अलग-अलग देशों में काम कर रहे लोगों को आपस में जोडऩे के लिए द इंस्टीच्यूटो सरवेंटस ने दिल्ली में प्रदर्शनी आयोजित की है। 23 अक्टूबर तक चलने वाली इस प्रदर्शनी संबंधी जानकारी एक प्रेसवार्ता में स्पेन शासन से जुड़े इंस्टीच्यूटो सरवेंटस के निदेशक ऑस्कर पुजोल ने दी। इस प्रदर्शनी में पांच भूमध्यसागरीय देशों की प्राचीन गोथिक स्थापत्य कला को देखा और समझा जा सकता है। ये देश हैं स्पेन, पुर्तगाल, इटली, स्लोवेनिया और ग्रीस। इन देशों के 10 भव्य आर्किटेक्चरल मॉडल यहां दिखाए जा रहे हैं। ऑडियो विजुअल प्रस्तुति में पैनल्स और विडियो के जरिये यूरोप की इस कला को दिल्ली में जिस भव्यता से पेश किया जा रहा है उसे देखकर लगता है कि आप सीधे यूरोप में बैठे भूमध्यसागरीय स्थापत्य कला के भव्य निर्माण निहार रहे हैं। आम लोग इस प्रदर्शनी में दिन के साढ़े 11 से शाम साढ़े 7 बजे तक आ सकते हैं। प्रदर्शनी का उदघाटन करते हुए संरक्षक आरटूरो जारागोरा ने कहा कि भूमध्यसागरीय निर्माण में गोथिक कला का असर साफ नजर आता...

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