अल्लाह की मर्जी का आउटसोर्स
Technorati Tags: satire , literature , politics , diplomacy , terrorism , india , pakistan इस्लामाबाद में धमाका हुआ, होना ही चाहिए था. जरदारी साहब गुस्साए, उन्हें गुस्साना ही चाहिए था. पर उनके गुस्साने में एक गड़बड़ हो गई. जैसा कि अकसर होता है. इसीलिए कहा जाता है- गुस्सा बुरी बात है. पर अब तो साहब गुस्सा चुके थे और इस गुस्साने का कुछ किया नहीं जा सकता था. गुस्से में वह वह बोल गए जो उन्हें नहीं बोलना चाहिए था. उन्होंने कहा- हम इन कायराना हमलों से नहीं डरेंगे. 'तो मत डरिए, आपको डरने के लिए कहा ही किसने? पर जनाब! इसे कायराना तो मत कहिए. अभी कल तक आप और आपके रकीब इन्हें महान लोगों में गिना करते थे. आपकी नजर में ये वे लोग थे जो दीन के लिए और दूसरे देशों की दबी-कुचली अवाम के लिए बड़ी बहादुरी से लड़ रहे थे. ये अलग बात है कि अपने मुल्क के अवाम की फिक्र न तो आपको हुई, न आपके पहले के हुक्मरान को हुई और उसे दबाने-कुचलने के लिए आपने और आपके पुराने हुक्मरान ने इनका बेसाख्ता इस्तेमाल कर बेहिसाब सबाब लूटा.' हमारे गांव के जुम्मन मियां ने एकदम तुरंत प्रतिक्रिया दी. जुम्मन मियां की आदत है, वह