आजमगढ़ : इतिहास और संस्कृति - हरिशंकर राढ़ी आजमगढ़ रेलवे स्टेशन फोटो : हरिशंकर राढ़ी रामायणकालीन महामुनि अत्रि और सतीत्व की प्रतीक उनकी पत्नी अनुसूया के तीनों पुत्रों महर्षि दुर्वासा, दत्तात्रेय और महर्षि चन्द्र की कर्मभूमि का गौरव प्राप्त करने वाला क्षेत्र आजमगढ़ आज अपनी सांस्कृतिक विरासत और आधुनिकता के बीच संघर्ष करता दिख रहा है। आदिकवि महर्षि वाल्मीकि के तप से पावन तमसा के प्रवाह से पवित्र आजमगढ़ न जाने कितने पौराणिक, मिथकीय, प्रागैतिहासिक और ऐतिहासिक तथ्यों और सौन्दर्य को छिपाए अपने अतीत का अवलोकन करता प्रतीत हो रहा है। आजमगढ़ को अपनी आज की स्थिति पर गहरा क्षोभ और दुख जरूर हो रहा होगा कि जिस गरिमा और सौष्ठव से उसकी पहचान थी, वह अतीत में कहीं खो गयी है और चंद धार्मिक उन्मादी और बर्बर उसकी पहचान बनते जा रहे हैं। आजमगढ़ ने तो कभी सोचा भी न होगा कि उसे महर्षि दुर्वासा, दत्तात्रेय, वाल्मीकि, महापंडित राहुल सांकृत्यायन, अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, शिक्षाविद अल्लामा शिबली नोमानी, कैफी आजमी और श्यामनारायण पांडेय के बजाय बटला हाउस, आतंकवाद, जातिवादी राज
आ गया है. स्वागतम
ReplyDeleteगली-गली में घूम रहीं हैं, हुलियारों की टोली।
ReplyDeleteनाच उठी चञ्चल नयनों में, रंगों की रंगोली।।
उड़ते हैं अम्बर में गुलाल,
नभ-धरा हो गये लाल-लाल,
गोरी का बदरंग हाल, थिरकी है हँसी-ठिठोली।
नाच उठी चञ्चल नयनों में, रंगों की रंगोली।।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteइसे 20.02.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
गोरी को बहकाने
ReplyDeleteतन-मन को भरमाने
फाल्गुन आया रे ।
बहुत सामयिक रचना...आभार.
Bahut acchi rachna..
ReplyDeleteआ गया फ़ागुन, झंकार होने लगी है।
ReplyDeleteफागुनी रंगों की अद्भुद छटा बिखेरती सरस मुग्धकारी रचना....
ReplyDeleteपढवाने के लिए बहुत बहुत आभार...