चीन में मानवाधिकार


इष्ट देव सांकृत्यायन 

मानवाधिकार पर सबसे उत्तम अमल चीन में हो रहा है.


1951 में तिब्बत में मानवाधिकार का शत-प्रतिशत क्रियान्वयन उन्होंने कैसे किया, यह तो मैंने देखा नहीं. लेकिन उसका उत्तम परिणाम मेरे सामने है. धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) से लेकर यहाँ दिल्ली में मजनू का टीला और बंगलुरु तक मैं देख चुका हूँ.


दूसरा उदाहरण मेरे यह शरीर धारण करने से पहले का ही है.
अपने गुलाबी चच्चा तिब्बत के बाद भी शील पंच करते हुए 'हिंदी चीनी भाई भाई' रेंकंने में लगे रहे और उधर अब जिस चिकन नेक की बात श्री शरजील इमाम जी कर रहे हैं, उसे रेतने की व्यवस्था हो गई.
कोर्स वाली किताबें तो नहीं, लेकिन प्रत्यक्षदर्शियोंं के संस्मरणों से पता चला कि कुछ लोग, जो अब श्री शरजील इमाम जी के पक्ष में तर्कों के वाण लेकर खड़े हैं, चीन के पक्ष में खड़े थे और उन्हीं के प्रतिनिधि गुलाबी चच्चा के मुख्य सलाहकार रहते हुए ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों में सौंदर्य प्रसाधन बनवा रहे थे. तब उन्होंने चीन से आई सेना को भारत के लिए मुक्ति सेना बताया था और रावण की हँसी फीकी हो जाती होगी जब वे लोग भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सेदारी की बात करते हैं.


तीसरा उदाहरण मेरे सामने का है.
12वीं में पढ़ता था जब थ्येन आन मन चौक हुआ था. भारत में अब अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य की असीमितता और बात बात पर लोकतंत्र की दुहाई देने वाले भी सबसे बड़े पैरोकार वही लोग हैं. चीन छात्रों-युवाओं ने तब न मालूम कैसे ऐसा ही कुछ लोकतंत्र-फोकतंत्र मांगने की बेवकूफी कर दी थी. उसके बाद फौजी टैंकों से मानवाधिकार का जैसा लोमहर्षक क्रियान्वयन हुआ, वह कई शताब्दियां याद रखेंगी.

चौथा उदाहरण बेचारे उइगुर लोग.
उन्हें पहले रोज़ा रखने पर प्रतिबंध लगा. फिर नमाज पढ़ने पर. दाढी रखने पर. फिर कुरान रखने और अंत नाम में मुहम्मद लगाने तक पर. ना बात यहीं खत्म नहीं हुई. अब उन्हें अपने मुर्दे दफनाने और यहाँ तक कि उसके ताबूत रखने तक पर प्रतिबंध लग चुका है. मसजिद बनाने के लिए सौ जगह से परमिशन लेनी पड़ती है और इसके बाद भी अगर कहीं उसमें गुंबद या मीनार दिख गई तो केवल वही हिस्सा नहीं
, पूरी की पूरी मस्जिद ढहा दी जाती है और फिर मसजिद बनाने की अनुमति नहीं मिलती. उनकी लड़कियों के लिए ग़ैर मुसलिम हानवंशी चीनियों के साथ रात्रिविश्राम अनिवार्य कर दिया गया है. ख़ैर, चूँकि एशियाई इलाके में इस्लाम का सबसे बड़ा पैरोकार और भारत में तमाम पंथनिरपेक्ष लोगों के प्रेम और विश्वास का सबसे बड़ा पात्र पापिस्तान उनके साथ है, लिहाजा हमें मानना ही होगा कि चीन अपने जबरिया कब्जाए हुए शिनझियांग प्रांत में पंथनिरपेक्षता के साथ-साथ मानवाधिकार का यथोचित क्रियान्वयन कर रहा है.

पांचवा उदाहरण हाँगकांग
पता नहीं क्या सूझा कि हाँगकांग में भी लोगों को लोकतंत्र की बकवास भाने लग गई है. अब हाल हाल में जो घटनाएं हुईं
, वो आप जानते ही हैं.

ख़ैर
, अब ताजा उदाहरण ये कोरोना है.
जो आधिकारिक आँकड़े हैं वो तो आपके सामने हैं ही और जो विभिन्न कंपनियों से लीक होकर आ रहे हैं
, वह भी आप तक भी उतने ही पहुँच रहे हैं, जितने मेरे तक. तमाम संक्रमित लोगों को जिस तरह वहाँ इलाज की व्यवस्था न हो पाने पर रिवॉल्वर की गोलियों के जरिये मोक्ष का प्रसाद बाँटा जा रहा है और उसके चलते जो सल्फर डाई ऑक्साइड का धुआँ वुहान शहर के ऊपर मंडरा रहा है, कल्पना करिए अगर यह हमारे स्वनामधन्य महान मीडिया हाउसों के बुद्धिजीवी टाइप दिखने वाले कुछ पत्रकारों की नजर में यह कहीं भारत टाइप किसी गैर कांग्रेसी सत्ता वाले किसी तानाशाही शासित देश में आ गया होता, तो.......  

©
इष्ट देव सांकृत्यायन


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