मेरी चीन यात्रा - 12
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इस
समापन अंक में मैं कुछ छिटपुट बातों के साथ वापसी यात्रा की चर्चा करुंगा। सम्मेलन
के दूसरे दिन डा. श्रीनरहरि ने अपराह्न को बताया कि एशियन साइंस फिक्शन एसोसिएशन
की एक मीटिंग शाम को बुलाई गई है जिसमें उन्हें जाना है। मैं अभी भी इस एसोसिएशन
के इक्ज़िक्यूटिव बोर्ड में हूं मगर मुझे कोई सूचना नहीं थी। डा. नरहरि ने कहा कि
वी चैट चेक करिए होगी जरूर। देखा मगर नहीं थी। डा. नरहरि होटेल में ही आहूत मीटिंग
में त्वरा से निकल गए।
अब
बिना बुलाए तो भगवान के पास भी न जाऊं वाला ही विकल्प मेरे सामने था। गया नहीं मगर
इसके बारे में वी चैट पर लिख जरुर दिया। एक दो मेम्बर्स ने भी कहा कि उन्हें भी
कोई सूचना नहीं दी गई। बहरहाल बिना सभी बोर्ड मेम्बर्स को सूचित किए इस बैठक में
क्या गुल खिले मालूम नहीं हो पाया। डा. नरहरि ने तदनंतर बताया कि बैठक में अगला
सम्मेलन किस देश में हो इस पर वोटिंग थी मगर उन्होंने इसमें भाग नहीं लिया। उनके
अनुसार एक और मुद्दा उठा था कि उन देशों को इस एशियाई संगठन में शामिल किया जाय या
नहीं जहां आतंकवाद का बोलबाला है। अंततः कुछ भी निर्णीत नहीं हुआ। खैर मीटिंग ही
अवैधानिक थी तो निर्णय भी क्या होता? होता भी तो आपत्तियां उठतीं। जो भी हो इन स्तरों पर भी ऐसी गैर
जिम्मेदार गतिविधियाँ हैरत में डलती हैं।
पच्चीस
नवंबर के अलसुबह हमें भारत के लिए प्रस्थान करना था। आम राय बनी कि चौबीस पच्चीस
की अर्धरात्रि में यानि बारह बजे ही होटेल छोड़ दिया जाय। फ्लाइट सुबह पांच पर थी।
यह काफी जल्दी तो था मगर निर्णय यही लिया गया कि वहीं एअरपोर्ट पर ही झपकी ले ली
जाएगी। होटेल रिसेप्शन से एडवांस के पांच सौ युवान यानि पांच हजार वापस भी लेने थे
जो सेक्योरिटी के रुप में सभी प्रतिभागियों से जमा कराए गए थे। जैसी प्रक्रिया है
होटेल स्टाफ से रिक्त किया गया रुम चेक कराया गया। मेरे साथ डा. नरहरि और डा. सामी
भी एडवांस वापसी की लाइन में थे। एक वालंटियर से रिसेप्शन बाला ने मेरे रुम को
लेकर कुछ कहा। वालंटियर ने मुझसे कुछ कहा। मैं समझ नहीं पाया। बात एडवांस वापसी के
बारे में ही लगी। क्या मामला हो गया, एक तीव्र आशंका उठी। अब वालंटियर ने कागज पर लिखा - फोर्टी युवान वुड
बी डिडक्टेड ऐज पिलोज वेयर फाउंड अनटाइड। कुछ समझ में नहीं आया। पाठक मित्र कुछ
समझें हों तो कृपया बताएं। मैंने चार सौ रुपये की कटौती पर शेष चार सौ साठ युवान
की वापसी को गनीमत माना। झठ से हां करके शेष रुपये लिए। डा श्रीनरहरि और डा सामी
को पूरी वापसी हुई।
चेंगडू
के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर रात पलकों में कट गई। सुरक्षा इमिग्रेशन सहज बीता।
अपने यहां तो सुरक्षा जांच में बेल्ट तक उतरवा देते हैं वहां ऐसा कुछ नहीं। विमान
समय पर था। अभी भोर की पौ भी नहीं फटी थी हम भारत की ओर उड़ चले। अलविदा चेंगडू
कहा, विमान के विंडो से रंगबिरंगे लट्टुओं
से झिलमिलाते चेंगडू शहर का फोटो लिया। भारतीय समयानुसार साढ़े आठ बजे हम
इंदिरागांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे टी थ्री पर आ पहुंचे।
इमिग्रेशन पर पहले वाले अधिकारी मित्र तो नहीं थे मगर उन्होंने एक दूसरे अधिकारी को सहेज रखा था जिससे दो मिनट में इमिग्रेशन निपटा। डा. नरहरि को टी वन जाना था तो वे तेजी से निकल गए थे। हमने और डा. सामी और ज़ारा ने एक फेरी शटल कर लिया था तो आराम और जल्दी ही सामान लेने कन्वेयर बेल्ट पर आए। डा. नरहरि भी वहां थे। और थीं एक से एक बढकर अंग्रेजी शराबों से सजी अनेक ड्यूटी फ्री दुकानें। वहीं फोरेक्स काउंटर भी दिखा जहां युवान वापस कर ढ़ेर सारी भारतीय करेंसी मिल गई।
मुझे टी थ्री से ही एअर इंडिया विमान से बनारस आना
था। बड़ी लंबी यात्री लाइन थी। खाड़ी देशों से बहुत से यात्री एअर इंडिया से सुबह
आ पहुंचे थे। लाइन में लगे उकता गया तो मित्र के पी सिंह एअर इंडिया प्रबंधक बनारस
को फोन मिलाया। उन्होंने फौरन मदद की। बोर्डिंग पास लेकर अब कुछ पेटपूजा की। फिर
गया होते हुए लालबहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय एअरपोर्ट बाबतपुर पर हमारा विमान
पौने तीन बजे अपराह्न आ गया। चीन से सकुशल वापसी पर मेरे परिजन एअरपोर्ट पर स्वागत
के लिए तैयार थे।
Excellent the end of journey
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