निराश क्यों होता है मन
अपने हाथों से
जब होगा
अपनी स्थिति में परिवर्तन,
फिर निराश
क्यों होता है मन?
हमने ही
तारों की
सारी क्रिया बनाई,
हमने ही
नापी
जब सागर की गहराई;
हमने ही
जब तोड़े
अपनी सारी सीमाओं
के बन्धन -
फिर निराश
क्यों होता है मन?
मेरी
पैनी नज़रों ने ही
खोज निकाले
खनिज
अंधेरी घाटी से भी;
हमने
अपने मन की गंगा
सदा बहाई
चीर के
चट्टानों की छाती से भी;
कदम बढ़ाओ
लक्ष्य है आतुर
करने को तेरा आलिंगन.
फिर निराश
क्यों होता है मन?
मत सहलाओ
पैर के छालों को
रह- रह कर.
ये तो
सच्चे राही के
पैरों के जेवर.
मत घबराओ
तूफानों से या बिजली से
नहीं ये शाश्वत
क्षण भर के
मौसम के तेवर.
धीरे-धीरे
सब बाधाएँ
थक जाएँगी,
तब राहों के
अंगारे भी
बन जाएँगे शीतल चंदन.
फिर निराश
क्यों होता है मन?
विनय स्नेहिल
जब होगा
अपनी स्थिति में परिवर्तन,
फिर निराश
क्यों होता है मन?
हमने ही
तारों की
सारी क्रिया बनाई,
हमने ही
नापी
जब सागर की गहराई;
हमने ही
जब तोड़े
अपनी सारी सीमाओं
के बन्धन -
फिर निराश
क्यों होता है मन?
मेरी
पैनी नज़रों ने ही
खोज निकाले
खनिज
अंधेरी घाटी से भी;
हमने
अपने मन की गंगा
सदा बहाई
चीर के
चट्टानों की छाती से भी;
कदम बढ़ाओ
लक्ष्य है आतुर
करने को तेरा आलिंगन.
फिर निराश
क्यों होता है मन?
मत सहलाओ
पैर के छालों को
रह- रह कर.
ये तो
सच्चे राही के
पैरों के जेवर.
मत घबराओ
तूफानों से या बिजली से
नहीं ये शाश्वत
क्षण भर के
मौसम के तेवर.
धीरे-धीरे
सब बाधाएँ
थक जाएँगी,
तब राहों के
अंगारे भी
बन जाएँगे शीतल चंदन.
फिर निराश
क्यों होता है मन?
विनय स्नेहिल
कविता के गुण के दृष्टिकोण से यह रचना उम्दा है…और साथ ही मानववाद का संरक्षक भी…लेकिन मुझे जो चीज अच्छी लगी वह है मानव की शेष जिज्ञासा और उसे पूरा करने का सतत प्रयास चूंकि यहाँ निराशा का बिंदु ही समाप्त हो गया तो कविता आशा के आधार से उठ गई…।धन्यवाद!!!
ReplyDeleteF2A0D9E827
ReplyDeletekiralık hacker
hacker arıyorum
belek
kadriye
serik