चुप रहिए
देख रहे हैं जो भी, किसी से मत कहिए,
मौसम ठीक नहीं है, आजकल चुप रहिए.
फुलवारी में फूलों से भी ज्यादा साँपों के पहरे हैं,
रंगों के शौक़ीन आजकल जलते जंगल में ठहरे हैं.
जिनके लिए समंदर छोड़ा वे बदल भी काम न आए,
नई सुबह का वादा करके लोग अंधेरों तक ले आए.
भूलो यह भी दर्द चलो कुछ और जिएँ,
जाने कब रूक जाएँ जिंदगी के पहिए.
रमानाथ अवस्थी
मौसम ठीक नहीं है, आजकल चुप रहिए.
फुलवारी में फूलों से भी ज्यादा साँपों के पहरे हैं,
रंगों के शौक़ीन आजकल जलते जंगल में ठहरे हैं.
जिनके लिए समंदर छोड़ा वे बदल भी काम न आए,
नई सुबह का वादा करके लोग अंधेरों तक ले आए.
भूलो यह भी दर्द चलो कुछ और जिएँ,
जाने कब रूक जाएँ जिंदगी के पहिए.
रमानाथ अवस्थी
धन्यवाद मेरे ब्लोग में पधार ने के लिये.
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