सबसे बुरे दिनों से भी बुरे दिन
इष्ट देव सांकृत्यायन
सबसे बुरे दिन
तब नहीं होते
जब दो शेर
आमने सामने होते
हैं.
तब भी नहीं
जब बाज
गौरैये पर नज़र गड़ाए
हो.
तब भी नहीं
जब लोमड़ी खरगोश पर
घात लगाए बैठी हो.
सबसे बुरे दिन तब
होते हैं
जब लकड़बग्घा हंसों
से सहानुभूति जताए,
जब बगुला
सोनमछली से
अपनी रिश्तेदारी जोड़
ले,
जब बेतरह घायल चीता
लंगूर का चरणस्पर्श
करने लगे.
लेकिन नहीं,
सबसे बुरे दिन ही
अंतिम नहीं हैं.
असल में सबसे बुरे
दिनों से भी
बुरे दिन होते
हैं...
तब..
जब सेकुलरिज्म नाम
के
सबसे गंदे नाले का
कोई कीड़ा
ब्राह्मणों से
सहानुभूति जताए...
केवल नाम के
ब्राह्मणों
[जाति वाले... कर्म वाले नहीं]
तब तुम भी
अनिवार्य रूप से
वेदों की ओर मुड़
जाना.
बेहतर होगा
कि शहर के राजपथ
छोड़कर
किसी अरण्य की
पगडंडी पकड़ लेना.
बाक़ी सचमुच का
ब्राह्मण तो
इस झांसे में आने से
रहा.
क्योंकि
वह राजमहल में रहकर
भी
अरण्यवासी ही होता
है..
उसे ब्रह्मचर्य या
सत्य पर प्रयोग की
आवश्यकता नहींं
होती.
उसके लिए तो वह जीवन
का शर्त होती है.
[#असंपादित]
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 29 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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