मेरी चीन यात्रा - 3
चेंगडू (चीन) के लिये इन्डिगो का विमान रात दस बजे
उड़ने को तैयार था। यह लगभग चार घंटे की उड़ान के बाद चेंगडू सुबह चार बजे पहुंचने
वाला था। दरअसल चेंगडू और नई दिल्ली के वक्त में ढाई घंटे का फर्क है। मतलब यहां
जब रात के दो बजते तो चेंगडू में सुबह का साढ़े चार होता। सही समय पर विमान उड़
चला। अभी यही कोई बीस पचीस मिनट हुए थे कि एकदम आगे की दाहिनी ओर की सीट पर कुछ
हलचल सी होने लगी। एक गगन परिचारिका वहां पहुंच कर सिचुयेशन समझने की कोशिश कर रही
थी। और पीछे की कुर्सियों पर के लोग उचक-उचक अपनी जिज्ञासा दूर करने के उपक्रम कर
रहे थे। मुझे कुछ अनहोनी की आशंका बल्कि यों कहिए कुछ अशुभ लक्षण का आभास होने
लगा।
अब परिचारिका एक मिनी आक्सीजन सिलेंडर दौड़ के लाई और
संभवतः उस यात्री को आक्सीजन देने लगी। मेरी सीट की छठवीं कतार थी इसलिए कुछ खास
समझ में तो आ नहीं रहा था मगर गतिविधियां किसी गंभीर स्थिति की ओर इशारा कर रहीं
थीं। अब पूरा विमान परिचारक स्टाफ स्थिति को संभालने में जुट गया था। विमान अपनी
गति से आगे बढ़ता जा रहा था। तभी एक परिचारक ने घोषणा की कि यदि कोई चिकित्सक
विमान में हों तो तुरंत उनकी जरुरत है, कृपया संपर्क करें। कोई उठा नहीं। शायद परिचारक को अपनी भूल का अहसास हुआ कि अंग्रेजी
में की गई उसकी घोषणा का कोई असर इसलिए नहीं हुआ क्योंकि विमान के नब्बे फीसदी
यात्री तो चीनी थे जिन्हें मंदारिन (चीनी भाषा) के अलावा कोई भाषा नहीं आती थी।
बाकी दस फीसदी में जिसमें हम भी थे कोई चिकित्सक नहीं था, इसलिए शांत बैठे रहे। शायद यात्री की हालत गंभीर होती
जा रही थी और उपयुक्त इलाज की फौरन जरुरत थी।
विमान चालक दल के एक सहायक कैप्टन को अपनी केबिन से
बाहर आना पड़ा। उन्हें थोड़ी मंदारिन आती थी। उन्होंने ध्वनि यंत्र से कुछ
चिंगचांग फेमफाम सिन्सान जैसा उच्चारण किया तो मानों विमान में एक हलचल सी मच गई।
बीमार यात्री चीनी था और उसकी मदद में कई चीनी तुरंत वहां पहुंच गए। एक अजीब अबूझ
भाषा का कलरव पूरे विमान में गूंजने लगा जो हमारे पल्ले बिल्कुल नहीं पड़ रहा था। हाँ, हम गेस कर रहे थे कि शायद यात्री को दिल का दौरा पड़ गया था।
अब मन में एक नई आशंका उभर आई कि कहीं मानव ज़िंदगी
को बचाने की आपात स्थिति में विमान वापस दिल्ली एअरपोर्ट की ओर न लौट चले। ऐसा
लगता कि बस यही घोषणा होने वाली थी - अब हुई या तब हुई। उधर चीनी डाक्टर और विमान
परिचारक मरीज को सामान्य करने के लिए जूझ रहे थे। अजीब सी चिल्ल पों मची थी जिसे
देखकर एक हिंदीभाषी दल बेसाख्ता हंसे जा रहा था जिसमें किशोर किशोरियां थीं।
उन्हें आकर बार-बार विमान परिचारिकाएं टोक रही थीं।
मुझे भी हिंदीभाषियों का यह बर्ताव नागवार लग रहा था।
मगर उन्हें चाओं चाओं करते चीनियों पर हंसी छूट रही थी और मेरा दिमाग तेजी से उन
स्थितियों पर विचार कर रहा था कि अगर विमान दिल्ली लौट चला तो आगे की रणनीति क्या
होगी। एक बार तो दिमाग में आया कि चेंगडू यात्रा ही तब क्यों न रद्द कर दें।
लेकिन धीरे धीरे शांति कायम हो गई। अब हल्की झपकी भी
मुझे आने लग गई थी। विमान गंतव्य की ओर अहर्निश उड़ा जा रहा था। समय से था। सब कुछ
ठीक रहने पर हम अगले दो घंटे में चेंगडू में उतरने वाले थे। मगर अभी तो एक और बड़ी
आपातस्थिति हमारा इंतज़ार कर रही थी।
हमारी ओर एक लोक कहावत है कि जहां जाएं घग्घोरानी
वहां पड़े पत्थर पानी। और अपने परिवार में मैं काफी समय से घग्घोरानी घोषित हूं कि
मेरी उपस्थिति में अक्सर ही यात्रा विघ्न होते हैं, यह परिवार वालों का दावा है। उनके पास पर्याप्त आंकड़े हैं कि घर के किसी भी
एक सदस्य या कई सदस्यों की यात्राएं प्रायः निर्विघ्न बीतती हैं लेकिन मेरे शामिल
होने पर जरूर कोई न कोई आफत आ जाती है। और अब फिर वही घग्घोरानी प्रभाव प्रगट होने
वाला था मगर हम अनजान थे।
जारी....
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सुस्वागतम!!