इमरजेंसी बनाम ट्वीट
इष्ट देव सांकृत्यायन
बेशक इतने जहर की खेती कुछ दिनों में ही नहीं हुई है।
लेकिन भारत की जनता ने आपको सत्ता सौंपी है पात्रा जी!
किसलिए?
केवल बैठकर ट्वीट करने के लिए?
कल्पना करिए, केरल सरकार ने जो संसद के दोनों सदनों से पारित जिस विधि के विरुद्ध प्रस्ताव पारित किया, वह अगर उसने श्रीमती इंदिरा गांधी के समय में किया होता! तो?
"अफजल
हम शर्मिंदा हैं" के नारे अगर उस समय लगे होते, तो?
शरजील ने या इन मोहतरमा ने जो बकवास की, वह श्रीमती इंदिरा गांधी के समय में हुई होती तो?
सोचिए,
अपना कार्यकाल पूरा कर चुकी एक लोकसभा, जिसके होने का कोई अर्थ नहीं रह गया था, द्वारा संविधान के मूलभूत ढांचे में किया गया
परिवर्तन आज मूलभूत ढांचे का अंग माना जा रहा है. न तब उस पर किसी को उंगली उठाने
की हिम्मत हुई और न अब है....
तानाशाह तो आप बिना हुए ही कहे जा रहे हैं.
जब आरोप लगना ही हो तो पहले जिस नाते लगा हो उसे सच
करके दिखाना चाहिए....
फिर आगे किसी को झूठा आरोप लगाने की भी हिम्मत नहीं
होगी.
वरना ऐसे ही शाहीन बाग, बेनिया बाग और फलाना-ढिमका होते रहेंगे..
आप ट्वीट करते रहेंगे...
ऐसे ही नारे लगते रहेंगे और आप ट्वीट करते रहेंगे...
ऐसे ही लोग सरकार को गाली देते रहेंगे...
अपने समय के सबसे लोकप्रिय नेता को गाली देते
रहेंगे..
और आप ट्वीट करते रहेंगे...
तो फिर एक दिन यही जनता मान लेगी कि आप बहुत अच्छे
ट्वीटर हैं और फिर आपको परमानेंट ट्वीट पर ही लगा देगी.
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सुस्वागतम!!