मेरी चीन यात्रा - 8
यह यात्रावृत्त शुरू से पढ़ने के लिए कृपया चटका लगाएं: पहली, दूसरी, तीसरी, चौथी, पांचवीं, छठी एवं सातवीं कड़ी
एक घंटे के उद्घाटन समारोह के पश्चात मुख्य हाल में ही कई विषयों पर
विचारोत्तेजक विमर्श था। बीच में लंच भी था। चायनीज अपने दैनिक कार्यकलापों में
नाश्ता लंच डिनर जल्दी करते हैं। साढ़े छह बजे नाश्ता, 12 बजे लंच और शाम को
जल्दी ही छह बजे से डिनर शुरू। हमें कूपन भी इसी
तरह मिले थे। एक बड़े से आयोजन परिसर में मुख्य कार्यक्रम हाल, प्रदर्शनी हाल, समानांतर सत्रों के कक्ष और भोजन का हाल भी था जो लगभग
दस मिनट की चहलकदमी पर था। पूरे परिसर में कई खानपान और स्मृति चिह्नों की सजी-धजी दुकानें भी थीं जिससे खूब चहल-पहल
रहती थी। आयोजकों की ओर से प्रतिभागी स्वतंत्र थे, चाहे वे चर्चा
परिचर्चा या विमर्श से ज्ञानार्जन करें या घूमे फिरें।
मेरा,
डॉ. नरहरि और डॉ. सामी का किसी
पैनेल में नाम नहीं था और कहीं बोलने का भी अवसर नहीं घोषित था। इसलिए हम भी
बिल्कुल मुक्त महसूस कर रहे थे किंतु यह
तनिक क्षोभजनक तो था ही कि क्या हमें केवल मूक दर्शक के तौर पर अतिथि आमंत्रण मिला
था! आखिर आयोजकों का मकसद क्या था। एजेंडा क्या था! बहरहाल
चर्चाओं को हम सुन रहे थे। एक बड़ी उल्लेखनीय बात थी कि चेंगडू शहर को चीन के
साइंस फिक्शन सिटी की पहचान मिली थी जहां इसे एक उद्योग के रूप में प्रमोट किया गया था। कई रेस्तरांओं में साइंस फिक्शन व्यंजनों की पूरी श्रृंखला ही थी। कुछ व्यंजनों के नाम थे -
स्पेस टाइम फोल्डिंग, इंटरसेलर क्रॉसिंग, फायर एंड सी आदि।
कहना नहीं है कि यह सब
भयंकर सामिष फूड थे।
चर्चा का एक फोरम तो साइंस फिक्शन और नई अर्थव्यवस्था पर था जिसमें इस उद्योग के संभावित विकास के पड़ावों पर
विचार विमर्श हुआ। एक रोचक विमर्श का विषय था - पश्चिम में अवनति और पूर्व में
उन्नति की ओर विज्ञान कथा साहित्य। जिसमें ह्यूगो और नेबुला विजेता कनाडावासी रॉबर्ट जे सायर ने पूर्व में विज्ञान कथा साहित्य
के अरुणोदय और पश्चिम में अवसान का खाका खींचा। इस विद्वान विज्ञान कथाकार से मुझे
बातचीत का सौभाग्य मिला। भारत के बारे में उनकी अनेक जिज्ञासाएं थीं। खासकर बच्चों
के लिए विज्ञान कथालेखन पर। मैंने भारत की विज्ञानकथाओं की गुणवत्ता बताई और बनारस के लिए
आमंत्रित किया।
एक गोलमेज चर्चा एशियन विज्ञानकथा के भविष्य को लेकर थी जिसमें हमें
पूरी रुचि थी मगर यह निराश करने वाली थी। इसमें मलेशियाई, जापानी , कोरियाई और भारतीय
प्रतिनिधि के तौर पर अमेरिका प्रवासी मोनिदीपा मंडल हिस्सा ले रही थीं। मोनिदीपा
को बांग्ला और अंग्रेजी कथा साहित्य के अलावा अन्य भाषाओं के विज्ञान कथा साहित्य
की जानकारी न के बराबर थी। उन्हें आयोजकों ने संभवतः उनके अमेरिकी प्रवास और एक
खास भारत पूर्वाग्रही विचारधारा को लेकर महत्व दिया था। वे अपने को दलित लेखक के
रुप में भी प्रोजेक्ट करती हैं और एक खास लेखकीय लाबी/गुट का प्रतिनिधित्व करती
हैं।
एक और सक्रिय चर्चाकार वाई के युन थीं जो कोरियाई विज्ञान कथा एसोसियेशन की उपाध्यक्ष और एशियन विज्ञान कथा एसोसियेशन की वर्तमान सचिव हैं और मैं इसी एसोसियेशन की प्रशासनिक ईकाई में उप सचिव हूं। मगर
अच्छी तरह पूर्व परिचित होने के बावजूद इन दोनों नारी प्रतिभागियों ने मुझे इग्नोर
और अवायड किया। हां,
मोनिदीपा ने डॉ. सामी का नामोल्लेख
मंच से जरूर किया। करीब दो तीन वर्ष पहले मोनिदीपा
ऊर्फ मिमी ने मुझसे भारतीय विज्ञान कथा लेखक समिति जिसका मैं सचिव हूं के बारे में
चर्चाएं की थीं। मगर जब उन्होंने दलित लेखक होने
का तमगा ओढ़ा तो मैंने इस प्रवृत्ति की मुखर आलोचना की थी जिससे उनका मनोमालिन्य
अब साफ प्रगट हो रहा था। मेरे सामान्य शिष्टाचार अभिवादन का भी उन्होंने उत्तर नहीं दिया।
वाई के युन ने एशियन एसोसियेशन के गठन के मुद्दों पर मुझसे खूब चर्चाएं की थीं। कोरिया से फोन पर
भी चर्चा होती। पर सम्मेलन में तो जैसे पहचाना तक नहीं। यह सब मेरे लिए अबूझ
पीड़ादायक व्यवहार था। सच है, कतिपय उन्नतिशील
नारियां खुद भले ही खुद को समझ लें, रचयिता ईश्वर भी उनसे पार नहीं पा सकता। कुतो
मनुष्यः?
सुश्री वाई के युन एक जगह सहसा दिखीं तो तुरत-फुरत
मैंने एक सोयुवनीर फोटो का
आग्रह किया। डॉ. सामी साथ थे।
उन्होंने मुझे बताया कि उनकी भाव भंगिमा ग्रुप फोटो खिंचवाने की नहीं थी। मुझे
अफसोस हुआ। हलांकि मैंने उनसे बस एक सवाल दन से कर डाला था कि वे एशियन एसोसिएशन में सक्रिय क्यों
नहीं हैं तो उनका अति संक्षिप्त उत्तर था कि संगठन के कामों से उनका निजी लेखन
प्रभावित हो रहा था। एक
अमेरिकी विज्ञानकथा सक्रियक पाब्लो मुझसे खूब ईमेल पत्राचार करता था
किन्तु बन्दा वहां विमुख हो गया। बता दूं कि यह भी इसी चौकड़ी का है। जैसे सबने
मिलकर भारत को उपेक्षित करने की ठानी थी।
इस पूरे आयोजन में वर्ल्डकान के अमेरिकी
पदाधिकारियों को खूब आदरभाव और तवज्जो मिल रही थी। कारण कि चीन 2023 के वर्ल्डकान को चेंगडू में कराने को कटिबद्ध
हैं। और यह बिना उनके अनुमोदन के संभव नहीं है। मेरा मन तिक्त हो चला था। हम
वेन्यू से अपराह्न में वापस होटेल हो लिए। वैसे
भी शेष दिन के समानांतर सत्रों में मेरी या भारतीय रुचि का खास कुछ भी नहीं था।
सोचा जल्दी चलकर कुछ चायनीज बाजार हाट घूमा जाय।
जारी...
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