मज़हब बदलने से पुरखे नहीं बदलते....सो अपने पुरखों की जय बोलने में गुरेज़ कैसा....!!!
मज़हब बदलने से पुरखे नहीं बदलते....सो अपने पुरखों की जय बोलने में गुरेज़ कैसा....!!!
दरअसल, मेरे एक मुस्लिम मित्र हैं. बीते सप्ताह यह बात उन्होंने मुझे कही. सन्दर्भ था सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मसले के जाने का.मुझे उनकी बात में दम लगा. कहीं भी किसी कोण से क्या आपको लगता है कि वो गलत कह रहे हैं ?क्या आपको लगता है कि यह साम्प्रदायिक कथन है?कम से कम न तो उन मुस्लिम मित्र को लगा न ही मुझे. उनका मानना है कि भारत में इस्लाम कुछ सौ साल पहले ही आया. उससे पहले यहाँ ना तो कोई इस्लाम को जानता था और ना ही मस्जिद नाम के किसी पूजा स्थल के बारे में.मुगलों के आने और खासतौर पर औरंगजेब द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन के बाद ही यहाँ मुसलमानों की आबादी इस कदर बढी है. लेकिन इससे उनके पुरखे तो नहीं बदले. सवाल यह है कि इस देश में अब रहने वाले मुसलमानों के पुरखे कौन थे ? क्या राम और कृष्ण उनके भी पूर्वज नहीं हैं..? क्या राम और कृष्ण जितने हिन्दुओं के हैं उतने ही उनके भी नहीं हैं ...आखिर राम और कृष्ण हैं तो हम सब हिन्दुस्तानियों के पुरखे ही सो पुरखों की जय बोलने में दिक्कत कैसी? भले ही आज हमारे पूजा-पाठ के तौर तरीके बदल गए हों...धर्म ग्रन्थ बदले हों...आस्था और विश्वास बदला हो..कर्मकांड बदला हो पर पुरखे तो नहीं बदले जा सकते इसलिए राम और कृष्ण की जय बोलने से किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए...मैं उन मुस्लिम मित्र की बात से सौ फीसदी सहमत हूँ...पर क्या सच में ऐसा है..नहीं और न ही ऐसी कोई संभावना दिखती है...काश ऐसा हो जाये तो अयोध्या,मथुरा,काशी का झगडा ही नहीं रहेगा...
-अनिल आर्य
काश कि सभी झगड़े खत्म हों.
ReplyDeleteकोई भी कुछ भी माने पर झगडे....तो ना ही करे....
ReplyDeletebhai pehle quraan or gitaa pdho raamaayn pdho konsaa mzhb khaan se kese niklaa pdho or smjho aadm hvvaa ko kis mzhb kaa khaa jata he shiv parvti kise khte he agr sb dhrm pdhne ke baad aek smaan he to kyun aek dusre pr kichd uchhalte ho aapko apna dhrm mubark dusre ko uska dhrm mubark sbhi ko apnaa apna dhrm mubark fir kyun be vjh jhgde krte ho hr dhrm me sukh shanti ki bat krne vaale log mhatma he to araajkta felaane vaale raakshs he to aap raakshsh kyun bnte ho mhatmaa bn kr dikhao yaron . akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteपुरखों के लिये ही सही, यह वैमनस्यता मिटे।
ReplyDeleteअख्तर साहब बिलकुल ठीक कह रहे हैं. धर्म कभी भी किसी तरह के झगड़े की बात नहीं करते. झगड़े सिर्फ़ पावरप्ले में लगेगी सत्ता प्रतिष्ठान करते हैं. चाहे वे राजनीतिक पार्टियों के रूप में हों या फिर धर्मगुरुओं के रूप में. हमें इन दोनों ही से बचना है.
ReplyDeleteमज़हब बदलने से पुरखे नहीं बदलते....सो अपने पुरखों की जय बोलने में गुरेज़ कैसा....!!!
ReplyDeletesahee hai.
बहुत सही कहा है आपके मित्र ने.
ReplyDeleteबिलकुल सही कह रहे हैं. परन्तु आजकल वे ज्यादा प्याज खाने लगे हैं. और हम भी. तो महंगाई तो बढ़नी ही है.
ReplyDeleteहतप्रभ हूँ !!!!
ReplyDeleteभारत में रहने वाला कुछ पीढ़ियों पहले हिन्दू से मुस्लिम या क्रिश्चियन बना कोई एक भी व्यक्ति ऐसी सोच रखता है ????