वो यादें...


बीती शाम ही छोटे भाई के साथ जमीन पर बैठकर एक ही थाली में आलू के झोल के साथ रोटी खा रहा था....भाई कहने लगा-"भैया याद आया कैसे गाँव में चूल्हे के सामने बैठकर आलू के झोल के साथ रोटी खाते थे..!!! माँ रोटी बनाती जाती और हम पहली गस्सी (रोटी का पहला ग्रास) के लिए झगड़ते थे कि पहले मैं लूँगा कि पहले मैं लूँगा. जब छोटी बहन भी संग बैठने लगी तो पहली गस्सी कौन उसे पहले खिलायेगा इस पर झगडा होता था." सच बहुत याद आए वो दिन पर अब कहाँ वो सब..!!! भाई अपने घर, बहन अपने घर और मैं अपने घर. अपने- अपने डब्बों में बंद, सिमटे हुए और माँ- पिता जी कभी इस घर तो कभी उस घर, जब जहां उनका जी चाहे. शायद परिवार यूं ही बढ़ते हैं और संसार यूं ही चलता है...बिना थके, बिना रुके, अनवरत.....

Comments

  1. क्या करें... यह सब तो बहुत याद आता है.

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  2. बेहतरीन पोस्ट.
    आपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"

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  3. मुझे भी बचपन के दिन याद आते हैं, हम तीन भाई बहनों का झगड़ा।

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  4. बया के घोंसले बयां करती सी लग रही हैं.

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  5. खिंचड़ी के दिन ब्राह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना, पीला वस्त्र पहनकर कुम्हार के यहाँ से लाये मिट्टी के बर्तन (पतुकी) में खिचड़ी बनाने की समस्त सामग्री व लाइ-तिल रखकर मंत्रोच्चार के साथ दान करना। फिर लाई और तिल के लड्डू खाना। फिर सभी भाई-बहन एक साथ पाँत में बै्ठे हुए गरमागर्म खिचड़ी में देसी घी डालकर मूली और बैगन-पालक-सोया के साग के साथ खाने का आनंद अब कहाँ मिल पा रहा है।

    दिनभर खिंचड़ी मांगने वालों को घर के भीतर से ला-लाकर देना अब पता नहीं कैसे होता होगा? सब घर से दूर अलग-अलग अपनी गृहस्थी में रमे हुए हैं।

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  6. इस प्रेम की व्याख्या नहीं की जा सकती ...

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