असहिष्णुताई पर रहनुमाई


पंथनिरपेक्षता को तो आपने मजाक बना दिया है.
क्योंकि कुल मिलाकर एक पंथ का अंधविरोध और एक की अंधपक्षधरता ही आपके लिए पंथनिरपेक्षता है. अब आँख वाले और पढ़े-लिखे ही नहीं, दृष्टिबाधित लोग भी समझने लगे हैं.
आपके पुरस्कार वहाँ वापस होते हैं जहाँ एक पंथविशेष का अपराधी पकड़ा जाता है, उसके खिलाफ़ आवाज उठती है या फिर वह चाहे जैसे सही मर जाता है. या पीट दिया जाता है.
उसी पंथविशेष से जुड़ा एक व्यक्ति, जो पेशे से वकील है, पीट दिया गया.
क्यों?
क्योंकि उसने मुरादाबाद जिले में पंथविशेष के लोगों के बीच सीएए के फ़ायदे गिनाए.
इसके लिए सिर्फ पीटा ही नहीं गया, हुक्का-पानी भी बंद कर दिया गया.
यानी
इनकी मंशा इस विषय पर न तो कुछ सुनने की है और न समझने की.
निश्चित रूप से यह संसार का सबसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण है.
आखिर यही तो है वैज्ञानिक दृष्टिकोण.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और होता ही क्या है!
जो भी आपके खिलाफ बात करे वह संघी.
गोया संघी होना कोई गुनाह है.
हालांकि समझ नहीं पाया आज तक कि
अगर वामपंथी होना गुनाह नहीं है
अगर कांग्रेसी होना गुनाह नहीं है
अगर गांधीवादी होना गुनाह नहीं है
अगर समाजवादी होना गुनाह नहीं है
तो संघी होना गुनाह कैसे हो गया.
ख़ैर,
लेकिन उस वकील की इस पिटाई और हुक्का-पानी बंदीकरण यानी कि सामाजिक बहिष्कार पर
कहीं कोई असहिष्णुत की आवाज उठी क्या?
क्यों भाई, था तो वह भी मुसलमान ही?
इस पर तो आवाज उठनी चाहिए थी. आपके पुरस्कार वापस होने चाहिए थे. आपको नजला-जुकाम सब होना चाहिए था. यह काम कोई मॉब लिंचिंग से कम आपराधिक तो नहीं है! फिर क्यों आपको कुछ नहीं हुआ? क्या हो गया है आपको?
साफ अर्थ इसका यही है न, कि आपकी सहानुभूति मुसलमान से भी नहीं, उसकी जाहिलियत से है. उसके वोटबैंक है.
असल में आप भारतीय मुसलमान के नहीं, उन गिरोहों के समर्थक हैं,. गुलाम हैं, जो उसका निर्मम इस्तेमाल कर रहे हैं. जैसे कि आइएसआइ, जैसे कि आइएसआइएस, जैसे कि पीएफआइ, जैसे कि मुस्लिम ब्रदरहुड... हर उस बुरी ताकत से है जो भारत के खिलाफ है.
जान लीजिए
भारत के लिए अब आप और आपका अरण्यरोदन दोनों पूरी तरह
अप्रासंगिक हो चुके हैं.



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