मेरी चीन यात्रा - 4


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हमारे दैनिक क्रियाकलाप की जैवीय घड़ी जन्मभूमि से जुड़ी होती है। मैं रात में जल्दी सो जाता हूं और जल्दी उठता हूं। अब ज्यादातर विदेशी हवाई यात्राएं रात में होती हैं। यानि जब हम रात मे आरामदायक शैय्या शयन कर रहे होते हैं तो एक विदेशयात्री वायुयान की असहज सीट पर ऊंघता होता है। अब यही हमारी स्थिति थी। आंखे भले झपक जा रहीं थी पर नींद गायब थी। सारे विमान में भी लोगों की यही स्थिति थी। सभी ऊंघ रहे थे। मैंने चीन के समय के अनुसार सेट की गई अपनी घड़ी देखी। सुबह के साढ़े तीन बज रहे थे यानि अपने देश में रात्रि के एक बजे।
मन अशांत सा था। दरअसल मनुष्य के लिए अपनों से अलगाव, अकेलापन तथा विस्थापन एक त्रासद मनःस्थिति होती है। नए स्थान, नए लोगों को लेकर तरह तरह की आशंकाएं और एक तरह की असहायता सी मन में उभरती है। और मुझे अकेलेपन की भी अनुभूति हो रही थी। बगल के दोनों यात्री चीनी थे। उनसे बोलना बतियाना तो दूर हम एक दूसरे के चेहरे के भावों को भी समझ नहीं पा रहे थे। हां, इस असहायता को समझ रहे थे और इसकी अभिव्यक्ति कभी-कभार एक लाचार मुस्कान के आदान-प्रदान से हो रहा था। भाषा की दीवार चीन की दीवार से भी ऊंची थी।
लगभग चार बजे (चायनीज़ टाईम) - सभी ऊंघ रहे थे, तभी अंग्रेजी में घोषणा गूंजी कि विमान बस कुछ समय में चेंगडू में उतरने वाला है। शरीर में एक ऊर्जा प्रवाह हो गया। पता नहीं मेरे मित्रों ने भी यह घोषणा सुनी थी या नहीं क्योंकि कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। लगता था सभी को नींद आ गई थी। मगर मैं सक्रिय हो गया था। मेरे बगल के यात्री सो रहे थे। आसपास का माहौल भी उनींदा था। सब एक आश्वस्ति भाव से निश्चिंत निद्रामग्न थे।

मैं विमान की लैंडिंग के लिए  प्रतीक्षारत हो गया। मगर पंद्रह मिनट, बीस मिनट, पच्चीस - तीस मिनट और अब तो पैंतालीस मिनट विमान उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था।

तभी मुझे एक जबर्दस्त घग्घोरानी टाईप फीलिंग हुई। और वह भयावह उद्घोषणा भी तभी हुई। जहाज के मुख्य कप्तान की भर्राई सी आवाज कि बैड वेदर के चलते चेंगडू ग्राउंड विभाग ने विमान के लैंडिंग की अनुमति नहीं दी लिहाजा वे दूसरे एअरपोर्ट पर लैंड करने जा रहे हैं। दिल डूबने सा लगा। लो भला। कोई आसपास तो एअरपोर्ट होता नहीं। सैकड़ों मील दूर ही दूसरा एअरपोर्ट होगा। अब क्या होगा?

लगता है यह उद्ग्घोषणा विमान में अनसुनी सी रह गई थी। लोग निश्चिंत से थे और ऐसी कोई प्रत्याशा तो थी नहीं और अंग्रेजी भी चीनी यात्री समझ नहीं पाए थे। हां मेरी बाईं ओर बैठी एक चीनी यात्री ने मुझे प्रश्नवाचक निगाहों से देखा मानो पूछ रही थी कि क्या एनाउंस हो गया? मैंने अंग्रेजी में उसे बताया पर उसे कुछ समझ नहीं आया। हां, अब हमारे हिंदी बेल्ट में कुछ खुसर-पुसर शुरू हो गई
मैं इस आपात स्थिति को लेकर मन को संयत रखने और आगे की वैकल्पिक रणनीति बनाने में लग गया। कहीं चेंगडू लैंडमार्ग से न ले जाया जाय? क्योंकि भारत में कई बार बहुत खराब मौसम में बनारस की उड़ानें लखनऊ या इलाहाबाद में लैंड करायी गई थीं और यात्रियों को सड़क मार्ग से गंतव्य तक भेजा गया। एक उहापोह की स्थिति थी। लैंडिंग की आरंभिक घोषणा के पूरे एक घंटे हो गए थे विमान अभी हवा में ही था। फिर कैप्टन की वही भारी भर्राई आवाज - लैंडिंग इन इमर्जेंसी आन चोंगक्विंग जियांगबी इंंरनेशनल एअरपोर्ट। क्रू स्टाफ को भी एलर्ट किया।

विमान की बत्तियां जल उठीं। सभी परिचारक यात्रियों की सीट बेल्ट चेक करने में लग गए। सीट सीधी होने लग गईं। अभी भी बहुतों को पता नहीं था कि यह चेंगडू नहीं कोई और एअरपोर्ट था। कैप्टन का उच्चारण तब हमें भी समझ नहीं आया था। वह तो बाद में एअरपोर्ट का सही नाम गूगल.... सॉरी, बिंग कर पता किया था। चीन में गूगल तो चलता नहीं।
खैर यान सुरक्षित लैंड कर गया। मगर अनिश्चयों और उहापोहों की एक लंबी समयावधि को निमंत्रित कर गया था। यात्रियों को धीरे धीरे पता लगना शुरू हो गया था कि यह चेंगडू नहीं कोई और एअरपोर्ट था। कोलाहल, संभ्रम और घबराहट का एक नया अध्याय शुरू हो चुका था।
जारी....


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