उल्टी गंगा बहाती फिल्में
गंगा गंगोत्री से निकलकर ऋषिकेश, हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर, कानपुर, प्रयागराज, काशी, अजगैबीनाथ आदि होते हुए हावड़ा से आगे जाकर गंगा सागर में मिलती है क्या? नहीं न।
असल में इसका उलटा है।
असल में है क्या कि गंगा गंगासागर से निकलती है और भुवनेश्वर, हैदराबाद, चेन्नई, बंगलुरू, मुंबई, लाहौर, काबुल, मॉस्को आदि होते हुए आल्प्स की पहाड़ियों में कहीं मिल जाती है।
अगर आप इस सच को स्वीकार कर सकते हैं तो जरूर देखें। फिल्में आपके लिए ही बनती हैं। अगर आप इस सच से आहत नहीं होते हैं, अगर आपके मन में इस सच पर कोई सवाल नहीं उठता, अगर आपके मन में सच और स्थापित तथ्यों को क्रिएटिविटी के नाम पर इस तरह विकृत किए जाने पर कोई पीड़ा नहीं होती, अगर आप गटर को बिस्लरी और बिसलरी को गटर मान सकते हैं तो साथी फिल्में जरूर, जरूर, जरूर देखें। फिल्में आपके लिए ही बनती हैं।
आप ही हैं वो होनहार जिसके दम पर कई लाख करोड़ का धंधा चल रहा है। आप ही हैं वो महान आत्मा जिसके दम जिनके साथ बैठने में भी सभ्य व्यक्ति को शर्म आनी चाहिए उनके एक आटोग्राफ के लिए कुछ लोग कुत्ते से भी बदतर बनने को तैयार हैं। आप ही हैं वो विद्वाज्जन जिनके लिए भारत के सारे अखबार आमजन की बिजली, पानी, शिक्षा, चिकित्सा, सरकारी महकमों में हर जगह घूसखोरी, भ्रष्टाचार जैसी ख़बरें छोड़कर रुपहले परदे वाले वालियों के बेडरूम से लेकर उनके ताजातरीन बच्चे की सुसू पॉटी की खबरें आमजन तक पहुंचाकर कृतकृत्य हो रहे हैं। और हां, वह दानवीर भी आप ही हैं जिनके दम पर अंडर वर्ल्ड के तमाम मेहनतकश लोगों का बड़ी मेहनत से कमाया गया धन धवल हो रहा है।
बिलकुल शुरुआती दौर की बात छोड़ दें, जब औरतों के किरदार पुरुषों को निभाने पड़ते थे, जब भले घरों के लड़कों के लिए भी सिनेमा में काम करना अच्छी बात नहीं समझी जाती थी, जब फिल्में देखना बहुत गौरव की बात नहीं थी... हां तब फिल्मों को फाइनेंसर भी आसानी से नहीं मिलते थे। जैसे तैसे लोग फिल्में बनाते थे और जैसे तैसे ही देखते थे। फिर दौर आया मुनाफे का और इसके साथ ही इसमें घुसा अंडर वर्ल्ड।
अंडर वर्ल्ड का धन कहीं भी बड़ी आसानी से नहीं जाता। वह अपने साथ कई शर्तें ले जाता है। किसी संचार माध्यम में उसकी पहली शर्त समाज में अपनी जगह, अपने लिए स्वीकृति बनानी होती है। इसके लिए सिनेमा के निर्माता निर्देशक, खासकर हिंदी सिनेमा के, बड़ी आसानी से तैयार हो जाते रहे हैं।
याद है आपको, एक दौर था केवल डाकू जी वाली फिल्मों का। पहले डाकू जी को समाज में बड़ा सम्मान दिलाया गया। अरे उन्हें गरीबों का मसीहा बनाया गया भाई। पहले विक्टिम फिर मसीहा। फिर आया तस्कर जी लोगों का दौर। कुछ नौजवान लड़के तो तस्कर ही बनने की योग्यता अर्जित करने की बात सोचने लगे। फिर आया डॉन जी लोगों का दौर। आप आज भी कुछ लोगों को अपने को बड़ी शान से डॉन बोलते सुन सकते हैं। सोचिए, कितने सम्मान के पात्र हो गए डॉन साहब! यह सब उसी अंडर वर्ल्ड के धन का प्रसाद है। और आप उसे बढ़ाने में भागीदार हो रहे हैं।
अरे दौर तो चलाने की कोशिश की गई थी आतंकवादी जी को भी महान बनाने की एक। थोड़ा थोड़ा चला भी। एक दो महान शोमैन जी लोगों ने बड़ी हिम्मत करके अपने भीतर की पूरी बेशर्मी खर्च भी कर डाली। लेकिन वो उससे काम चल नहीं पाया। फिर बेशर्मी के आयात और तस्करी की भी कोशिश की गई। पर उससे भी काम नहीं चला। इसलिए उसे भविष्य के लिए छोड़ दिया गया। लेकिन भविष्य में वह दौर आएगा जरूर। बस आप अपना हौसला और फरजीपने की दुनिया को अपना पूरा समर्थन बनाए रखें।
अब देखिए न, अभी कुछ लोग एक फिल्म को हिट कराने पर तुल गए हैं। बता रहे हैं कि वह तथ्यों के बिलकुल विपरीत कहानी बना रहा है। अब वो उसका विरोध कर रहे हैं। विरोध इसलिए कर रहे हैं कि उनकी आस्था को ठेस लग रही है। अबे तुम्हारी आस्था और सचमुच के सच की परवाह किसे है मेरे दोस्त?
कहां जाओगे तुम अपनी आस्था और तथ्य लेकर। जहां जाओगे वहां से 2जी, 3जी, सी जी और एनएचजी वालों को सिर्फ जमानत दी जाती है। देश भर के अखबरकर्मियों के श्रम के विरुद्ध खुद ताकतवर लोगो द्वारा खुद बड़े दरबार की खुल्लखुल्ला और स्वयंसिद्ध अवमानना को अवमानना नहीं माना जाता। और हां, जिस महाझूठ की बात तुम कर रहे हो, इसी बेहूदगी को वहां अभिव्यक्ति और रचनातमकता की स्वतंत्रता और अधिकार माना जाता है।
तो तुम्हारे यह चिल्लाने से उन्हें कोई नुक्सान नहीं होता, उलटा फायदा होता है। लोग जानते हैं उनका नाम और वो भी चले जाते हैं हाल तक जिन्हें नहीं जाना होता। उनका धंधा बढ़ता है।
यह धंधा बढ़ने का सीधा मतलब है अंडर वर्ल्ड का पैसा बढ़ना। अंडर वर्ल्ड का पैसा बढ़ने का सीधा मतलब है ड्रग तस्करी और आतंकवाद बढ़ना। अब यह तो आप सोचना ही छोड़ चुके हैं कि फिल्में आपके बच्चों को संस्कार क्या दे रही हैं। इसे सोच का पिछड़ापन मान लिया गया है। यह तो सोचिए कि इनके अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र के जरिए आप उन्हें भविष्य क्या दे रहे हैं। उनके जीने के लिए कैसा समाज छोड़कर जाने की तैयारी कर रहे हैं आप?
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