vyangya
निजीकरण
(यह व्यंग्य उस समय लिखा गया था जब अपने देष में निजीकरण जोरों पर था । यह रचना समकालीन अभिव्यक्ति के अक्तूबर- दिसम्बर 2002 अंक में प्रकाषित हुआ था।)
अन्ततः चिरप्रतीक्षित और अनुमानित दिन आ ही गया।देष के समस्त समाचार पत्रों एवं पत्रकों के वर्गीकृत में सरकार के निजीकरण की निविदा आमंत्रण सूचना छप ही गई।
क्रमांक टी.टी./पी.पी./सी.सी./0000004321/पत्रांक सी.टी./एस. टी./00/जी.डी./प्राइ./99/निजी./010101/यूनि./86/ दिनांक............ के शुद्ध prshasnic shabdavali में निविदा का मजमून-
एक प्रतिष्ठित , अनिष्चित,विकृत एवं वैष्वीकृत सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र से वैयक्तिक क्षेत्र में हस्तांतरित करने के लिए प्रतिष्ठित एवं अनुभवी प्रतिष्ठानों/समूहों /संगठनों से मुहरबंद निविदाएं आमंत्रित की जाती है।निविदा प्रपत्र सरकार के मुख्यालय से किसी भी कार्यदिवस पर एक मिलियन यू.एस. डाॅलर का पटल भुगतान करके खरीदा जा सकता है। सामग्री एवं कर्मचारियों का निरीक्षण नहीं किया जा सकता है। निविदा की अन्य षर्तें निम्नवत हैं-
1-प्रत्येक बोलीदाता का प्रतिष्ठित ठेकेदार के रूप में पंजीकृत hona आवष्यक है।
2-बोलीदाता के पास किन्हीं पांच राज्यों में सरकार चलाने का अनुभव होना आवष्यक
है।
3-ऐसे व्यक्ति निविदा हेतु पात्र नहीं माने जाएंगे जिन्हें संगीन अपराध के जुर्म में
न्यायालयों के चक्कर काटने का अनुभव न हो।
4-बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को उच्च प्राथमिकता दी जाएगी और यदि कोई बहुराष्ट्रीय
कम्पनी उच्चतम बोली अन्य राष्ट्रीय कम्पनियों से पचास प्रतिषत तक कम लगाएगी
तब भी निविदा उसी के नाम छूटी हुई मानी जाएगी।
5-बोलीदाता को समस्त सांसदों, विधायकों एवं प्रथम श्रेणी अधिकारियों का आजीवन
खर्च तथा सात पीढ़ियों तक का नफासत खर्च जमा कराना होगा।
6- समस्त भुगतान यू.एस डालर्स या स्विस बैंक के खातों में ही स्वीकार किए जाएंगे।
7-सरकारी इमारतों एवं कर्मचारियों का हस्तांतरण ’जहाँ है,जैसे है‘ के आधार पर
लेना अनिवार्य होगा।यदि कोई बोलीदाता इन्हें लेने से मना करता है तो उसकी
बोली स्वतः रद्द समझी जाएगी और जमानत राषि जब्त कर ली जाएगी।
8- अन्तर्राष्ट्रीय दबाव में निविदा को निरस्त करने का अधिकार सुरक्षित है।
किसी भी अन्य गोपनीय जानकारी के लिए उचित षुल्क के साथ अधोहस्ताक्षरी से सम्पर्क कर सकते हैं।
हस्ताक्षरित/-
निविदा अधिकारी
......... सरकार
( जनहित में जारी )
जनता ने एक अखबार में पढ़ा, फिर अनेक में पढ़ा। दरअसल मामला राष्ट्रीय
महत्व का था, इसलिए निविदा देष के हर अखबार में छपी, अनेक प्रकार से छपी। हिन्दी अखबार में अंगरेजी में छपी और अंगरेजी अखबार में हिन्दी मे छपी। पंजाबी पत्र में उर्दू में ,उर्दू अखबार में तेलुगु भाषा में। बांग्ला में मराठी में,मराठी में असमिया और कन्नड़ अखबार में गुजराती भाषा में। संस्कृत में कोई अखबार होता नहीं था इसके लिए अंगरेजी में माफी मांग ली गई।
भाषा कोई भी हो,अखबार दो प्रकार के होते थे।एक तो वे जो विज्ञापन दाताओं से पैसा वसूल कर अखबार फ्री बांटते,दूसरे वे जो पाठकों से पैसा वसूल कर विज्ञापन मुफ्त छापते।सबकी अपनी -अपनी नीति, अपनी - अपनी रीति।
बहरहाल,सरकार के निजीकरण की निविदा आ गई-जैसे कोई किसान-मजदूर अपनी बीवी की दवा के लिए घर का आखिरी बर्तन बेच रहा हो- इस विष्वास से कि कोई बड़ा अस्पताल उसकी बीवी को भर्ती करने के लिए तैयार हो जाएगा।
निजीकरण वर्ष और निजीकरण सप्ताह का आयोजन करके सरकार ने निजीकरण का लक्ष्य आसानी से प्राप्त कर लिया था। बचा- खुचा तो केवल दषमलव में रह गया था।हाँ, अस्पतालों में निजीकरण कुछ कम रह गया था और निजीकरण से बचे अस्पतालों में कुछ विषेष व्यवस्था करनी पड़ गई थी।
दरअसल समस्त बड़े अस्पतालों का निजीकरण करने की निविदा आमंत्रित की गई थी किन्तु गलती यह रह गई कि इच्छुक पार्टियों को “ जहां है जैसे है” के आधार पर अस्पतालों के निरीक्षण की स्वतंत्रता प्रदान कर दी गई थी।यूँ तो बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ उत्साहित थीं ,किन्तु निरीक्षण के उपरान्त उनका मन बदल गया। कम्प्यूटर पर हिसाब लगाकर देखा तो माथा चकरा गया।उन्होंने सरकार को बताया कि वे निविदा की जमानत राषि जब्त करवाना पसन्द करेंगी ,बजाय इन अस्पतालों को खरीदने के क्योंकि इन अस्पतालों को प्राइवेट लुक देने के लिए गन्दगी साफ कराने में जो खर्च आएगा, उससे कम में नया अस्पताल बन जाएगा। हाँ,यदि सरकार पूरी इमारत गिरवाकर और मलवा हटवा कर स्थान ही दे दे तो वे निविदा लगाने को तैयार हैं। सरकारी कम्प्यूटरों ने भी हिसाब लगाया। मलवे से बने अस्पताल को गिराने और मलवा हटाने मे जो खर्च आ रहा था वह अस्पताल की लागत का साढ़े सड़सठ गुना था। फिर गिराने की निविदा अलग से। लिहाजा सरकार ने सुधार हेतु कुछ आमूल-चूल परिवर्तन किए।
सरकार धर्म एवं संस्कृति की पोषक थी। नामकरण संस्कार में उसका अटूट विष्वास था। ज्योतिषी जी को बुलाया गया।उन्होंने विचार किया।अस्पताल के जन्मांग चक्र एवं ग्रह दषा के अनुसार प्रथम वर्ण ’मो’ या ’मौ’ आ रहा था।अस्पताल जिस प्रकार सुविधाग्रस्त था,उससे अधिकांष मरीज सहज ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे और ज्योतिष गणना के अनुसार उपयुक्त नाम ’मौतधाम’ या ’मौतकेन्द्र ’ हो सकता था, पर सरकार चूँकि आदर्ष परम्परा की प्रतिनिधि थी,इसलिए अस्पताल का नाम दिया गया ’मोक्षधाम’।व्यवस्थानुसार जहाँ नाम सार्थक था , वहीं इस मिथक को भी तोड़ता था कि मोक्ष के लिए अब काषी जाना और मृत्यु के लिए वर्षों संघर्ष करना आवष्यक ही है।आपके कर्म ठीक हैं तो आप कहीं भी मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। कबीर का मगहर!
दूसरा बड़ा सुधार यह किया गया कि प्रत्येक अस्पताल में दो-दो अत्याधुनिक ष्ष्मषान बनाए गए-हिन्दुओं के लिए अलग और मुसलमानों के लिए अलग। अस्पताल में जितने बिस्तर ,उतनी ही क्षमता का ष्ष्मषान। दोनों ष्मषानों में वातानुकूलन,
वाटरकूलर,इण्डियन एण्ड चाइनीज रेस्टोरेन्ट, काफी हाउस एवं जनसुविधाएँ । टिकठी ,कफन, बतासे,फूल अगरबत्ती,तिल एवं पेट्रोल,कीकर से लेकर चन्दन तक की लकड़ी की सरकारी दूकानें ।स्पेषल चिता डिजाइनर निःषुल्क!धार्मिक कैसेटों की एक कम्पनी की तरफ से दाह संस्कार के कैसेट मुफ्त।दूसरी ओर कब्रों को पक्की करने के लिए लोकनिर्माण विभाग के सिविल इंजीनियर ,इक्जीक्यूटिव इंजीनियर एवं वास्तुषास्त्री चैबीस घंटे मुफ्त सेवा में ।सीमेन्ट,संगमरमर एवं अन्य सामान रियायती दर पर।पहले से बुक कराने पर पचास प्रतिषत तक छूट।चिकित्साधिकारी डा. क्रूर सिंह को हटाकर डा. निर्दय सिंह को लाया गया।
अब मोक्षधाम की बड़ी प्रतिष्ठा है। बड़े-बड़े लोग, बड़े-बड़े अधिकारी आज इस अस्पताल में अपने माँ- बाप को भर्ती कराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाते हैं।एक बार भर्ती हो जाए तो समझो हमेषा के लिए छुट्टी!अभी संयुक्त सचिव ष्षर्माजी ने अपनी माँ को भर्ती कराया था।खुषी में अच्छी-खासी पार्टी भी दी। देते क्यों नहीं, कितनी मुष्किल से गरीबी रेखा के नीचे का प्रमाण पत्र बनवाया था ,तब भर्ती मिली। कहाँ- कहाँ दवा नहीं करवाई,पर झंझट यहीं से छूटा!
------आगे जारी ----
(यह व्यंग्य उस समय लिखा गया था जब अपने देष में निजीकरण जोरों पर था । यह रचना समकालीन अभिव्यक्ति के अक्तूबर- दिसम्बर 2002 अंक में प्रकाषित हुआ था।)
अन्ततः चिरप्रतीक्षित और अनुमानित दिन आ ही गया।देष के समस्त समाचार पत्रों एवं पत्रकों के वर्गीकृत में सरकार के निजीकरण की निविदा आमंत्रण सूचना छप ही गई।
क्रमांक टी.टी./पी.पी./सी.सी./0000004321/पत्रांक सी.टी./एस. टी./00/जी.डी./प्राइ./99/निजी./010101/यूनि./86/ दिनांक............ के शुद्ध prshasnic shabdavali में निविदा का मजमून-
एक प्रतिष्ठित , अनिष्चित,विकृत एवं वैष्वीकृत सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र से वैयक्तिक क्षेत्र में हस्तांतरित करने के लिए प्रतिष्ठित एवं अनुभवी प्रतिष्ठानों/समूहों /संगठनों से मुहरबंद निविदाएं आमंत्रित की जाती है।निविदा प्रपत्र सरकार के मुख्यालय से किसी भी कार्यदिवस पर एक मिलियन यू.एस. डाॅलर का पटल भुगतान करके खरीदा जा सकता है। सामग्री एवं कर्मचारियों का निरीक्षण नहीं किया जा सकता है। निविदा की अन्य षर्तें निम्नवत हैं-
1-प्रत्येक बोलीदाता का प्रतिष्ठित ठेकेदार के रूप में पंजीकृत hona आवष्यक है।
2-बोलीदाता के पास किन्हीं पांच राज्यों में सरकार चलाने का अनुभव होना आवष्यक
है।
3-ऐसे व्यक्ति निविदा हेतु पात्र नहीं माने जाएंगे जिन्हें संगीन अपराध के जुर्म में
न्यायालयों के चक्कर काटने का अनुभव न हो।
4-बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को उच्च प्राथमिकता दी जाएगी और यदि कोई बहुराष्ट्रीय
कम्पनी उच्चतम बोली अन्य राष्ट्रीय कम्पनियों से पचास प्रतिषत तक कम लगाएगी
तब भी निविदा उसी के नाम छूटी हुई मानी जाएगी।
5-बोलीदाता को समस्त सांसदों, विधायकों एवं प्रथम श्रेणी अधिकारियों का आजीवन
खर्च तथा सात पीढ़ियों तक का नफासत खर्च जमा कराना होगा।
6- समस्त भुगतान यू.एस डालर्स या स्विस बैंक के खातों में ही स्वीकार किए जाएंगे।
7-सरकारी इमारतों एवं कर्मचारियों का हस्तांतरण ’जहाँ है,जैसे है‘ के आधार पर
लेना अनिवार्य होगा।यदि कोई बोलीदाता इन्हें लेने से मना करता है तो उसकी
बोली स्वतः रद्द समझी जाएगी और जमानत राषि जब्त कर ली जाएगी।
8- अन्तर्राष्ट्रीय दबाव में निविदा को निरस्त करने का अधिकार सुरक्षित है।
किसी भी अन्य गोपनीय जानकारी के लिए उचित षुल्क के साथ अधोहस्ताक्षरी से सम्पर्क कर सकते हैं।
हस्ताक्षरित/-
निविदा अधिकारी
......... सरकार
( जनहित में जारी )
जनता ने एक अखबार में पढ़ा, फिर अनेक में पढ़ा। दरअसल मामला राष्ट्रीय
महत्व का था, इसलिए निविदा देष के हर अखबार में छपी, अनेक प्रकार से छपी। हिन्दी अखबार में अंगरेजी में छपी और अंगरेजी अखबार में हिन्दी मे छपी। पंजाबी पत्र में उर्दू में ,उर्दू अखबार में तेलुगु भाषा में। बांग्ला में मराठी में,मराठी में असमिया और कन्नड़ अखबार में गुजराती भाषा में। संस्कृत में कोई अखबार होता नहीं था इसके लिए अंगरेजी में माफी मांग ली गई।
भाषा कोई भी हो,अखबार दो प्रकार के होते थे।एक तो वे जो विज्ञापन दाताओं से पैसा वसूल कर अखबार फ्री बांटते,दूसरे वे जो पाठकों से पैसा वसूल कर विज्ञापन मुफ्त छापते।सबकी अपनी -अपनी नीति, अपनी - अपनी रीति।
बहरहाल,सरकार के निजीकरण की निविदा आ गई-जैसे कोई किसान-मजदूर अपनी बीवी की दवा के लिए घर का आखिरी बर्तन बेच रहा हो- इस विष्वास से कि कोई बड़ा अस्पताल उसकी बीवी को भर्ती करने के लिए तैयार हो जाएगा।
निजीकरण वर्ष और निजीकरण सप्ताह का आयोजन करके सरकार ने निजीकरण का लक्ष्य आसानी से प्राप्त कर लिया था। बचा- खुचा तो केवल दषमलव में रह गया था।हाँ, अस्पतालों में निजीकरण कुछ कम रह गया था और निजीकरण से बचे अस्पतालों में कुछ विषेष व्यवस्था करनी पड़ गई थी।
दरअसल समस्त बड़े अस्पतालों का निजीकरण करने की निविदा आमंत्रित की गई थी किन्तु गलती यह रह गई कि इच्छुक पार्टियों को “ जहां है जैसे है” के आधार पर अस्पतालों के निरीक्षण की स्वतंत्रता प्रदान कर दी गई थी।यूँ तो बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ उत्साहित थीं ,किन्तु निरीक्षण के उपरान्त उनका मन बदल गया। कम्प्यूटर पर हिसाब लगाकर देखा तो माथा चकरा गया।उन्होंने सरकार को बताया कि वे निविदा की जमानत राषि जब्त करवाना पसन्द करेंगी ,बजाय इन अस्पतालों को खरीदने के क्योंकि इन अस्पतालों को प्राइवेट लुक देने के लिए गन्दगी साफ कराने में जो खर्च आएगा, उससे कम में नया अस्पताल बन जाएगा। हाँ,यदि सरकार पूरी इमारत गिरवाकर और मलवा हटवा कर स्थान ही दे दे तो वे निविदा लगाने को तैयार हैं। सरकारी कम्प्यूटरों ने भी हिसाब लगाया। मलवे से बने अस्पताल को गिराने और मलवा हटाने मे जो खर्च आ रहा था वह अस्पताल की लागत का साढ़े सड़सठ गुना था। फिर गिराने की निविदा अलग से। लिहाजा सरकार ने सुधार हेतु कुछ आमूल-चूल परिवर्तन किए।
सरकार धर्म एवं संस्कृति की पोषक थी। नामकरण संस्कार में उसका अटूट विष्वास था। ज्योतिषी जी को बुलाया गया।उन्होंने विचार किया।अस्पताल के जन्मांग चक्र एवं ग्रह दषा के अनुसार प्रथम वर्ण ’मो’ या ’मौ’ आ रहा था।अस्पताल जिस प्रकार सुविधाग्रस्त था,उससे अधिकांष मरीज सहज ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे और ज्योतिष गणना के अनुसार उपयुक्त नाम ’मौतधाम’ या ’मौतकेन्द्र ’ हो सकता था, पर सरकार चूँकि आदर्ष परम्परा की प्रतिनिधि थी,इसलिए अस्पताल का नाम दिया गया ’मोक्षधाम’।व्यवस्थानुसार जहाँ नाम सार्थक था , वहीं इस मिथक को भी तोड़ता था कि मोक्ष के लिए अब काषी जाना और मृत्यु के लिए वर्षों संघर्ष करना आवष्यक ही है।आपके कर्म ठीक हैं तो आप कहीं भी मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। कबीर का मगहर!
दूसरा बड़ा सुधार यह किया गया कि प्रत्येक अस्पताल में दो-दो अत्याधुनिक ष्ष्मषान बनाए गए-हिन्दुओं के लिए अलग और मुसलमानों के लिए अलग। अस्पताल में जितने बिस्तर ,उतनी ही क्षमता का ष्ष्मषान। दोनों ष्मषानों में वातानुकूलन,
वाटरकूलर,इण्डियन एण्ड चाइनीज रेस्टोरेन्ट, काफी हाउस एवं जनसुविधाएँ । टिकठी ,कफन, बतासे,फूल अगरबत्ती,तिल एवं पेट्रोल,कीकर से लेकर चन्दन तक की लकड़ी की सरकारी दूकानें ।स्पेषल चिता डिजाइनर निःषुल्क!धार्मिक कैसेटों की एक कम्पनी की तरफ से दाह संस्कार के कैसेट मुफ्त।दूसरी ओर कब्रों को पक्की करने के लिए लोकनिर्माण विभाग के सिविल इंजीनियर ,इक्जीक्यूटिव इंजीनियर एवं वास्तुषास्त्री चैबीस घंटे मुफ्त सेवा में ।सीमेन्ट,संगमरमर एवं अन्य सामान रियायती दर पर।पहले से बुक कराने पर पचास प्रतिषत तक छूट।चिकित्साधिकारी डा. क्रूर सिंह को हटाकर डा. निर्दय सिंह को लाया गया।
अब मोक्षधाम की बड़ी प्रतिष्ठा है। बड़े-बड़े लोग, बड़े-बड़े अधिकारी आज इस अस्पताल में अपने माँ- बाप को भर्ती कराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाते हैं।एक बार भर्ती हो जाए तो समझो हमेषा के लिए छुट्टी!अभी संयुक्त सचिव ष्षर्माजी ने अपनी माँ को भर्ती कराया था।खुषी में अच्छी-खासी पार्टी भी दी। देते क्यों नहीं, कितनी मुष्किल से गरीबी रेखा के नीचे का प्रमाण पत्र बनवाया था ,तब भर्ती मिली। कहाँ- कहाँ दवा नहीं करवाई,पर झंझट यहीं से छूटा!
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Wah..Bandhuwaram..
ReplyDeleteआनंद आ गया .
ReplyDeleteबहुत खूब!!
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