कहाँ जाएंगे
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रतन
रहे जो अपनों में बेगाने कहां जाएंगे
जहाँ हों बातों से अनजाने कहां जाएंगे
प्यार का नाम ज़माने से मिटा दोगे अगर
तुम ही बतलाओ कि दीवाने कहां जाएंगे
होंगे साकी भी नहीं मय नहीं पयमाने नहीं
न हों मयखाने तो मस्ताने कहां जाएंगे
लिखे जो ख्वाब कि ताबीर सुहाने दिन में
न हों महफिल तो वे अफ़साने कहां जाएंगे
यों तो है जिंदगी जीने का सबब मर जाना
न हों शम्मा तो ये परवाने कहां जाएंगे
है समझ वाले सभी पर हैं नासमझ ये रतन
बात हो ऐसी तो समझाने कहां जायेंगे
जहाँ हों बातों से अनजाने कहां जाएंगे
प्यार का नाम ज़माने से मिटा दोगे अगर
तुम ही बतलाओ कि दीवाने कहां जाएंगे
होंगे साकी भी नहीं मय नहीं पयमाने नहीं
न हों मयखाने तो मस्ताने कहां जाएंगे
लिखे जो ख्वाब कि ताबीर सुहाने दिन में
न हों महफिल तो वे अफ़साने कहां जाएंगे
यों तो है जिंदगी जीने का सबब मर जाना
न हों शम्मा तो ये परवाने कहां जाएंगे
है समझ वाले सभी पर हैं नासमझ ये रतन
बात हो ऐसी तो समझाने कहां जायेंगे
एक बात तो है। सरकार चाहे जो आए मैखाने कहीं नहीं जाएंगे। वो तो बढ़ते ही रहेंगे। दीवाने भी वहां जा सकते हैं, गैर दीवाने भी
ReplyDeleteयकीनन. उन्हें हटना भी नहीं चाहिए.
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