Posts

Showing posts from March, 2020

दर्शन, दृष्टि और पाँव

Image
हरिशंकर राढ़ी  दर्शन, दृष्टि और पाँव का कवर  आज मेरे यात्रा संस्मरण ‘दर्शन, दृष्टि और पाँव’ की लेखकीय प्रतियाँ प्राप्त हुईं। वैसे तो यह पुस्तक अगस्त 2019 में ही प्रकाशित होकर आ गई थी किंतु तब कुछ ही प्रतियाँ मिली थीं। इस संस्मरण को विमोचन का सौभाग्य साहित्य मनीषी प्रो0 रामदरश मिश्र के हाथों उनके जन्मदिन के अवसर पर मिला था। प्रो0 मिश्र जी के जन्मदिन पर वरिष्ठ कवि-आलोचक ओम निश्चल, नरेश शांडिल्य, अलका सिन्हा, डाॅ0 वेदमित्र शुक्ल, उपेन्द्र कुमार मिश्र एवं अन्य ख्यातिलब्ध साहित्यकार उपस्थित  थे जिन्होंने इसके विमोचन को मेरे लिए गौरवपूर्ण बनाया। इसके बाद किन्ही कारणों से शेष प्रतियाँ आने में विलंब हो गया। इस संस्मरण में कुल दस ज्योतिर्लिंगों की यात्रा के साथ कन्याकुमारी, द्वारिका पुरी, मदुराई, सिक्किम, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, अजंता-एलोरा, पचमढ़ी, खजुराहो जैसे अनेक स्थानों का संस्मरण संकलित है। लगभग 240 पृष्ठों की इस पुस्तक को मनीष पब्लिकेशंस नई दिल्ली ने बहुत रुचिपूर्वक प्रकाशित किया है। आज शेष लेखकीय प्रतियाँ मिलीं तो सोचा कि क्यों न इसका एक और विमोच

निज़ामाबाद और शीतला माता

Image
हरिशंकर राढ़ी  शीतला माता मंदिर निज़ामाबाद (आजमगढ़ )       छाया : हरिशंकर राढ़ी  हमारे देश में न जाने कितने ऐसे धार्मिक स्थल हैं जहाँ विशाल संख्या में श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। इससे न केवल आमजन का पर्यटन हो जाता है , अपितु उन स्थानों पर हजारों लोगों की जीविका का साधन बनता है। ऐसा ही एक धार्मिक स्थल आजमगढ़ के निज़ामाबाद में स्थित शीतला माता का मंदिर है। निज़ामाबाद आजमगढ़ जनपद के लगभग मध्य में है। सुना बहुत था , जाने का संयोग कभी नहीं बना। हरी-भरी फसलों के बीच प्रकृति के वैभव का आनंद लेते हम निजामबाद स्थित शीतला माता के मंदिर पहुँच गए। यहाँ मेरा आना पहली बार हुआ। प्रथम दृष्टि   ही विश्वास हो गया कि इस मंदिर पर श्रद्धालुओं का आना-जाना बड़ी संख्या में होगा। कुल मिलाकर ग्रामीण परिवेश में बड़ा प्रंागण। हरे-भरे छायादार वृक्ष और प्रसाद बेचने वालों के अनगिनत ठीहे। हिंदू धर्म में लगभग सभी देवी-देवताओं के दिन निश्चित किए हुए हैं। देवी दुर्गा से संबंधित दिन प्रायः सोमवार या वृहस्पतिवार माना जाता है। जहाँ इतने देवी-देवता होंगे , ऐसी व्यवस्था बनानी ही पड़ेगी। जिस दिन हम पहुँचे , वह किसी

योगक्षेमम् वहाम्यहम्

इष्ट देव सांकृत्यायन विनम्र अनुरोध: परछिद्रान्वेषक कृपया सुरक्षित दूरी बनाए रखें. जिज्ञासाओं का समाधान करने की कोशिश तो हो सकती है , मूर्खतापूर्ण बकवासों का जवाब बिलकुल नहीं दिया जाएगा. अकेलापन आज के समाज की एक बड़ी और विकट समस्या है. महानगरों में तो यह बहुत पहले ही एक महामारी का रूप ले चुका है. गाँवों में भी इसकी व्याप्ति कम नहीं रह गई है. रोजगार की तलाश में गाँव के युवा शहरों का रुख कर रहे हैं और शहरों के युवा विदेशों का. जो युवा अपना घर-परिवार छोड़कर दूर जा रहे हैं , वे वहाँ अलग तरह से अकेलेपन के शिकार हो रहे हैं और जो जिनके बच्चे उनसे दूर जा रहे हैं , वे बुजुर्ग अलग ढंग के अकेलेपन के शिकार. मने हम यहाँ इधर तन्हा , तुम वहाँ उधर तन्हा ’ जैसा हाल है कुछ. इस बीच ये कोरोना इफेक्ट और आ गया. जो शिकार हुए वे तो वे , जो अभी तक बचे हैं वे भी आइसोलेट. कुछ आइसोलेट कर दिए तो कुछ हो गए. आइसोलेशन या क्वारेंटीन... सबकी मजबूरी हो गई है. ईश्वर करें कि जल्दी इस समस्या से मुक्ति मिले. लेकिन क्या होगा , कैसे कहें! फिलहाल मुझे ऐसी संभावना दिखती नहीं. हालांकि भगवान से मना यही रहा हूँ कि

व्यवस्था में कालनेमि

इष्ट देव सांकृत्यायन  ¶ निर्भया के दोषियों को फांसी होने से क्या बलात्कार रुक जाएंगे ?¶ ¶ यह प्रश्न आज वही उठा रहे हैं जो खुद को गलती से किसी की कुहनी लग जाने पर उसकी जान ले लेना चाहते हैं. ¶ तब कहां चली जाती है सारी सहिष्णुता तुम्हारी ? क्यों नहीं सुझती तुम्हें तब अहिंसा ? ¶ ये वही लोग हैं जो अपना पर्स चोरी हो जाने पर पूरे सिस्टम , पूरे देश और देश की सारी जनता को कोसने लगते हैं. गोया सब केवल इनका पर्स चुराने में जुटे पड़े थे. ¶ लेकिन सवाल यह है कि जब दोषी को सजा देनी ही नहीं , बलात्कार जैसा जघन्य अपराध करने वाले को एक मदरसे के फर्जी दस्तावेज के आधार पर नाबालिग मान लिया जाना है और उसे इस महान कृत्य के लिए पुरस्कार दिया जाना है , तो फिर जरूरत क्या है दुनिया में किसी सिस्टम की ? क्यों न चलने दिया जाए जंगल राज ? ¶ और बताएं आपको , दुनिया में कोई सिस्टम नहीं होना चाहिए , यह भी एक सिद्धांत है और इस सिद्धांत के आज के दुनिया में सबसे बड़े प्रतिपादकों वही हैं , जिनके अपने सिस्टम ने थ्येना आन मन चौक पर एक ही झटके में लाखों युवाओं को टैंक लगाकर उड़ा दिया था. उनका अपराध

Darshan, Drushti Aur Paaon

Image
दर्शन, दृष्टि और पाँव    (यात्रा संस्मरण) दर्शन, दृष्टि और पाँव का मुखपृष्ठ  आज मेरे यात्रा संस्मरण ‘दर्शन, दृष्टि और पाँव’ की लेखकीय प्रतियाँ प्राप्त हुईं। वैसे तो यह पुस्तक अगस्त 2019 में ही प्रकाशित होकर आ गई थी किंतु तब कुछ ही प्रतियाँ मिली थीं। इस संस्मरण को विमोचन का सौभाग्य साहित्य मनीषी प्रो0 रामदरश मिश्र के हाथों उनके जन्मदिन के अवसर पर मिला था। प्रो0 मिश्र जी के जन्मदिन पर वरिष्ठ कवि-आलोचक ओम निश्चल, नरेश शांडिल्य, अलका सिन्हा, डाॅ0 वेदमित्र शुक्ल, उपेन्द्र कुमार मिश्र एवं अन्य ख्यातिलब्ध साहित्यकार उपस्थित थे जिन्होंने इसके विमोचन को मेरे लिए गौरवपूर्ण बनाया। इसके बाद किन्ही कारणों से शेष प्रतियाँ आने में विलंब हो गया। इस संस्मरण में कुल दस ज्योतिर्लिंगों की यात्रा के साथ कन्याकुमारी, द्वारिका पुरी, मदुराई, सिक्किम, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, अजंता-एलोरा, पचमढ़ी, खजुराहो जैसे अनेक स्थानों का संस्मरण संकलित है। लगभग 240 पृष्ठों की इस पुस्तक को मनीष पब्लिकेशंस नई दिल्ली ने बहुत रुचिपूर्वक प्रकाशित किया है। आज शेष लेखकीय प्रतियाँ मिलीं तो सोचा कि क्यों न इसका एक औ

एक लोककथा की पुनर्रचना

इष्ट देव सांकृत्यायन  पहले वे अजगर को रस्सी बताते रहे. लोग विश्वास करते रहे और उसके पेट में जाते रहे. वे अहिंसा का पाठ पढ़ाते हुए समझाते रहे कि वो पचाएगा नहीं , जस का तस उगल देगा. जो अभी अजगर के पेट में गए हैं , सब सुरक्षित निकल आएंगे. लोग जाते रहे और बस जाते ही रहे. न अजगर ने कभी उगला और न लोग कभी निकले. निगलते निगलते उसने देश के दो पूरे हिस्से निगल लिए. पर संत जी तो अपनी बात पर डटे रहे. फिर लोगों को संदेह होने लगा. उन्हें लगने लगा कि संत जी या तो भ्रम में हैं या फिर झूठ बोल रहे हैं. लोगों ने संदेह जताया. उन्हें डांट कर चुप करा दिया. लोग फिर अजगर के पेट में जाते रहे. अब कुछ लोगों ने जोर जोर से चिल्लाना शुरू किया - वह रस्सी नहीं , अजगर ही है. संत जी और उनके चेलों को लगा कि अब गडबड हो जाएगी. तब उन्होंने अपने पालतू और आज्ञाकारी विदेशी कुत्ते छोड़ दिए. कुत्तों ने पहले भौंकना , फिर काटना और लोगो को नोचना शुरू कर दिया. कुत्ते जोर जोर से नक्कारे बजाने लगे - अजगर नहीं , वो रस्सी ही हैं . जरा नए किस्म की रस्सियां हैं . वे इतनी जोर से चिल्ला रहे थे कि अजगर बताने व

Most Read Posts

रामेश्वरम में

Bhairo Baba :Azamgarh ke

इति सिद्धम

Maihar Yatra

Azamgarh : History, Culture and People

पेड न्यूज क्या है?

...ये भी कोई तरीका है!

विदेशी विद्वानों के संस्कृत प्रेम की गहन पड़ताल

सीन बाई सीन देखिये फिल्म राब्स ..बिना पर्दे का

आइए, हम हिंदीजन तमिल सीखें