अक्क महादेवी की भक्ति और स्त्री स्वातंत्र्य

सोनाली मिश्रा 

यह कहानी शिव और उनकी एक भक्त के प्रेम की कहानी के साथ ही स्त्री की स्वतंत्रता की कहानी है, जिसकी आज कल्पना ही नहीं की जा सकती है.  भारतीय पुरुष स्त्री की विराटता के सम्मुख आदर से नतमस्तक हुए हैं, यदि स्त्री ने अपने अस्तित्व को विराट स्वरुप में दिखाया है, जैसे इन दिनों नौ दिनों में नौ रूपों का आदर करते हैं. यह कथा आज के खोखले स्त्री विमर्श पर प्रश्न उठाती है. आइये महादेव और अक्क महादेवी की भक्ति कथा और स्त्री स्वतंत्रता की कथा को पढ़ें:

“यदि मैं तुम्हारा पति नहीं, और तुम मुझे छोड़कर अपने चेन्नमल्लिकार्जुन के पास जाना चाहती हो तो जाओ! आज से यह महल तुम्हारा घर नहीं! जब से विवाह हुआ है, तब से तुम उस चेन्नमल्लिकार्जुन के कारण पति के निकट नहीं आ रही हो! जाओ, इस महल इसे इसी क्षण निकल जाओ!”

और महल में सन्नाटा छा गया! कर्नाटक के शिवमोग्गा जिले के शिकारीपुर तालुक में जन्मी अट्ठारह वर्ष की महादेवी आज अपने पति की सभा के मध्य खड़ी थीं. अपने इस लोक के पति राजा कौशिक के संग हुए अन्याय पर उसे दुःख था, परन्तु वह क्या करती! वह तो अपना ह्रदय शिव को दे चुकी थी!  और यह आज की बात न थी, न जाने कितने युगों से वह शिव को अपना मान चुकी थीं, न जाने किस अपराध के चलते इस धरती पर आ गयी थीं! क्यों आ गयी थीं, कौन सा पाप किया था, जो विधाता ने इतना रूप और इतने लम्बे केश दे दिए थे जो भूमि तक आ जाते! इसी रूप पर राजा कौशिक मोहित हो गए थे!

राजा के संग विवाह तो हो गया था, परन्तु वह जो ह्रदय से शिव को पति मान बैठी थीं, जिनके ह्रदय में शिव अपना स्थान स्थापित कर चुके थे वह कैसे अपनी देह को किसी व्यक्ति को छूने देतीं! महादेवी ने राजा कौशिक को प्रणाम किया और कहा

“आपने ठीक कहा राजन! मैं अब यहाँ से जाती हूँ, मैं अपने चेन्नमल्लिकार्जुन की भक्ति में ही जीवन रमाऊंगी! मुझसे जो धृष्टता हुई हों, मुझे क्षमा कीजियेगा!” और धीरे धीरे डग बढ़ाती हुई आगे बाहर जाने लगी!

राजा कौशिक, अपमान की आग में जल उठे! एक तो पत्नी और उस पर सौन्दर्य की यह मूर्ति, उनके राजपाट को ठुकरा कर जा रही थी! यह असहनीय था! राजा ने एक और गर्जना इस अपमान के वशीभूत होकर की

“यह जो वस्त्राभूषण आपने धारण किए हुए हैं, वह मेरी और इस राज्य की संपत्ति है! इन्हें उतार कर जाओ!”

सभा स्तब्ध थी! अक्क स्तब्ध थीं! धरती स्तब्ध थी और उस लोक में बैठी शिव जैसे विचार मग्न हों कि अब महादेवी क्या करेगी? महादेवी ने भूमि तक बिखरे अपने केशों से अपनी देह को ढका और राजा के सारे वस्त्राभूषण एक एक कर उतार दिए!

“इस देह से मोह के एक और बंधन को तुड़वाने का आभार राजन! भगवान और भक्त के मध्य इन वस्त्रों का क्या आशय!”

और उन्हीं केशों से अपनी देह के लिए वस्त्र बनाकर चल दी वहां से जहां पर रानी बनकर आईं थी महादेवी!

बारहवीं सदी में यह भक्तन शिव की ऐसी प्रेम दीवानी हुई कि वस्त्र तक त्याग दिए और कहा कि अब भक्त और प्रभु के मध्य वस्त्र के बंधन नहीं आएँगे! और चल दीं! प्रेम कौन से बंधन चाहता है, प्रेम निर्बाध बहने का नाम है! जब पश्चिम में वस्त्र क्रान्ति का नाम न था, तब भारत में जंगलों में भी स्त्रियाँ भक्ति में लीन होकर इस प्रकार न केवल वस्त्र विहीन निर्भय होकर विचरण कर सकती थीं, बल्कि पूरे समाज में आदर पा सकती थीं! अक्क महादेवी ने पूरे जीवन फिर वस्त्र धारण नहीं किए और कल्याण जिले पहुँचीं! वहां पर अपने आध्यात्मिक ज्ञान से सम्पूर्ण संत मण्डली को प्रभावित किया और महादेवी फिर अक्क महादेवी हो गईं! अक्क महादेवी ने अपने चेन्नमल्लिकार्जुन को पाने के लिए हर संभव प्रयास किए, ज्ञान प्राप्त किया और अंतत: श्री शैल में कदली नामक स्थान पर एकाग्रचित्त होकर तप के प्रभाव से अपने चेन्नमल्लिकार्जुन के साथ लिंगैक्य को प्राप्त हुईं!

इस देश में उस स्त्री को भी उतना ही सम्मान प्राप्त है जिसने आजीवन वस्त्र धारण नहीं किये! जो लोग देह और आध्यात्म को नहीं समझते वह इसे गंवार कहेंगे, और इस देश की उस शक्ति को बार बार नकारेंगे जिसमें एक स्त्री इतनी स्वतंत्र थी कि वह अपना पति त्याग कर निर्वस्त्र रहकर सम्मान पा सके!

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