भारत मां क्यो है, पिता क्यों नहीं ?
उन दिनो दिमाग को किताबों में घूसेड़ कर उसे बुरी तरह से थका देने के बाद थोड़ा चैन लेने शराब में डूब जाता था..फटे तक पीता था, कोनवालोय के अंदाज में। दारू कब और कैसे मुंह से लगी थी मुझे खुद याद नहीं...शायद सरस्वती पुजा के दिन। मुहल्ले भर के आवारा लौंडे सरस्वती पुजा बड़ी धुमधाम से करते थे, एक महीना पहले से ही घूम-घूम कर चंदा काटा जाता था और उसी चंदे के पैसे से पूजा के साथ-साथ दारू चलता था। हां मां सरस्वती के प्रति गहरी आस्था में कोई कमी नहीं होती थी, लेकिन यह भी सच है कि दारू उन्हीं दिनों मुंह लगा था.
बाद के दिनों में शराब के नशे में डाक बंगला चौराहे की एक दुकान पर हिटलर का मीन कैंफ हाथ लगा और एक बार जब उसको पढ़ना शुरु किया तो शराब का नशा भी उसके सामने फीका लगने लगा...बस पढ़ता ही गया...पूरी किताब खत्म करने के बाद ही अगल-बगल की दुनिया दिखाई दी...और इसका हैंगओवर लंबे समय तक बना रहा...शायद यहां जो कुछ भी मैं लिख रहा हूं, वह मीन कैंफ के हैंगओवर का ही असर है। हिटलर की आत्मकथा को दुनिया का मैं सर्वश्रेष्ट आत्मकथा मानता हूं...उस आत्मकथा में एक स्पष्ट उद्देश्य दिखाई देता है, और इसी में किसी भी आत्मकथा की सार्थकता है। हिटलर की आत्मकथा एक आंदोलन की रूपरेखा को व्यवहारिक स्तर पर बहुत ही मजबूती से रखता है, उस आंदोलन के उद्देश्य को लेकर चाहे जो बहस हो, लेकिन उसका मैकेनिज्म जमीन पकड़े हुये है।
हिटलर की आत्मकथा को पढ़ने के बाद कई तरह के सवाल दिमाग में कौंधते रहे, जैसे भारत को मां क्यो कहा जाता है, पिता क्यों नहीं ? हिटलर पितृ भूमि की बात करता है, और हमलोग मातृभूमि की। बचपन में पढ़ाया गया था कि भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा...मेरी समझ में यह नहीं आता था कि फिर भारत माता कैसे हो गई। मैं भारत को पितृ भूमि के रूप में देखने लगा था...मीन कैंफ को पढ़ने के बाद अपने देश और जमीन की प्रति मेरा परसेप्शन चेंज हो गया था...
कभी-कभी खोपड़ी में कोई उलटी बात बैठ जाती है, जिसका कोई मायने मतलब नहीं होता, लेकिन वह लंबे समय तक आपके हावभाव और सोचने की दिशा को घुमाता रहता है...खोपड़ी यदि चारो दिशा में नहीं घूमे तो वह खोपड़ी ही क्या ? वाइमर गणतंत्र पर हिटलर की प्रतिक्रिया पढ़कर भारत का गणतंत्रीय ढांचा मेरी आंखों के सामने घूमने लगा.. वाइमर गणतंत्र दुनिया का सबसे मजबूत गणतंत्र, जिसका हिटलर ने कबाड़ा निकाल दिया...यानि हिटलर उस गणतंत्र से भी मजबूत था।
खैर मामला चाहे जो मीन कैंफ के पढ़ने के बाद हिटलर मेरे दिमाग में घुस गया था...और हिटलर को लेकर जीवन में बड़े-बड़े पंगे होते रहे...जर्मनी में मीन कैंफ पर आज भी प्रतिबंध है, जबकि हिटलर के समय इस किताब को बाइबिल की तरह बांटा जाता था..हर घर में मीन कैंफ रखना जरूरी था...बहरहाल समय के साथ हिटलर तो दिमाग से उतर गया, लेकिन वो पल जो मैंने हिटलर के साथ बीताये हैं मेरी जीवन के अदुभुत पल हैं....वोदका के नशे में चुर होकर आज भी उन पलों को जीने के लिये जी ललचाता है...जो बीत गई वो बात गई माना वह बेहद प्यारा था....भारत पितृभूमि को संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता कब मिलेगा...?मिलेगा भी या नहीं...? भूख और गरीबी तो यहां की नीयती बन चुकी है...है कोई पोलिटिकल पार्टी जो यह दावा करे कि उसके सत्ता में आते ही भारत सुरक्षा परिषद के स्थायी सीट पर नजर आएगा....? यदि नहीं तो...किसे वोट दूं....??और क्यों दू...???वैसे एक मेरे वोट न डालने से कुछ भी उखड़ने वाला नहीं है....दुनिया अपनी गति से आगे बढ़ती रहेगी....और साथ में डेमोक्रेसी भी...डेमोक्रेसी एक धंधा है...और राष्ट्रवाद एक जलती हुई चीज है...
गड़गच्च के दारू पीने का मन कर रहा है...कोई है जो मेरे साथ बैठे...मैं चाहता हूं कि इन चीजों को अपने दिमाग से झटक कर के फेंक दूं...वोदका थोड़ी देर के लिए राहत देती है...लेकिन कुछ और चाहिये...जो मेरे दिमाग को पूरी तरह से अपने वश में कर ले...और मैं बुरी तरह से उसमें डुबता चला जाऊ...कोई गहरी अर्थ वाली चीज हो....वह कुछ भी हो सकता है...कुछ भी...हिटलर की गर्लफ्रेंड का नाम एमा ब्राउन था...हिटलर अपनी एमा थोड़ी देर के लिये मुझे देदे....तेरे साथ मरी थी...मरने के बाद क्या होता है...??बेहतर मौत कौन सी है...???एमा मेरे साथ वोदका का दो घूंट लगा और बता...हिटलर के साथ मर करके तुम्हे क्या मिला....??तुम अजीब महिला थी...??हिटलर के जीवन में तुम मीन कैंफ के बाद आई थी...हिटलर तू अपने समय का हिटलर होगा...अब तो तुझे कुत्ते भी गालियां देते हैं...अब तू थोड़ा साइड बैठ और मुझे एमा से बात करने दे...तो एमा तू क्या कह रही थी...वोदका इज योर प्वाइजन टू...ड्रींक...डार्लिंग, ड्रींक एंड लेट मी ड्रींक योर ब्राउनी आइज...वोदका से ज्यादा नशा है तेरी इन ब्राउनी आंखों में....आई थिंक यू वोंट माइंड इट...ओह माई गाड अकेले बैठे-बैठे छह पैग गटक चुका हूं...
.एमा मरी थी या उसे हिटलर ने गोली मारी इसपे भी लोगो ने कई पन्ने काले किये है ....हमने कोई आत्मकथा ससुरी पी के नहीं बांची इसलिए इतने धाँसू सवाल दिमाग में नहीं घुसे ...अलबत्ता नाथूराम की किताब "मैंने गांधी को क्यों मारा "पढ़कर जरूर नींद देर से आयी थी....
ReplyDeleteवोदका की चोइस अगर चेंज हो तो .????
इस रैंडमियाने में आपका तो असल सवाल ही ग़ुम हो गया कि भारत माता क्यों, पिता क्यों नहीं? वैसे इसका सरल सा किताबी टाइप जवाब देना हो तो कहा जा सकता है कि हमारी संस्कृति मातृप्रधान है, इसलिए मदरलैण्ड की बात करते हैं और उनकी पितृप्रधान तो वे पितृभूमि की बात करते हैं. पर अगर ऐसा है तो क्यों है? आख़िर हम अपने को मातृप्रधान कैसे कह सकते हैं? स्त्री की जितनी दुर्गति यहां है, क्या बाक़ी देशों में भी है? कम से कम यहां की तुलना में पश्चिम की स्त्री अधिक स्वतंत्र तो है ही. फिर भी वे पितृभूमि की बात करते हैं! यह मुद्दा गहराई से सोचने का है और दारू को दरकिनार करके. हो सके तो भांग ट्राई करें.
ReplyDeleteDoctor! Vodaka ki choice agar change ho to koi Farak nahi parata hai...vaise Vodaka Vodaka hai...Nizion ko Lal sena ne Vodaka pi pi ke hi Russia se khader diya tha...Gopan nath Godse ki pustak Gandi Vadh kayon maine bhi pari thi...abhi bhi kai swal mere dimag me dhanse huye hai...Us kitab ko parkar yahi lagata hai ki Nathuram ne Gandi ko bahut hi sonc vichar ke bad mara tha....usake tamam logic ko andehi main bhi nahi kar saka tha...Doctor kisi din Vodaka per sath sath baithe..kanhe to main lekar aa jau....Russia se manga lunga, orignal mal...maja aayega....Gatakane ke bad aapako bhi bahkane ki puri chut hogi....main to bahkunga hi....Doctor mujhe aapame vo pita aur putra wala Doctor dikhai deta hai...aapaka main sabase bara silent fan hun....aur ye silent fan log bahut hi khatarnak hote hai...yeh mere dhamaki nahi hai love karane ka andaj hai...vo kaya hai ki mera emotional development hi lagata hai galat tarike se huya hai...I love you and your writing.
ReplyDeleteIstdev ji....Bhang se dimag susat ho jata hai...ek week tak bhakuya rahata hun...ganja chalega....? yadi apani culture ki bat kare to voh maulik rup se gotra per adharit hai aur gotra ka sambandh Pita se hai...isliye Pitrabhumi ki avdharana hi jamati hai...grammer me jamin ko istiling man liya gaya hai..yahi karan hai ki hamara desh istriling hai...abaki bar is bisay ko pakarane ke liye ganga try karunga...
हिटलर भाई ने उसका देश को बाप काइकू बोला होएंगा अपुन को मालूम नयी .लेकिन अपुन लोग का मुल्क में अपुनलुग ठीकिच motherland बोलता है .वो इस वास्ते कैकी अपुन लूग का पुरुष प्रधान देश में सारा मर्यादा-इज्जत का डेफिनिशन लेडीज लूग को केंद्र में रखकर बनेला है.तू लेडीज लूग पे कूच्भिच अत्याचार हो रेला होता ना तो अपुन लूग का खून खौलने लगता है .
ReplyDeleteवैसे भी इंडिया का सिक्यूरिटी लक्ष्मी बाई लूग से ज्यादा भगत सिंह लूग संभालता है इसिलियेइच oedipus काम्प्लेक्स को भेजे में रक् से देश को लेडीज बनाएला है.ये जेंडर ज्यादा motivating है
अब motherland में रहते हुए भगत सिंह लूग कु माँ से ज्यादा बीबी बच्चे और पैसा दिकरेले हैं तू father land में क्या हुआ होता.?
भाई एनॉनिमस जी आपका तर्क़ तो ज़ोरदार है. लेकिन ओडिपस कॉम्प्लेक्स वाला मसला आप अंसोहाते में उठा लाए. इसकी इस बहस में कोई प्रासंगिकता नहीं है, क्योंकि वह सिर्फ़ दुर्घटना है इतिहास की. इस दुर्घटना के लिए न तो बेचारा ओडिपस ज़िम्मेदार है और न उसकी मां ही.
ReplyDeleteऔर आलोक भाई सारे गोत्र ऋषियों पर ही आधारित नहीं हैं. कई गोत्रों के मूल में बतौर प्रवर्तक स्त्रियां हैं. गोत्र परम्परा तो अपने आपमें एक बड़ा ही दिलचस्प विषय है. अगर इसे क़ायदे से खोलकर रख दिया जाए तो जाति परंपरा की ऐसी-तैसी हो जाएगी. अब के तमाम पंडितजी लोगों के पूर्वज क्षत्रिय रहे हैं और बहुतेरे बाबू साहब लोग तराजू इस्तेमाल करते रहे हैं. कई लोग तराजू जोहते-जोहते अपने कर्म के दम पर पोथी-पत्रा बांचने लगे और कई लोग तलवार छोड़ के तराजू या पोथी उठा लिए. अब अगर ऐसा होने लगे तो ज़रा सोचिए जाति आधारित राजनीति का क्या होगा?
अलोक बाबु अलोक बाबु ,न तो फासीवाद और न ही गांधीवाद पूरी तरह से गलत है और न ही पूरी तरह से सही ,दृष्टिकोण के अनुसार दोनों के अच्छे और बुरे पक्ष विद्यमान हैं .पर किसी भी वाद के अतिवाद की जकड़ घातक है .किसी भी अतिवाद के निरंकुशता और एकाधिकार को संतुलित करने के लिए कोई न कोई दूसरा वाद उपस्थित हो ही जाता है .किसी भी वाद की उपयुक्तता और उसका चुनाव समय और स्थिति तय करता है.
ReplyDeleteमाना की गाँधी जी अत्यधिक पुचकार और महान बनने की महत्वाकांचा के शिकार थे .पर उनका भी आज़ादी में योगदान रहा है .कई बार निहत्थी और लतखोर बड़ी भीड़ देखकर बंदूकों का मनोबल टूट जाता है ,गोलियाँ कम पड़ जाती हैं ,बैरेल थक जाते हैं .और गाँधी जी की बड़ी ताकत ये उनकी भीड़ जुटाने की क्षमता ही थी.गाँधी जी का यदि कोई "एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा आगे कर देना चाहिए " वाला जुमला उस समय के लिए प्रासंगिक था .वे निहत्थे लतखोरों की जमात जुटाने में सक्षम थे . अंग्रेजों की लाठियां कम पड़ जाती थीं या वे चाबुक चलाते चलाते ऐसे थक जाते थे की न उन्हें रोते बनता था न हँसते.
गाँधी जी के कहने का ये मतलब तो कदापि न होगा की एक फुफ्फुस में तपेदिक हो ले तो दुसरे में भी करवा लो ,इलाज़ न कराओ क्योंकि जीवाणुओं पर हिंसा होगी .एक जोंक खून चूसे तो चार और साट लो .
पर आज के दौर में गाँधी जी का थप्पड़ वाला फार्मूला नहीं चल सकता. ये दवा आतंकवादियों जैसे धुले हुए conscience वाले जानवरों पर बेअसर है .आज यदि आप एक गाल पर थप्पड़ मारने वाले के आगे दूसरा गाल पेश करें तो वो आपको दुसरे गाल पर कभी नहीं मारता बल्कि सीधे पेट में दनादन गोलियाँ उतार देता है .
हमेशा तो नहीं पर कई बार हिंसक विधि आपको जीत दिलाने में अक्षम होती है . कई बार बलपूर्वक थोपने से सामने वाले का विद्रोही और प्रतिशोधी हठी -मन जागृत हो जाता है.कई बार विचारों के गोरी ल्ला युद्ध में जीतने के लिए अपने विचारों की घुसपैठ किसी के मन में पिछले दरवाज़े से करवानी पड़ती है.
इष्ट जी oedipus से अच्छी कोई उपमा हो तो मेरी बत्ती जलाएं .
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteक्या कल्पना है? ये पैग तो बडी उंची चीज निकले।
ReplyDelete----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
भाई एनॉनिमस द्वितीय जी
ReplyDeleteआपकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, वह कम है. मातृ-पितृ भूमि की इस बहस में आप गान्धी जी को भी लिए ही आए. इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत की स्वतंत्रता में गान्धी जी की भूमिका बहुतै महत्वपूर्ण है. इतनी कि कही नहीं जा सकती. अंग्रेज भी उनका गुण गाते नहीं थकते होंगे, अपनी अंतरंग बैठकों में. उनके लिए इतना माहौल गान्धी जी ने ही बनाया कि वे जो चाहे सो ले के गए. आज़ादी उन्होने अपनी मर्ज़ी से जब चाहा तब दी हिन्दुस्तानियों को. और कहने के लिए हम आज़ाद तो कर दिए गए, पर उनका प्रशस्तिगान अभी तक गा रहे हैं और वह भी राष्ट्र गान के रूप में. इस महत्वपूर्ण योगदान के लिए हम उनके शुक्रगुज़ार हैं, तहेदिल से और किसी अतिवादी नज़रिये के तहत नहीं. वैसे भी सन 1857 से चल रही लड़ाई 1900 में पूरी हाइज़ैक कर लेना कोई मामूली बात नहीं है.
इतना गटक लेने की बाद भी विषय, शब्दों और कीबोर्ड पर पकड़ बड़ी मज़बूत है. आखिर सरस्वती पूजा के दिन से शुरू किया था. शुभ दिन का फायदा दिखाई दे रहा है मित्र....:-)
ReplyDeleteसिक्वल का इंतजार रहेगा. उत्सुकता है कि एमा ने ड्रिंक का क्या किया? आपने ब्राऊनी आईज से ड्रिंक करके क्या किया?
बाकी, भारतमाता क्यों कहते हैं, याह जानने के लिए टिप्पणियां पढने वापस आऊंगा.
मेरी गाँधी जी वाली टिपण्णी अलोक जी के पिछली पोस्ट के लिए थी ..anonymous1=2=3
ReplyDeleteमैंने ये नहीं कहा कि सिर्फ उन्ही को श्रेय जाता है अरे कुछो ना त गिलहरी योगदान त देलही होइहन .यदि लोग उनका महिमामंडन कर औरों को भूल जाते हैं तो ये गलत बात है . ये भी बात सही हो सकती है कि अंग्रेजों की भारत में रुचि कम हो गयी हो क्योंकि भारत में साउथ अफ्रीका जैसी हीरे और सोने कि खदान तो नहीं है न
एनॉनिमस भाई
ReplyDelete(ओडिपस कॉम्प्लेक्स के सन्दर्भ में)
दरसल ओडिपस कॉम्प्लेक्स की उपमा यहां सही नहीं है और कोई ज़रूरी थोड़े है कि हर जगह उपमा दी ही जाए. जहां उपयुक्त उपमा न हो, वहां उपमा के बग़ैर भी तो अपनी बात कही जा सकती है!
आप्की बात तो इसके बग़ैर भी पूरी समझ में आ रही है.
जैसे इंग्लिश लोग महारानी को सब
ReplyDeleteसे उपर मानते हैं वैसे अपुन
भारतीय भी जय माता करते हैं ..
शायद अंग्रेजी मानसिकता गयी नहीं है
नहीं
शायद मई ठीक हूँ ??????????