ज़रा सुनिए पाटिल महाराज

दिल्ली में ताबड़तोड़ हुए धमाको  और उनमें कई लोगों की जान जाने के बाद दूसरे दिन जितनी भी बैठके हुईं, सबमें केन्द्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल अलग-अलग परिधानों में दिखाई दे रहे थे. मीडिया ने इस बात की जबर्दस्त आलोचना की. यह अपेक्षा न करें कि मैं यह कहूंगा कि आलोचना नहीं की जानी चाहिए. कायदे से तो इस बात की कड़ी भर्त्सना की जानी चाहिए. मीडिया ने नहीं की, इसके लिए वह आलोचना की पात्र है.

पर अब इस बात पर पाटिल की सफाई आई है. पाटिल ने कहा है के मैं साफ-सुथरा रहता हूं. आप राजनेता की नीतियों की आलोचना करें, उसके कपड़ों की नहीं। मैं पाटिल को बताना चाहता हूं कि मान्यवर यह आपकी नीतियों की ही निंदा है, कपड़ों की नहीं एक ऐसे समय में जब पूरा देश जल रहा हो और तब आपका ध्यान अगर बार-बार कपड़े बदलने पर लगा हो तो जाहिर है कि देश और जनता से आपका कोई मतलब नहीं है. दुलहन के जोड़े में सजी बैठी लड़की के पड़ोस में भी अगर आग लग जाए तो अपने शृंगार और कपड़ों की परवाह छोड़कर उसे बुझाने की कोशिश में जुटेगी. ऐसी स्थिति में दिन में एक बार भी कपड़े बदल लेना काफी है. और एक ऐसे राजनेता के लिए, जो पूरे देश की सुरक्षा और व्यवस्था के लिए ज़िम्मेदार हो, तो कपड़े पहन लेना ही बहुत है. आपको शायद यह मालूम नहीं है कि देश का गृहमंत्री होने के नाते पूरा देश आपका पड़ोस भी नहीं घर है.

मुझे आप जैसे संवेदनहीन राजनेता से कोई सहानुभूति नहीं रह गई है. लिहाजा मैं यह बेमतलब का औपचारिक वाक्य लिखने की कोई ज़रूरत नहीं समझता कि ईश्वर न करे. सीधा सवाल कर रहा हूं, कि अगर आपके उस घर में आग लगी हो जिसमें आपके अपने बेटे-बहू पोते-पोती रहते हैं, तो क्या आप तीन बार कपड़े बदलने जाएंगे. कपडोँ का कुछ होश भी आपको रहेगा क्या? असल में आपका यह कहना आपकी इस सोच को उजागर करता है कि जो लोग दिन में दस बार कपड़े नहीं बदलते वे गंदे होते हैं.

वाह! हम एक ऐसे आदमी को केन्द्रीय गृह मंत्री के रूप में पिछले क़रीब पांच सालों से झेल रहे हैं, जो शायद उन्हें गंदे लोग या कीड़े-मकोड़े मानता है जो दिन में तीन बार कपड़े नहीं बदल सकते हैं. इनमें चार साल तो हमने उसे अपने संसदीय राजनीति के प्रति आस्थावान वामपंथी भाइयों के सहयोग से झेला है.

पाटिल महाराज से मैं जानना चाहता हूं कि प्रभु एक अरब की आबादी वाले इस देश में ऐसे कितने लोग हैं जो तीन दिन में एक बार भी कपड़े बदल पाने की हैसियत रखते हैं? उनके बारे में जरा आप साफ-साफ बताइए, क्या खयाल रखते हैं? बहरहाल, हम आपकी नीतियों की ही बात करना चाहते हैं. आपकी नीतियां कैसी हैं, यह भी हम अपनी नही, आपकी ही समझ से तय करेंगे। आपकी समझ क्या है, इसे आप स्वयं तय करें.

कहां अफजल गुरू और कहां सरबजीत! एक दोषसिद्ध अपराधी, आपके ही सुप्रीम कोर्ट से और एक भूला-भटका आदमी. एक की भलमनसाहत यह कि उसने संसद   हमले की साजिश रची और दूसरे का अपराध सिर्फ इतना कि वह भटक कर सीमा पार कर गया. आज तक पाकिस्तान की अदालतों में भी उस पर कोई दोष कायदे से सिद्ध नहीं हो सका. आप दोनों को एक ही पलड़े पर तौल रहे हैं. वैसे तो कानून के विद्यार्थी रहे हैं. ·कुछ दिनों तक आपने वकालत भी की है. क्या अपने सुप्रीम कोर्ट पर आपका विश्वास नहीं है, या फिर संविधान पर ही....? या कहीं ऐसा तो नहीं कि आपके गृहमंत्री बने रहने की यही शर्त हो.

इस पद के लिए आपकी काबिलीयत जो है वह तो जाहिर हो चुकी है. चुनाव जीतकर आप लोकसभा में तो आए नहीं हैं. बैकडोर से केंद्रीय मंत्री बनाए गए हैं. वह भी प्रधानमंत्री के बाद देश का सबसे महत्वपूर्ण पद. एक ऐसा पद जिसे कभी सरदार वल्लभ भाई पटेल सुशोभित कर चके हैं, अब

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उस पर आप जाने क्या-क्या कर रहे हैं. यह तो आप जानते ही हैं कि अफजल गुरू ·को फांसी दी जाए या छोड़ा जाए, इसका फैसला राष्टपति को आपके ही मंत्रालय के सुझाव पर करना है. आपका मंत्रालय क्या कर रहा है, यह बात सरबजीत के साथ उसके मिलान से जाहिर हो चुकी है.

आपने सवाल किया है कि आप क्या मुझसे यह उम्मीद करते हैं कि मैं अपने खिलाफ ऐसी आलोचनाओं का जवाब दूंगा. आपने यह फैसला लोगों पर छोड़ दिया है कि वे यह फैसला करें कि किसी राजनेता की आलोचना का यह तरीक़ा सही है या नहीं. और जनाब! मैं भी इस देश के लोगों में से एक हूं. मैं यह फैसला आप पर छोड़ रहा हूं कि आप खुद ही यह तय करें कि आपके गृहमंत्री पद की गरिमा की तो बात ही छोड़ दी जाए, सामान्य नागरिक धर्म के निर्वाह का भी यह तरीक़ा सही है या नहीं?

इष्ट देव सांकृत्यायन

Comments

  1. इतना सुना दिया है
    अगर मंत्री जी अपने
    कानों की चिकित्‍सा
    करवाने चले गए तो
    क्‍या कर लोगे ?

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  2. इष्टदेव जी, आशा है सानंद होंगे।
    मैं आपका ध्यान इस ओर िदलाना चाहूंगा िक िशवराज पािटल ने धमाकों के दूसरे िदन नहीं, धमाकों के ही िदन तीन बार कपड़े बदले थे।
    उदाहरण सुंदर है- दुलहन के जोड़े में सजी बैठी लड़की के पड़ोस में भी अगर आग लग जाए तो अपने शृंगार और कपड़ों की परवाह छोड़कर उसे बुझाने की कोशिश में जुटेगी.
    इसी िवषय पर मैंने भी एक पोस्ट अपने ब्लाग पर डाली है. िलंक है- http://gustakhimaaph.blogspot.com/2008/09/blog-post_15.html#links
    आशा है मार्गदर्शन करेंगे।

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  3. पाटील जी की श्रवण शक्ति ठीक होती तो बात ही क्या थी?!

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  4. jab Rome Jal raha tha to Nero bansuri baja raha tha, jab Delhi jal rahi thi to Patil kapare badal raha tha !!!
    alok nandan

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  5. are bhai ji ek bat to main bhul hi gaya....kapara badalane ke liye kapara utarana jaruri hai....Patil ji tin bar nange huye, ho ! ho! ho !

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  6. वैसे सच तो ये है आलोक जी की वह बिना कपडे उतारे भी नंगे ही हैं.

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  7. कपडे बदले इस लिये की सभी कपडो पर हजारो दाग हे, आप लोगो ने गोर नही किया शायद पटिल गुन गुना भी रहे होगे लागा चुनरी मे दाग छुपाऊ केसे....
    यह हे हमारे देश के गृह मंत्री शिवराज पाटिल जो अगले साल भिखारियो कि तरह से फ़िर इस जनता के सामने गिड गिडाये गे, जिसे आज यह भुखा नंगा कह रहे हे, ओर उन्ही का हक मार कर नये नये कपडे बदल बदल कर आ रहे हे, जेसे इन की ...........

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  8. सत्य वचन राज साहब! सत्य वचन.

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  9. Bhai Istdev,
    Desh ke kai hisso ki khak chhante hue main is samaya Delli ki ek patrika The Sundey Indian me kam karta hoo aour noida me rah raha hoo. Visfot dekhte samay mile ek coment me Istdev ka nam dekh kar laga ki yah ohi ..dev hai jise mai dilli aane ke bad lagatar khoj raha hoo. Agar aap ohi gorakhpur vkle istdev ho to mujhe lagta hai ki itna batana kaphi hoga ki mai Sadashiv hoo.
    Mera mo. no. 9350897011 hai jo prayah ghar par rahta hai.
    E.mail- t.sadashiv@rediffmail.com
    tripathi.sadashiv@gmail.com

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