आजमगढ़ : इतिहास और संस्कृति - हरिशंकर राढ़ी आजमगढ़ रेलवे स्टेशन फोटो : हरिशंकर राढ़ी रामायणकालीन महामुनि अत्रि और सतीत्व की प्रतीक उनकी पत्नी अनुसूया के तीनों पुत्रों महर्षि दुर्वासा, दत्तात्रेय और महर्षि चन्द्र की कर्मभूमि का गौरव प्राप्त करने वाला क्षेत्र आजमगढ़ आज अपनी सांस्कृतिक विरासत और आधुनिकता के बीच संघर्ष करता दिख रहा है। आदिकवि महर्षि वाल्मीकि के तप से पावन तमसा के प्रवाह से पवित्र आजमगढ़ न जाने कितने पौराणिक, मिथकीय, प्रागैतिहासिक और ऐतिहासिक तथ्यों और सौन्दर्य को छिपाए अपने अतीत का अवलोकन करता प्रतीत हो रहा है। आजमगढ़ को अपनी आज की स्थिति पर गहरा क्षोभ और दुख जरूर हो रहा होगा कि जिस गरिमा और सौष्ठव से उसकी पहचान थी, वह अतीत में कहीं खो गयी है और चंद धार्मिक उन्मादी और बर्बर उसकी पहचान बनते जा रहे हैं। आजमगढ़ ने तो कभी सोचा भी न होगा कि उसे महर्षि दुर्वासा, दत्तात्रेय, वाल्मीकि, महापंडित राहुल सांकृत्यायन, अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, शिक्षाविद अल्लामा शिबली नोमानी, कैफी आजमी और श्यामनारायण पांडेय के बजाय बटला हाउस, आतंकवाद, जातिवादी राज
बहुत बढिया!!
ReplyDeleteये तो इत्ती घणी धांसू है, कि आपकी सी ना लग रही।
ReplyDeleteजी हां; बिल्कुल सही। वह गाना भी है न - हर फिक्र को धुयें में उड़ाता चला गया। बस वैसा ही कुछ होना चाहिये जीवन में।
ReplyDeleteकुछ धांसू वांसू नाहीं बा भइया। हम्मे त इहे लगत बा। अब भउजाई से मिले के परी कि इनके कुछ समझावा। बड़ा एहर ओहर के बात लिखत हवें। अरे आपन नाहीं त दुसरे क त खयाल रखही के परी न। आदमी खाली अपने खातिर थोड़े न जियेला। ओकरे जिंदगी पर तमाम लोगन के हक होला। अगर अइसन नाहीं होत त जनता काहें बीमा करावे खातिर टूटति।
ReplyDeleteबाकी बाद में लिखब।
churng ji
ReplyDeleteekdam tohre jvn ke anuroop kavita baa
siddhartha chapra bihar