सात अजूबे हमने देखे
भाई नितिन बागला ने आज ही ताज वाले सवाल को लेकर अपने इन्द्रधनुष पर सात नए अजूबे गिनाए हैं। उनके सातों अजूबे मुझे सही लगे हैं. पर कुछ अजूबे मुझे भी सूझ रहे हैं. मैं उन्हें गिना रहा हूँ.
१. अपने को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बताने वाले देश में प्रधानमंत्री पद पर एक ऐसा व्यक्ति बैठा है जो कभी ग्राम प्रधान का चुनाव भी नहीं जीत सका.
२. राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी एक ऐसे व्यक्ति को बनाया जा चुका है और पूरी संभावना है कि वह राष्ट्रपति हो भी जाए, जिसके ईमान पर सवाल उठ चुके हैं.
३. गरीबी की जो रेखा निर्धारित की गई है उसके नीचे के एक भी व्यक्ति के लिए एक जून की रोटी का भी जुगाड़ मुश्किल है. उस पर तुर्रा यह कि उनके बच्चे हाई-फाई स्कूलों में पढेंगे.
४. भारत में हिंदी पढने वालों के लिए रोटी जुटानी मुश्किल है पर हम अमेरिका में जाकर हिंदी सम्मेलन कर रहे हैं.
५. हर कोई अच्छी फिल्मों, अच्छे साहित्य की कमी का रोना रोता है पर अच्छी चीजें बाजार में आते ही औंधे मुँह गिर जाती हैं।
६. फांसी की सजा पाए अपराधी को माफ़ किया जाए या नहीं, इस फैसले में भी वर्षों लग जाते हैं.
7. और साहब साहित्य से दुनिया बदलने का मुगालता है उनको जो नहीं जानते उन्हें पढा क्यों जाए.
बहरहाल साहब बात चूंकि ताज से चली थी लिहाजा फिर ताज पर आते हैं. इस मामले में भाई संजय बेंगानी ने सबको खुश कर दिया है. अपने तरकश पर जो दे उसका भी भला और जो न दे उसका भी भला वाले अंदाज में. बकौल संजय के किसी को भी परेशान होने या अपराध बोध से ग्रस्त होने की कोई जरूरत नहीं है. अरे जिस देश में अपराधी घोषित होने तक पर राजनेता अपराध बोध से ग्रस्त न होते हों वहाँ भला ताज को वोट देने या न देने को लेकर अगर कोई अपराध बोध से ग्रस्त हो तो यह भी तो एक अजूबा ही होगा न. हमारा दुर्भाग्य है कि हम नहीं पढ़ सके वर्ना रवि रतलामी जीं ने तो अपने तरकश से निकाल कर तीर काफी पहले ही चला दिए थे. बहरहाल आप जिस किसी भी कोटी में शामिल हों चिन्ता करने जरूरत बिल्कुल नहीं है. क्योंकि ताज सात अजूबों में शामिल हो या ना हो हमारे देश में सचमुच के अजूबों की वैसे भी कोई कमी नहीं है. आप बताइए, आप की नजर में भी तो कुछ अजूबे होंगे. क्यों नहीं गिनवाते उनको?
इष्ट देव सांकृत्यायन
१. अपने को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बताने वाले देश में प्रधानमंत्री पद पर एक ऐसा व्यक्ति बैठा है जो कभी ग्राम प्रधान का चुनाव भी नहीं जीत सका.
२. राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी एक ऐसे व्यक्ति को बनाया जा चुका है और पूरी संभावना है कि वह राष्ट्रपति हो भी जाए, जिसके ईमान पर सवाल उठ चुके हैं.
३. गरीबी की जो रेखा निर्धारित की गई है उसके नीचे के एक भी व्यक्ति के लिए एक जून की रोटी का भी जुगाड़ मुश्किल है. उस पर तुर्रा यह कि उनके बच्चे हाई-फाई स्कूलों में पढेंगे.
४. भारत में हिंदी पढने वालों के लिए रोटी जुटानी मुश्किल है पर हम अमेरिका में जाकर हिंदी सम्मेलन कर रहे हैं.
५. हर कोई अच्छी फिल्मों, अच्छे साहित्य की कमी का रोना रोता है पर अच्छी चीजें बाजार में आते ही औंधे मुँह गिर जाती हैं।
६. फांसी की सजा पाए अपराधी को माफ़ किया जाए या नहीं, इस फैसले में भी वर्षों लग जाते हैं.
7. और साहब साहित्य से दुनिया बदलने का मुगालता है उनको जो नहीं जानते उन्हें पढा क्यों जाए.
बहरहाल साहब बात चूंकि ताज से चली थी लिहाजा फिर ताज पर आते हैं. इस मामले में भाई संजय बेंगानी ने सबको खुश कर दिया है. अपने तरकश पर जो दे उसका भी भला और जो न दे उसका भी भला वाले अंदाज में. बकौल संजय के किसी को भी परेशान होने या अपराध बोध से ग्रस्त होने की कोई जरूरत नहीं है. अरे जिस देश में अपराधी घोषित होने तक पर राजनेता अपराध बोध से ग्रस्त न होते हों वहाँ भला ताज को वोट देने या न देने को लेकर अगर कोई अपराध बोध से ग्रस्त हो तो यह भी तो एक अजूबा ही होगा न. हमारा दुर्भाग्य है कि हम नहीं पढ़ सके वर्ना रवि रतलामी जीं ने तो अपने तरकश से निकाल कर तीर काफी पहले ही चला दिए थे. बहरहाल आप जिस किसी भी कोटी में शामिल हों चिन्ता करने जरूरत बिल्कुल नहीं है. क्योंकि ताज सात अजूबों में शामिल हो या ना हो हमारे देश में सचमुच के अजूबों की वैसे भी कोई कमी नहीं है. आप बताइए, आप की नजर में भी तो कुछ अजूबे होंगे. क्यों नहीं गिनवाते उनको?
इष्ट देव सांकृत्यायन
सचमुच अजूबे हैं
ReplyDeleteआपके अजूबे मेरे अजूबों से अजीब कैसे? :)
ReplyDeleteसही लिखा है
चलिये छोड़ीये अभी यह सब. बजार ने अपनी ताकत दिखा दी है. ताज पहले नम्बर पर रहा. अब इसके दोहन करने में भारत कितना सफल रहता है यह देखना है.
ReplyDeleteक्या उसे ज्यादा पर्यटक नहीं मिलेंगे? जरूर मिलेंगे. तो कमाओ ना.
एक अजूबा हमने देखा
ReplyDeleteनदिया लागी आग
यही अजूबा सबने देखा
इष्टदेव के पास
एक तो टिप्पड़ियां आती नहीं है, ऊपर से यह अप्रूवल वाला झंझट.
ReplyDeleteहे इष्टदेव, रहम करो