परत-दर-परत
परत दर परत
छिपा आदमी-
परत डर परत
खुल रहा है कहीं.
प्याज की झिल्लियों से
सृष्टी के राज-
खुल रहे हैं अभी.
अलग हो-हो कर
कहीं ना कहीं -
मिल रहे हैं सभी.
आसमानों
हवाओं में
बादल -
परत दर परत
घुल रहा है कहीं.
अजब खेल है
अँधेरा-उजाला
उजाला-अँधेरा.
मौत के साथ
क्यों
न जाने है
ज़िंदगी का बसेरा.
हजार परतों में
सूखा हुआ
मन-
परत दर परत
धुल
रहा है कहीं.
भाई अनामदास जी कृपया नोटियाएं. मैं ईमानदारी से अक्सेप्टिया रहा हूँ. लिहाजा कापीराईट का मुकदमा न ठोंकेंगे. वरना आगे से अक्सेप्टियाऊंगा ही नहीं. वैसे यह सच है कि यह गीत उनके ही एक चिठारस से प्रेरित है.
इष्ट देव सांकृत्यायन
छिपा आदमी-
परत डर परत
खुल रहा है कहीं.
प्याज की झिल्लियों से
सृष्टी के राज-
खुल रहे हैं अभी.
अलग हो-हो कर
कहीं ना कहीं -
मिल रहे हैं सभी.
आसमानों
हवाओं में
बादल -
परत दर परत
घुल रहा है कहीं.
अजब खेल है
अँधेरा-उजाला
उजाला-अँधेरा.
मौत के साथ
क्यों
न जाने है
ज़िंदगी का बसेरा.
हजार परतों में
सूखा हुआ
मन-
परत दर परत
धुल
रहा है कहीं.
भाई अनामदास जी कृपया नोटियाएं. मैं ईमानदारी से अक्सेप्टिया रहा हूँ. लिहाजा कापीराईट का मुकदमा न ठोंकेंगे. वरना आगे से अक्सेप्टियाऊंगा ही नहीं. वैसे यह सच है कि यह गीत उनके ही एक चिठारस से प्रेरित है.
इष्ट देव सांकृत्यायन
कॉपीराइट का मतलब होता है, कॉपी करने का राइट. आपने तो कॉपी नहीं किया इसलिए कोई केस नहीं बनता. अच्छा है.
ReplyDeleteपरतदार कविता।
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