आपदाओं के दुष्चक्र में फँस रहा अमेरिका-1
इष्ट देव सांकृत्यायन
॥श्रीगुरुचरणकमलेभ्यो नम:॥
गुरु के अतिचारी होने के साथ ही ज्योतिषी बड़े बदलावों
की घोषणा करने लगे थे। कोई विश्व व्यवस्था में बदलाव की बात कर रहा है तो कोई प्रलय
की। आज की दुनिया में अमेरिका की एक बड़ी हैसियत है। विश्व व्यवस्था में अगर कोई बदलाव
होता है तो अमेरिका केंद्रीय भूमिका में न हो, यह
हो ही नहीं सकता। यह अलग बात है कि आने वाले समय में वह हाशिये पर चला जाए,
पर आज उसकी उपेक्षा करके हम विश्व-व्यवस्था संबंधी किसी भी प्रक्रिया
को नहीं देख सकते। इसलिए जरूरी है कि एक बार मेदिनी ज्योतिष की दृष्टि से अमेरिका के
प्रारब्ध पर विचार किया जाए। ध्यान रहे, मेदिनी ज्योतिष समष्टि
चेतना के विश्लेषण की व्यवस्था है। इसके लिए व्यक्ति नहीं, समूह
महत्त्वपूर्ण होता है। वह समूह देश, राज्य, शहर, संगठन या गाँव के रूप में भी हो सकता है।
पिछले साल जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव चल रहे थे, तब मैंने एक लेख लिखा था। मैंने उसमें चार निष्कर्ष दिए थे –
- · नया राष्ट्रपति जो भी हो, वह अपने फैसले खुद नहीं ले सकेगा। बहुत हद तक संभावना है कि वह डीप स्टेट का आदमी हो।
- · उसे निरंतर दबाव में काम करना पड़ेगा और बीच में ही पद छोड़ना पड़ेगा। चाहे वह जिस किसी भी कारण से हो।
- · देश आर्थिक मंदी की ओर बढ़ेगा और इससे चारों तरफ असंतोष पनपेगा। दूसरे देशों से भी संबंध बिगड़ेंगे।
- · देश में महंगाई और बेकारी बढ़ेगी। फलतः सरकार के विरोध में जनता सड़कों पर उतर आएगी। धीरे-धीरे गृहयुद्ध जैसे हालात बनने लगेंगे।
इसके पहले 2024 के ही सितंबर में चंद्र ग्रहण और अक्टूबर में सूर्य ग्रहण पड़ा
था। तब भी मैंने कहा था कि अमेरिका में अब प्राकृतिक आपदाओं का दौर शुरू होगा।
जिसकी शुरुआत प्रशांत महासागर के तटवर्ती कैलिफोर्निया से होगी और आगे एक-एक करके
पूरा महाद्वीप इसका शिकार होगा।
भारत में लोग सोच रहे थे कि ट्रंप का राष्ट्रपति बनना भारत के हित में होगा।
इसलिए अधिकतर लोगों ने अर्थ यह निकाला कि कमला हैरिस राष्ट्रपति बन जाएंगी।
क्योंकि जो बाइडेन को लोग डीप स्टेट का आदमी मानते हैं। मेरे कुछ मित्रों ने
निष्कर्ष निकाला कि ट्रंप तो गया। लेकिन ट्रंप जीत गए तो उन्हें लगा कि ये तो आकलन
गलत हो गया। क्योंकि उन्हें ट्रंप डीप स्टेट के आदमी नहीं लगते थे। मुझे भी नहीं
लगते थे। अगर बतौर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पिछले कार्यकाल के आकलन के आधार पर
कहूँ तो मुझे ट्रंप बड़बोले और झक्की जरूर लगते थे, लेकिन कभी यह नहीं लगा
कि इस शख्स को कोई दूसरा चला सकता है। लेकिन, आज ट्रंप जिस तरह रोज
अपने फैसले और बयान दोनों बदल रहे हैं, क्या उसे देखते हुए आपको लगता है कि इसमें
ट्रंप खुद कुछ भी कर रहे हैं?
उसी बीच, चुनाव परिणाम आने से पहले ही, प्रतिष्ठित विद्वान
आचार्य रामेश्वर मिश्र पंकज जी ने एक लेख लिखा था। हालाँकि उस लेख का मेरे लेख से
कोई संबंध नहीं था। मैं यहाँ उसे केवल एक कारण से संदर्भित कर रहा हूँ। आदरणीय
पंकज जी ने उसमें लिखा था कि बाइडेन हों या ट्रंप दोनों डीप स्टेट के ही लोग हैं। बस
यह है कि दोनों के नियंता अलग-अलग हैं।
हमारे यहाँ डॉ. मनमोहन सिंह मूलतः राजनेता नहीं, नौकरशाह थे। वे आदेश का
पालन करना जानते थे और इसमें कोई हेठी नहीं समझते थे। राजनेता कोई भी हो, वह यह बात
सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने में अपनी बहुत बड़ी हेठी समझता है कि वह किसी अन्य के
आदेश का पालन कर रहा है। नौकरशाह मनमानी करे भी तो यह दिखाता नहीं है। राजनेता
शब्दश: किसी के आदेश पर चले तो भी कहता यही है कि सारे फैसले उसके अपने हैं। फिलहाल
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड जे. ट्रंप के साथ यही हो रहा है। हो तो जो बाइडेन के
साथ भी यही रहा था और शुरुआत में उनके साथ ऐसा होने का पता भी नहीं चल रहा था, लेकिन बाद में
सब पता चल गया। तभी तो डीप स्टेट का नाम लेते ही लोगों के मन में पहला ही नाम
बाइडेन की पार्टी की प्रत्याशी कमला हैरिस का नाम आया।
अमेरिका अभी राहु की महादशा से गुजर रहा है। यह महादशा 2015 से ही चल रही है
और आगे 2033 तक चलेगी। ध्यान रहे, गुरु के अतिचारी होने का अभी वाला पहला दौर भी 2033 तक
चलेगा। एक बात और ध्यान रखने की है, सितंबर में शुरू होने वाली भारत की मंगल की
महादशा भी 2033 में बीत जाएगी। अमेरिका की कई कुंडलियाँ प्रचलित हैं, लेकिन उनमें मुख्य
दो हैं। दोनों में तिथि वही है – 4 जुलाई 1776; लेकिन समय का अंतर है। एक में यह समय सायं
05:10 बजे माना गया है और दूसरे में सायं 06:30 बजे। अमेरिकी वैदिक ज्योतिर्विद
जेम्स केलेहर अत्यंत सूक्ष्म रेक्टिफिकेशन के बाद यह समय सायं 06:30 बजे निर्धारित
करते हैं। दोनों में लग्न बदल जाता है। 05:10 मानें तो वृश्चिक लग्न है और अगर
06:30 मानें तो धनु लग्न। अमेरिका अपने लक्ष्य में हमेशा स्पष्ट रहा है। उसके लिए ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति हमेशा
से सर्वोपरि रही है। अमेरिका फर्स्ट के साथ-साथ उसकी ‘ट्रेड फर्स्ट’ की नीति भी
सर्वविदित है। इतिहास पर गौर करें तो अमेरिका सीधे लड़ने की नहीं, लड़ाने की नीति
पर चलता है। दूसरों को लड़ाकर अपने हथियार बेचता है और इस तरह दुनिया का दादा बना
रहता है। यह सब वृश्चिक यानी मंगल की प्रवृत्ति नहीं है। ग्रहों की बाकी स्थितियाँ
और नवांश भी अमेरिका के धनु लग्न होने को सही ठहराते हैं।
राहु इसके आठवें भाव में बुध के साथ हैं। बुध राहु के मित्र हैं, लेकिन इस कुंडली
में सप्तमेश होने के कारण मारकेश हैं। मारक अगर शुभ ग्रह हो तो वह ज्यादा ही मारक
होता है। राहु जब किसी के साथ बैठे होते हैं तो उसके जैसा ही फल देते हैं। कहा
जाना चाहिए कि जिसके साथ बैठते हैं उसी के एंप्लीफायर जैसा काम करते हैं। अष्टम
भाव आकस्मिकता का भाव है और राहु आकस्मिकता के ग्रह। शुभ हो या अशुभ, जो भी आएगा, थोक के भाव से
आएगा और कैसे आ रहा है, यह कभी समझ नहीं आएगा। इसे समझना हो तो 2021 के ‘ब्लैक लाइव्ज
मैटर’ या अभी हाल के कैलिफोर्निया के दावानल को देखिए। कई-कई हेक्टेयर में बने
हॉलीवुड सेलब्रिटीज के अरबों डॉलर के घर जलकर खाक हो गए। फिर भी सिलसिला अभी थमा
नहीं है। प्रकृति का प्रकोप लगातार जारी है। आग के बाद बाढ़, बाढ़ के बाद
भूकंप, भूकंप के बाद भूस्खलन और अब जनांदोलन। प्राकृतिक प्रकोपों और जनांदोलनों का
दौर आगे भी थमता नहीं दिख रहा है।
आगे की स्थितियों को समझने के लिए जरूरी है कि हम पीछे की स्थितियों पर एक नजर
डाल लें। ध्यान रहे, आज के अमेरिका का जन्म ही राहु की महादशा में हुआ था। यद्यपि
यह दशा इसके जन्म के समय तक कुछ खास बीती नहीं थी। कुल 17 वर्ष 2 महीने और 20 दिन
की दशा शेष थी। इसके पहले यह बहुत बड़े उथल-पुथल के दौर से गुजर कर आया था और उसी
उथल-पुथल के परिणामस्वरूप एक राष्ट्र के रूप में उसका जन्म हो गया था। दुनिया में
इसकी कोई हैसियत नहीं थी। राहु की पूरी महादशा यानी 1793 तक का समय इसके लिए
अत्यंत संघर्ष का रहा। अमेरिका में रह रहे लोगों को बहुत बड़े पैमाने पर आव्रजन
करना पड़ा था। इस पूरी महादशा में यह भयावह ऋण और मुद्रास्फीति दोनों ही से परेशान
रहा। कहने के लिए कुछ राज्यों का एकीकरण तो कर लिया गया था, लेकिन इस एकीकरण
के भीतर बहुत सारे विवाद थे। आए दिन लोगों के बीच इसे लेकर संघर्ष होते थे। एक तरह
से यह दौर अत्यंत अस्थिरता का रहा। किसी भी तरह से स्थिरता के हालात बनते तक नहीं
दिख रहे थे।
पूरे 120 वर्ष बाद दुबारा यही महादशा सन 1895 में आई और 1913 तक चली। अमेरिका
के भीतर ही फिर से बहुत बड़े पैमाने पर लोगों का माइग्रेशन हुआ। एक से दूसरे राज्य
में लोगों का जाना और इस आवाजाही के चलते बेवजह के संघर्ष शुरू हुए। 1996 में वहाँ
राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुए। विलियम मैककिनले राष्ट्रपति चुने गए। इसके पहले
कि वे अपना कार्यकाल पूरा कर पाएँ, पोलैंड मूल के एक अमेरिकी अराजकतावादी लियॉन
ज़ोलगोज़ ने उन्हें न्यूयॉर्क में गोली मार दी और करीब एक हफ्ते तक चली चिकित्सा के
बाद भी मैककिनले को बचाया नहीं जा सका। अमेरिकी सरकार ने कई नई नीतियाँ जोड़ीं और
इसी दौर में उसने दूसरे देशों के साथ धमकी वाली राजनीति की शुरुआत भी की। हालाँकि
तब तक अमेरिका कोई खास शक्तिशाली नहीं हुआ था। लेकिन तकनीकी क्रांति का बीजारोपण
वहाँ हो चुका था। पीत पत्रकारिता की शुरुआत भी अमेरिका में इसी दौर में हुई। इसी
दौर में अमेरिका की आर्थिक मामलों में दुर्दशा शुरू हो गई थी। मंदी के चलते हालत
यह हो गई थी कि जेपी मॉर्गन को बॉण्ड जारी करना पड़ा था। मॉर्गन ने 60 मिलियन डॉलर
से अधिक का ऋण देकर अमेरिका के गोल्ड स्टैंडर्ड को बचाया था। उन्होंने कई निजी
कंपनियों में भी निवेश किया और न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार भी खरीद लिया। इस तरह एक
बैंकर के अथक प्रयास से किसी तरह अमेरिका दीवालिया होते-होते बच गया था। यह वही मॉर्गन
हैं जिनकी एक उक्ति प्रसिद्ध है – मिलियनेयर्स डोंट यूज ऐस्ट्रोलॉजी, बिलियनेयर्स डू।
इसके बावजूद 1907 में एक बार फिर अमेरिका बड़े आर्थिक संकट में फँस गया था।
[शेष कल]
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