पश्चिम पर भारी पड़ेंगे ग्रहण
श्री गुरुचरण कमलेभ्यो नमः
अश्विन कृष्णपक्ष की शुरुआत 18 सितंबर से होने वाली है। इससे पूर्व महालया श्राद्ध
यानी पूर्णिमा की श्राद्ध लोग भाद्रपद मास की पूर्णिमा को करते हैं। इसलिए इसे भी श्राद्ध
के दिनों में गिन लिया जाता है। इस तरह श्राद्ध वाले पक्ष की शुरुआत 17 सितंबर से हो
जाने वाली है और इसी दिन चंद्र ग्रहण है। हालाँकि यह ग्रहण भारत में दृष्ट नहीं होगा।
क्योंकि भारत में जब तक यह ग्रहण होगा, अगले दिन की सुबह हो जाएगी। इसलिए भारत पर इसका
बहुत अधिक और सीधा असर भी नहीं होगा। लेकिन, दुनिया में जो होगा उसका
भारत पर असर न हो, ऐसा भी नहीं हो सकता। इज्रायल और फिलस्तीन या रूस और यूक्रेन
में युद्ध होता है तो यहाँ शेयर बाजार प्रभावित हो जाता है। शेयर बाजार प्रभावित होता
है तो हम आप प्रभावित होते हैं और हमारे-आपके नाते हमसे-आपसे जुड़े हुए बाकी तत्त्व
भी प्रभावित होते ही हैं। इस तरह इससे हम सब भी प्रभावित होंगे, यह अलग बात है कि
मामूली तौर पर। इस पक्ष का अंत भी ग्रहण से ही होगा। आरंभ यानी 18 सितंबर को चंद्र
ग्रहण है तो अंत यानी में 2 अक्टूबर को सूर्य ग्रहण। यद्यपि ये दोनों ही ग्रहण भारत
में दृश्य नहीं हैं।
ग्रहण का अधिक प्रभाव उन्हीं देशों या क्षेत्रों पर होता है, जहाँ वह दृष्ट होता है। भारतीय समयानुसार चंद्र ग्रहण की शुरुआत 18 सितंबर को प्रातःकाल 6 बजकर 12 मिनट से होगी और यह ग्रहण दिन के 10 बजकर 17 मिनट तक चलेगा। यानी कुल 4 घंटे 5 मिनट इसकी अवधि होगी। भारत में चंद्रमा इस दिन प्रातः 6 बजकर 6 मिनट पर अस्त हो जाएंगे। अतः लगने से पहले ही यह ग्रहण भारत में अदृश्य हो जाएगा। यह उपछाया ग्रहण (Penumbral Lunar Eclipse) होगा। दिन में होने के नाते, भारत में यह कहीं भी दृष्ट नहीं होगा। यह ग्रहण यूरोप, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, प्रशांत, अटलांटिक, आर्कटिक, अंटार्कटिक, उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका के अलावा हिंद महासागर के भी कुछ भागों में दिखाई देगा। इस ग्रहण के कई चरण होंगे। लेकिन उन चरणों पर चर्चा का अर्थ तभी होता है जब ग्रहण के सूतक आदि को मानना हो। चूँकि भारत में यह ग्रहण दृष्ट ही नहीं है, इसलिए हमारे लिए इसका सूतक आदि मानने का कोई अर्थ नहीं है।
सूर्य ग्रहण 2 अक्टूबर को लगेगा। ग्रहण का आरंभ भारतीय समयानुसार रात के 9 बजकर
13 मिनट से होगा और अंत 3 बजकर 17 मिनट पर। इस तरह छह घंटे चार मिनट तक यह ग्रहण चलेगा, लेकिन उस समय रात
होगी। यानी सूर्य हमारे यहाँ उदित ही नहीं होंगे। बुध, केतु और सूर्य तीन ग्रह इस
समय कन्या राशि में होंगे। यह ग्रहण भी दक्षिण अमेरिका, उत्तरी अमेरिका के दक्षिणी
भागों, प्रशांत महासागर, एटलांटिक महासागर, न्यूजीलैंड, फिजी आदि में दिखाई देगा।
इसे कंकण सूर्य ग्रहण कहा गया है और इसकी कंकण आकृति केवल दक्षिणी चिली और दक्षिणी
अर्जेंटीना में दिखाई देगी।
संस्कृत में कंकण शब्द का प्रयोग कंगन के लिए किया जाता है। कंकण सूर्य ग्रहण एक तरह से वलयाकार सूर्यग्रहण होता है। जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य एक सीधी रेखा में आ जाते हैं तथा इसमें चंद्रमा पृथ्वी से काफी दूर होता है, तब यह सूर्यग्रहण बनता है। इस हालत में सूर्य को चंद्रमा पूरी तरह से ढक नहीं पाता है। वह आकाश में सूर्य से छोटा दिखाई देता है। इससे सूर्य का पूरा गोला ढकता नहीं है और चंद्रमा के चारों ओर एक वलय जैसा दिखाई देता है। इस स्थिति में पृथ्वी से सूर्य एक चमकते हुए कंगन जैसा दिखाई देता है। इसीलिए इसे वलयाकार सूर्यग्रहण (Annular Solar Eclipse) भी कहते हैं।
ध्यान रहे, अमेरिका के अधिकांश
भागों में ये दोनों ही ग्रहण दिखाई देंगे। कुछ भागों में देर तक दिखेंगे। इनमें से
चंद्र ग्रहण से पूर्व नक्षत्र पंचक भी लगने वाला है। नक्षत्र पंचक का अंत चंद्र ग्रहण
में ही होगा। मान्यता है कि नक्षत्र पंचक के दौरान जो कुछ भी होता है, वह पाँच गुना होता है। अब वह चाहे लाभ हो या हानि। इसीलिए परंपरा है कि पंचक
के दौरान अगर किसी की मृत्यु हो जाती है तो कुछ विशिष्ट क्रियाएँ करने के बाद ही उसे
अंतिम संस्कार के लिए ले जाते हैं, ताकि घर के बाकी सदस्यों पर
मृत्यु की छाया न मडराए। ये दोनों ग्रहण ऐसे समय पर होने हैं जब अमेरिका में राष्ट्रपति
चुनाव होने वाले हैं। चंद्र ग्रहण मुख्यतः राहु से प्रभावित होगा और सूर्य ग्रहण केतु
से। राहु की माया से मतदाताओं के मन का बचना असंभव है। सूर्य उस समय केतु के साथ होंगे,
जब ग्रहण लगेगा। अंततः यह उनके लिए आत्मिक रूप से पीड़ादायक होगा। चुनाव
परिणाम केवल आश्चर्यजनक नहीं, अविश्वसनीय होंगे और अमेरिकी नागरिक
अंततः स्वयं को ठगा हुआ महसूस करेंगे। इस चुनाव के साथ ही एक विश्वशक्ति के रूप में
अमेरिका के पतन का दौर शुरू होता हुआ लग रहा है। यह अलग बात है कि पतन के इस दौर के
शुरू होने का प्रभाव तुरंत किसी को दिखेगा नहीं। ऐसी महाशक्तियों के पराभव का तथ्य
सतह पर आने में बहुत समय लगता है।
अमेरिका की कुंडली सिंह लग्न की है और राहु व बुध इसमें
बारहवें भाव में बैठे हैं। चंद्रमा के घर में बैठकर यह जड़त्व दोष बनाते हैं। यही कारण
है जो मनोरोग अमेरिकी समाज में आम बात है। चंद्र ग्रहण मीन राशि में होने के नाते यह
अमेरिका के लग्न से अष्टम भाव में है। अष्टम भाव गोपनीय, रहस्यमय, अज्ञात और आकस्मिक घटनाओं का है।
इस भाव के संबंध में जो कुछ भी अनुमान लगाए जाते हैं, निरर्थक
सिद्ध होते हैं। यह भाव प्रकृति और मानव निर्मित दोनों ही स्थितियों का प्रतिनिधित्व
करता है। अब तक अमेरिका अपनी खुफिया एजेंसी के जरिये दुनिया भर के चुनावों को प्रभावित
करने की कोशिश करता रहा है। इस बार स्थितियाँ उलट होती दिख रही हैं। किसी दूसरे देश
की खुफिया एजेंसी इनके चुनावों को बुरी तरह प्रभावित करेगी और अंतिम समय तक समझ नहीं
आएगा कि हो क्या रहा है।
प्रकृति के स्तर पर बात करें तो उत्तर और दक्षिण दोनों
ही अमेरिका के समुद्रतटवर्ती क्षेत्र किसी बड़ी प्राकृतिक दुर्घटना के शिकार हो सकते
हैं। लग्न से दूसरा और आठवाँ दोनों भाव प्रभावित होने के नाते अमेरिका समुद्री तूफान
और भूकंप दोनों का शिकार हो सकता है। यह भी संभव है कि सुनामी जैसा कुछ हो। चुनाव के
दौरान प्रत्याशियों के बीच जो जुबानी जंग होगी, वह
भी त्रासद रूप ले सकती है। राहु बारहवें, दूसरे और चौथे तीन भावों
को देख रहे हैं। उधर छठे, आठवें और दसवें भाव को। चुनाव की जबानी
जंग कट्टरपंथ और हिंसा को हवा दे सकती है। यह हिंसा चुनाव के दौरान और उसके बाद भी
हो सकती है। क्योंकि लोगों के मन-बुद्धि पर ग्रहण का प्रभाव एक माह तक बना रहता है।
इस हिंसा में जन-धन दोनों की क्षति होगी और बाद में महंगाई और बेरोजगारी भी बढ़ेगी।
समुदायों के बीच आपसी मनमुटाव और घृणा बढ़ेगी।
आने वाले दिनों में 17 सितंबर से लेकर 6 दिसंबर के बीच भूकंप, समुद्री तूफान जैसी प्राकृतिक दुर्घटनाओं से कुछ यूरोपीय - खासकर स्कैंडिनेवियन देश, आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका भी प्रभावित हो सकते हैं। मिडिल ईस्ट भी इससे प्रभावित होगा। वहाँ पहले से ही जो तबाही चल रही है, उसकी तीव्रता और बढ़ जाएगी। एशिया में जापान, इंडोनेशिया और मलेशिया प्राकृतिक आपदा से प्रभावित हो सकते हैं। जहाँ ग्रहण नहीं दिखेंगे, वहाँ इनका बिलकुल प्रभाव नहीं होगा, ऐसा कहना ज्योतिष के मूलभूत सिद्धांत की अवहेलना होगी। पहले से चल रही कोई महामारी थोड़ा उग्र रूप ले सकती है और इसके प्रभाव कई देशों में देखे जाएंगे। हालाँकि अभी यह उग्रता नियंत्रण से बाहर नहीं होगी। ग्रहण गुरु के नक्षत्र पूर्वा भाद्रपद में होने के कारण असली रूप गुरु के अतिचारी होने के बाद दिखेगा, जो कि अगले साल होना है और इसे महामारी को एक्सीलरेट करने में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका मांसाहार की होगी।
भारत में दृश्य न होने से हमारे यहाँ सूतक आदि का प्रभाव
तो नहीं माना जाएगा। राशियों के अनुसार देखें तो किसी पर भी इसका अच्छा प्रभाव नहीं
पड़ेगा, लेकिन भारत पर इसका प्रभाव कम ही रहेगा। छोटी-छोटी
बातों को बहुत महत्त्व न दें। मानसिक तनाव से यथासंभव बचें। जो लोग व्यापार या शेयर
बाजार से जुड़े हैं, बिना सोचे-समझे जोखिम लेने से बचें। दुष्प्रभावों
से बचने के लिए आप चाहें तो उपाय के तौर पर गरीब और जरूरतमंद लोगों को अन्न और फल आदि
का दान कर सकते हैं। हनुमानजी, दुर्गाजी, शिवजी या विष्णु भगवान का जप करें। वैसे सर्वोत्तम उपाय ध्यान है। ध्यान एक
ऐसा उपाय है जो आपको सभी दुष्प्रभावों से बचा सकता है।
© इष्ट देव सांकृत्यायन
संपर्क: 9625841191 (केवल व्हाट्सएप)
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