इसीलिए तो जिलाते रहे 370

ओशो ने कहीं कहा है कि किताबें लिखना इंसानों के हाथ में था. लिहाजा उन्होंने अपने को सर्वश्रेष्ठ लिख दिया. अब जब तक किसी दूसरे जानवर के हाथ में किताबों से बेहतर कोई अस्त्र न आ जाए, या दूसरे जानवरों को भी किताबें लिखना न आ जाए, मानकर चलिए कि हमें यही मानना पड़ेगा. अगर हमसे पहले गधों को किताबें लिखनी आ गई होतीं तो जानते हो वो क्या लिखते? वो भी यही लिखते - और तब खुदा न अपनी ही शक्ल में गधों को बनाया.
मुझे यह बात सच के बहुत करीब लगती है. लोक में भी एक उक्ति प्रचलित है. जो जैसा होता है, वो दूसरों के बारे में भी वैसा ही सोचता है. एक शाकाहारी सोचता है कि लोग मांस कैसे खा लेते हैं. ठीक उसी तरह मांसाहारी भी सोचता है कि यार, घास-पात पर लोग ज़िंदा कैसे रह लेते हैं. दोपहर तक बिस्तर मेल्हने वाले सोचते हैं कि यार लोग भोर में ही उठ कैसे जाते हैं! शरीर में कुछ आराम-वाराम करने का मन नहीं होता क्या? जो सुबह उठकर टहलने या काम पर जाने के अभ्यस्त हैं, वे सोचते हैं कि लोग इतनी देर सोए कैसे रह लेते हैं? बिस्तर पर पड़े रहा कैसे जाता है इनसे?
यह बात केवल आहार-विहार ही नहीं, आचरण और चरित्र के मामले में भी उतनी ही सही है. गुलाम नबी आजाद ने आज एक बात कही. डोभाल के कश्मीर दौरे पर. कश्मीर का माहौल, जिसे वे और उनके आचारिक-वैचारिक पूर्वज पिछले सत्तर वर्षों से सिर्फ़ बिगाड़ने पर ही तुले पड़े हैं, वह सुधर जाए, इसे वे बर्दाश्त कर कैसे सकते हैं. यह तो वैसे ही हुआ न कि जिस खेत को आप चना बोने के लिए सुखाने में लगे पड़े हों, उसी में रात-बिरात को कोई भर हिंक पानी चला दे. तो वहाँ एक चौक पर कश्मीरियों के साथ डोभाल को खाना खाते वे देख नहीं पा रहे हैं. उनका कहना है कि पैसे देकर किसी को भी साथ ला सकते हैं.
कांग्रेस बार बार कहती रही है कि कांग्रेस केवल पार्टी नहीं, विचारधारा है. लेकिन लोग हैं कि मानते नहीं.
असल में भारत के लोग यह समझ ही नहीं पाते कि विचारधारा केवल वही नहीं है जो सच की बात करती है. विचारधारा वह भी है जो झूठ की बात करती है. विचारधारा केवल वही नहीं है जो जो कहती है, वही करती है. विचारधारा वह भी है जो कहती कुछ और करती कुछ है.
गोएबल्स की भी एक विचारधारा थी और देसी विचारों के ही गौरवगान में लगे रह गए लोग उसे जान नहीं पाए. जबकि भारत की हर चीज में केवल खोट निकालने वाले लोगों ने दूसरे विदेशी विचारों के साथ-साथ उसे भी बहुत ठीक से पढा और गुना.
हिटलर का उनसे बड़ा समर्थक और कौन हो सकता है जिनने भारत पर इमरजेंसी थोपी और उसका समर्थन किया. केवल थोपी ही नहीं, संविधान की प्रस्तावना में दो ऐसे शब्द भी उस लोकसभा से जुड़वा दिए जो कायदन थी ही नहीं. डॉक्ट्रिन ऑफ बेसिक स्ट्रक्चर पर बहस करने वालों से कभी इस पर बात तो हो कि संविधान में एक ऐसी लोकसभा द्वारा जोड़े गए शब्द वैध कैसे हो सकते हैं जिसका कार्यकाल ही गुजर चुका था.
कांग्रेस पिछले सत्तर वर्षों के दौरान लोकमानस में यह स्थापित करने में सफल रही है कि बिना कुछ लिए-दिए कोई काम नहीं होता.
कि कानून खरीदे-बेचे जाने वाली चीज है. अगर आप में औकात है तो इसे खरीदिए-बेचिए. नहीं है तो अपने में वह औकात पैदा करिए.
कि सरकारी नौकरी काम करने के लिए नहीं, सिर्फ़ मजे करने के लिए होती है.
कि घूस लेना सरकारी कर्मचारी का मौलिक अधिकार और घूस देना आम आदमी का मौलिक कर्तव्य है.
कि दलाल आमजन से सीधे जुड़े हर सरकारी विभाग का अभिन्न अंग है.
ये स्थापनाएं, जो लोकमानस में बहुत गहरे धँस चुकी हैं, इन्हें निकलने में अभी बहुत समय लगेगा. और आजाद साहब का बयान इसी की एक कड़ी है. वे इससे भिन्न सोच भी कैसे सकते हैं. उन्होंने कश्मीर में अलगाववाद के साथ-साथ इसे भी जिंदा रखने में बड़ी भूमिका निभाई है.
क्योंकि कश्मीर ही वह जगह है जो आबादी में पूरे भारत का एक प्रतिशत से भी कम होते हुए भी देश का 10 प्रतिशत से ज्यादा बजट खाता रहा है. अगर आप यह सोच रहे हैं कि यह 10 प्रतिशत से ज्यादा वाला बजट कश्मीर के आम आदमी तक पहुँचता रहा है तो बहुत बड़ी गलती पर हैं. यह बजट वहाँ के नेताओं-मंत्रियों और नौकरशाहों के चुटकी भर से भी कम परिवारों तक ही सीमित रहा है. बाकी को सिर्फ मजहब का अफीम और पत्थरबाजी के लिए पाँच सौ की दिहाड़ी थमाई जाती रही है.
कश्मीर के नाम इन चुटकी भर लोगों को विधिसम्मत बनाकर यह भारी घूस ऐसे ही नहीं थमाया जाता रहा है. असल में अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए स्वर्ग कहा जाने वाला भारत का यह प्रदेश स्विटजरलैंड की तरह लीगलाइज्ड काले धन का स्वर्ग बनकर रह गया था. इसी की व्यवस्था के लिए सन 1964 में पूरे विपक्ष की ओर से हटाए जाने का प्रस्ताव आने के बावजूद अनुच्छेद 370 को अब तक जीवित रखा गया था. क्योंकि अनुच्छेद 370 ही यह व्यवस्था देता था कि जम्मू-कश्मीर न सुप्रीमकोर्ट के दायरे में आएगा और न ही सीएजी के.
किसी प्रदेश के सीएजी के दायरे में न आने का अर्थ आप आसानी से समझ सकते हैं. अब तक उन्हें दी गई राशि का क्या हुआ, इसका भी लेखा-जोखा आप नहीं लगा सकते. क्योंकि ये सीएजी के दायरे से बाहर थे. न तो इन्हें कोलगेट की तरह फाइलें गायब करने की जरूरत पड़ेगी और न टू जी की तरह फोर जी के जमाने में फिर से स्लॉट नीलामी की नौटंकी करने की. कौन ऐसा नौकरशाह या नेता है जो यह निर्बाध आजादी अनंत तक नहीं भोगना चाहेगा.
आजाद साहब को नए भारत की नई करवट को समझने में जरा वक्त लगेगा. शायद वे तब भी न समझ पाएं. ये समझ तो खूब रहे हैं और पब्लिकली मान नहीं पा रहे हैं कि इनकी सरकारों द्वारा आ तक दी गई अकूत राशि के मामूली टुकड़े से भी वंचित रही कश्मीर घाटी की बहुत बड़ी आबादी फौजियों को ऐसे ही देवदूत नहीं मानती. वो अलगाववादियों से ऐसे ही चिढ़ी पड़ी नहीं बैठी है. इनकी सरकारों ने 70 साल तक कश्मीर की पूरी आबादी को भेड़ियों के बीच ऐसे ही छोड़ रखा था जैसे खान अब्दुल गफ्फार खान को छोड़ दिया था. उसे सिर्फ यह भरोसा चाहिए कि अपने देश और सरकार के साथ होने पर चुटकी भर अलगावदी उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकेंगे. जिस दिन उसे यह भरोसा हो गया, उसी दिन कश्मीर की जनता खुद अलगाववादियों का बोरिया-बिस्तर बाँध देगी. यकीन न हो आजाद साहब तो एक बार जरा कश्मीर के एकीकरण के लिए लड़ने और उसमें जान देने वालों की सूची पर नजर डाल लीजिए.
©इष्ट देव सांकृत्यायन

Comments

  1. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (10-08-2019) को "दिया तिरंगा गाड़" (चर्चा अंक- 3423) पर भी होगी।


    --

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….

    अनीता सैनी

    ReplyDelete

Post a Comment

सुस्वागतम!!

Popular posts from this blog

रामेश्वरम में

इति सिद्धम

Most Read Posts

रामेश्वरम में

Bhairo Baba :Azamgarh ke

इति सिद्धम

Maihar Yatra

Azamgarh : History, Culture and People

पेड न्यूज क्या है?

...ये भी कोई तरीका है!

विदेशी विद्वानों के संस्कृत प्रेम की गहन पड़ताल

सीन बाई सीन देखिये फिल्म राब्स ..बिना पर्दे का