सफ़ाई : एक गहन चिंतन
इष्ट देव सांकृत्यायन
आजकल
सफ़ाई की बड़ी धूम है। जिसे देखिए वही, सफ़ाई के पीछे पड़ा हुआ है। नेता से लेकर लेखक,
पत्रकार, शिक्षक, बाबू और अफ़सर तक सभी सफ़ाई की ही बातें कर रहे हैं। कोई समर्थन
में तो कोई विरोध में, पर चर्चा सभी सफ़ाई की ही कर रहे हैं। समर्थन वे कर रहे हैं
जिन्हें पहले कभी सफ़ाई का मौक़ा नहीं मिला, विरोध में वे हैं जो पहले ही काफ़ी सफ़ाई
कर चुके हैं और मानते हैं कि जितनी सफ़ाई वे कर चुके
हैं, उसी के प्रभाव से उबर पाना अभी देश के लिए अगले सौ वर्षों तक संभव नहीं होगा।
हालाँकि पहले से चले आ रहे सफ़ाई तंत्र में उनकी पैठ इतनी गहरी है कि उनको सफ़ाई की
प्रक्रिया से पूरी तरह साफ़ कर देने की तो कभी कल्पना ही नहीं की जा सकती, पर इन
दिनों मामला थोड़ा नरम चल रहा है। बिलकुल वैसे ही जैसे हाल ही में आई मंदी के दौरान
हमारे देश के व्यापार के साथ हुआ था।
हमारे
जैसे चिरकुट टाइप थर्डक्लासियों के दम पर चलने वाले देसी बैंक सूखा रोग के शिकार
हुए और उधर स्विस बैंकों को अपच होने लगी। असल में यह भी सफ़ाई का ही नतीजा था। जब
आप एक जगह सफ़ाई करते हैं तो जो कूड़ा निकलता है उसे कहीं न कहीं डालना ही पड़ता है।
हमारे यहाँ जो सफ़ाई हुई वह लोकलुभावन सरकारी योजनाओं के मार्फ़त हुई और उसका जो
कूड़ा निकला उसे काला मानते हुए स्विस बैंकों में डाल दिया गया। ऐसे ही मंदी के
दौरान उपभोक्ता और नौकरीपेशा टाइप लोगों के पास जमापूँजी के रूप में जो कूड़ा-कचरा
था, उसे महँगाई और वेतनघटौती नामक नए तरह के सफ़ाई उपकरणों से साफ़ किया गया और साफ़
करके बड़े-बड़े लोगों की तिजोरी रूपी कूड़ेदानों में डाल दिया गया। आप जानते ही हैं,
कूड़ेदान अगर बहुत दिनों तक साफ़ न किए जाएँ तो उनमें भंडारित पदार्थों में फफूँद
इत्यादि लगने लग जाती है और ऐसी स्थिति में वह काला पड़ जाता है। अतः इस प्रकार
भंडारित धन रूपी कूड़े के भी जब काले पड़ने की आशंका हुई तो उसे भी विदेशी बैंकों
रूपी कूडेदानों में डाले जाने के लिए रवाना कर दिया गया। ये कूड़ा उन देशों में
मौजूद बड़े लोगों के पर्सनल कूड़ेदानों में डाला गया, जो अब साफ़ दिखाई दे रहे हैं।
जो
लोग अभी सफ़ाई का विरोध कर रहे हैं उनकी चिंता का असली कारण यह क़तई न समझे कि वे
सफ़ाई विरोधी हैं। वास्तव में तो वे बेहद सफ़ाईपसंद लोग हैं। यही लोग हैं जो आज़ादी
के बाद से लेकर अब तक बड़ी गंभीरतापूर्वक सफ़ाई करते आए हैं। छोटे-बड़े शिक्षा
संस्थानों, संचार माध्यमों, भाँति-भाँति की खदानों, अस्पतालों और कई प्रकार के
सरकारी-ग़ैर सरकारी रोज़गारों से लेकर रक्षा उपकरणों और हवाई कंपनियों तक की सफ़ाई का
वास्तविक श्रेय इन्हें ही जाता है। सफ़ाई की महत्ता भला इनसे बेहतर और कौन जानता
होगा, लेकिन ये वे लोग हैं जो सफ़ाई का सलीका जानते हैं। उन्हें यह बात बहुत ठीक से
पता है कि कब, कहाँ, कैसे, क्या और कितना साफ़ करना चाहिए तथा क्या और कितना नहीं।
चूँकि उन्हें कई पीढ़ियों से सफ़ाई का अनुभव है, इसलिए वे जानते हैं कि हंड्रेड
परसेंट सफ़ाई के नतीजे क्या होते हैं। उनका डर दरअसल इसी बात को लेकर है कि कहीं नए
सफ़ाई अभियानी हंड्रेड परसेंट सफ़ाई न कर दें।
उन्हें यह बात बहुत ठीक से पता है कि कब, कहाँ, कैसे, क्या और कितना साफ़ करना चाहिए तथा क्या और कितना नहीं। चूँकि उन्हें कई पीढ़ियों से सफ़ाई का अनुभव है, इसलिए वे जानते हैं कि हंड्रेड परसेंट सफ़ाई के नतीजे क्या होते हैं। उनका डर दरअसल इसी बात को लेकर है कि कहीं नए सफ़ाई अभियानी हंड्रेड परसेंट सफ़ाई न कर दें।
हालाँकि
ऐसा न हो, इसके लिए दोनों ही ने अपनी-अपनी ओर से पूरा एहतियात बरता है। वरिष्ठ
अभियानियों को पहले से पता था कि जनता सफ़ाई के उनके तरीक़े से अब ऊब गई है। देश की
सफ़ाई के लिए उसे अब नए तरीक़े ही नहीं, नए चेहरे भी चाहिए। सफ़ाई का नया अभियान भी
फ्लॉप न होने पाए, इसके लिए उन्होंने अपनी टीम के कुछ विशेषज्ञों की सफ़ाई कर
उन्हें नई टीम की ओर सरका दिया और नई टीम ने भी अपनी उदात्त परंपरा का परिचय देते
हुए नवागंतुकों का हार्दिक स्वागत किया। सौहार्द का ऐसा उल्लासमय निर्वाह देश में
पहले कभी नहीं देखा गया। उधर जो लोग सफ़ाई की नई व्यवस्था के समर्थन में अपूर्व
उत्साह और उल्लास दिखा रहे हैं, उनकी चिंता इस बात को लेकर है कि कहीं अपनी कमीज़
की सफ़ेदी में उनकी वाली से कुछ कमी न रह जाए। हालाँकि सफ़ेदी यानी सफ़ाई की यह चिंता
गुण को लेकर है या मात्रा को, इसका ठीक-ठीक अनुमान अभी मुश्किल है।
दोनों
के बीच अभी जो द्वंद्व चल रहा है, उसे लेकर जनता टाइप कुछ लोग बहुत परेशान हैं। ये
वही लोग हैं, जो नहीं जानते कि द्वन्द्व का सृष्टि के विकास में कितना महत्वपूर्ण
योगदान है। वह द्वंद्व ही है जिसके चलते दुनिया चल रही है। यहाँ तक कि सफ़ाई भी
अपने आपमें एक द्वंद्व है, झाड़ू का कूड़े से द्वंद्व। इसलिए इनके द्वंद्व को लेकर
परेशान होने की क़तई कोई ज़रूरत नहीं है। ध्यान रखने की बात बस यह है कि इनके
द्वंद्व से उत्तेजित होकर कहीं हम-आप द्वंद्व न कर बैठें। हमारा-आपका द्वंद्व
हमारे-आपके लिए नुकसानदेह हो सकता है, क्योंकि हमें द्वंद्व के उन तरीक़ों का पता
ही नहीं है जो फ़ायदेमंद होते हैं। वस्तुतः वह वाला द्वंद्व हमारे आपके अनुभव के
दायरे से बाहर की बात है। बड़े और छोटे लोगों के द्वंद्व में इतना बुनियादी अंतर तो
होता ही है। अकसर आपने देखा होगा कि उनका द्वंद्व भी फ़ायदेमंद होता है और हमारा
प्रेम भी नुकसानदेह। सबसे बड़ा फ़ायदा तो उनके द्वंद्व का यह होता है कि हमें किसी
वस्तु, विचार या कार्य के दोनों पक्षों का पता चल जाता है। उनके द्वंद्व से छनकर
आने वाली बातों से हम मुद्दे के फ़ायदे भी जान जाते हैं और नुकसान भी।
अब
जैसे सफ़ाई वाले मसले को ही ले लीजिए। हम सफ़ाई समर्थकों के हल्ले के झाँसे में तो आ
गए, लेकिन उसके नुकसानों पर हमने ध्यान नहीं दिया। दें भी कैसे, हम तो जानते ही
नहीं। कुछ विद्वानों ने सफ़ाई के नुकसानों की चर्चा करने की कोशिश ज़रूर की, लेकिन
उनकी आवाज फ़ायदे के हल्ले वाले नक्कारखाने में तूती की आवाज़ की तरह दब कर रह गई। लेकिन
एक जागरूक नागरिक को सभी चीज़ों की तरह सफ़ाई के नुकसानों पर भी ग़ौर करना चाहिए। मैंने
ग़ौर किया। एक विद्वान तो सफ़ाई अभियान को कूड़े और झाड़ू के सीमित दायरे से बाहर
निकाल कर हाथ की सफ़ाई तक ले गए और इसमें उन्होंने साबुन कंपनियों के मुनाफ़े और
साबुन से आम जनता के हाथों की त्वचा को होने वाले नुकसान तक की गणना कर डाली। आपने
देखा ही होगा कि पिछले दिनों जब कई मंत्री-अफ़सर और सलेब्रिटी टाइप लोग अपने सारे
हथियार लेकर कूड़े पर टूट पड़े थे तो देश के सारे कूड़े जाने कहाँ छिप गए थे। टीवी पर
सफ़ाई दिखाए जाने के लिए साफ़ जगहों पर कूड़ा मँगाना पड़ता था। सफ़ाई की गति अगर वही
रही होती तो अब तक देश में कूड़े के आयात की नौबत आ गई होती। क्या पता स्वदेशी
समर्थकों को भी एक-दो दशक बाद कूड़े के लिए ही मेक इन इंडिया टाइप नया अभियान चलाना
पड़ जाता। ख़ैर, उसकी तार्किकता तो मैं ख़ुद नहीं समझ पाया, आपको कैसे बता सकूंगा!
लेकिन, जो मैं समझ पाया, वह यह कि आज देशे की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी और आर्थिक
विकास की धीमी गति है। वैसे यह समस्या जबसे मैंने होश सँभाला तभी से देखता आ रहा
हूँ और इसीलिए मुझे लगने लगा है कि ये समस्याएँ भी भारत में धर्म की तरह सनातन टाइप
की हैं।
ग़ौर
से देखें तो आप पाएंगे कि ये दोनों समस्याएँ आपस में गुत्थम-गुत्था हैं। बेरोजगारी
है, इसीलिए आर्थिक विकास की गति धीमी है और आर्थिक विकास की गति धीमी है, इसीलिए
बेरोजगारी है। यह सोचकर देखिए कि हमारे देश में केवल सफ़ाई व्यवस्था सही न होने के
नाते कितने प्रकार के रोजगार हैं। मुझे याद आता है, एक बार अपने 10 साल के बच्चे
को बुख़ार के नाते अस्पताल ले जाना पड़ा। वहाँ उसे तीन हफ़्ते एड्मिट रखने के बाद
मालूम हुआ कि वास्तव में इसे इन्फेक्शन हुआ था और यह इन्फेक्शन किसी ऐसी जगह से
कोई चीज़ खा लेने के कारण हुआ, जहाँ सफ़ाई नहीं थी। यह सही है कि इतने दिनों में
मेरी स्वास्थ्य बीमा की पूरी रकम के साथ-साथ पूरी जमापूँजी भी ख़र्च हो गई और साथ
ही कुछ क़र्ज़ भी लेना पड़ा, लेकिन अर्थशास्त्र के विद्वान मानते हैं कि एक जगह का
ख़र्च ही दूसरी जगह की आमदनी है।
उस
समय तो मुझे भी केवल अपना ख़र्च और चढ़ रहा क़र्ज दिख रहा था, लेकिन बाद में मुझे लगा
कि मनुष्य को इतना क्षुद्र स्वार्थी नहीं होना चाहिए। शायद वे क्षुद्र स्वार्थ ही
हैं जो हमे हमेशा छोटा बने रहने के लिए मजबूर करते हैं, बड़े लोग तो परोपकार के लिए
जीते हैं। क्या कभी आपने देखा है किसी बड़े आदमी को अपने स्वार्थ की बात करते? मुझे
अपने आप पर बड़ी शर्म आई। और क्यों न आती, मैं कोई संसद या विधानसभा का सदस्य थोड़े
हूँ! फिर सोचा तो लगा कि अगर थोड़ा व्यापक नज़रिया अपनाएँ तो आप पाते हैं कि यह न
केवल अस्पताल, बल्कि कई और लोगों व संस्थानों की आमदनी का कारण बना। अगर बीमारी का
डर न होता तो मैं या मेरे जैसे लाखों लोग बीमा क्यों करवाते? लोग बीमा न करवाएँ तो
बीमा कंपनियाँ कैसे चलतीं? ये न चलतीं तो लाखों लोगों को रोज़गार कैसे मिलता और देश
की जीएनपी कितने नीचे चली जाती? लोग बीमार न पड़ते तो अस्पताल क्यों जाते? सरकारी
अस्पतालों के परिसरों और कामकाज के तरीक़ों में सफ़ाई होती तो लोग निजी अस्पतालों
में क्यों जाते? निजी अस्पतालों में लोग न जाते तो बुख़ार जैसे मामूली मामलों में
दो-तीन हफ़्ते एड्मिट कैसे रहते और उनकी आमदनी कैसे होती? अगर न होती तो वहाँ काम
करने वाले तमाम लोग क्या करते? दवाई बनाने वाली तमाम कंपनियाँ और दुकानें क्या
करतीं? अब देश में ऐसी भी कई फैक्ट्रियाँ खुल चुकी हैं जो 25-30 लाख रुपये में
डॉक्टर बना देती हैं। अगर इन अस्पतालों में इन डॉक्टरों की खपत न होती तो वे क्या
करते और क्या करतीं वे फैक्ट्रियाँ जो थोक के भाव से डॉक्टर बना रही हैं? ऐसे जाने
कितने सवाल हैं, जिनसे होकर अगर आप गुज़रें तो दिल द्रवित हो जाए। इसलिए मित्रों,
मैं आपको सीधे सफ़ाई के विरोध के लिए तो नहीं कहूंगा, लेकिन इतना मेरा अनुरोध अवश्य
है कि मेरी तरह आप भी व्यापक नज़रिया अपनाते हुए किसी झाँसे में न आएँ और सफ़ाई के
फ़ायदों के साथ-साथ इससे होने वाले नुकसान को भी समझें। आगे जैसी आपकी इच्छा। चाहें
तो आप भी मेरी तरह विरोध कर सकते हैं और नहीं तो समर्थन या तटस्थ रहने के लिए तो
आप स्वतंत्र हैं ही।
nice g
ReplyDeletevery guud g poets by in hindi
ReplyDeletehttp://www.nvrthub.com/
http://www.nvrthub.com is our site this fully inspired by you
ReplyDelete