कुछ भी कभी कहीं हल नहीं हुआ
कितनी बार हुई हैं
जाने ये बातें
आने-जाने वाली.
विनिमय के
व्यवहारों में कुछ
खोने-पाने वाली.
फिर भी कुछ भी कभी कहीं हल नहीं हुआ.
जल ज़मीन जंगल
का बटना.
हाथों में
सूरज-मंगल
का अटना.
बांधी जाए
प्यार से जिसमें
सारी दुनिया
ऐसी इक
रस्सी का बटना.
सभी दायरे
तोड़-फोड़ कर
जो सबको छाया दे-
बिन लागत की कोशिश
इक ऐसा छप्पर छाने वाली.
फिर भी कुछ भी कभी कहीं हल नहीं हुआ.
हर संसाधन पर
कुछ
घर हैं काबिज.
बाक़ी आबादी
केवल
संकट से आजिज.
धरती के
हर टुकड़े का सच
वे ही लूट रहे हैं
जिन्हें बनाया हाफ़िज.
है तो हक़ हर हाथ में
लेकिन केवल ठप्पे भर
लोकतंत्र की शर्तें
सबके मन भरमाने वाली.
इसीलिए, कुछ भी कभी कहीं हल नहीं हुआ.
जाने ये बातें
आने-जाने वाली.
विनिमय के
व्यवहारों में कुछ
खोने-पाने वाली.
फिर भी कुछ भी कभी कहीं हल नहीं हुआ.
जल ज़मीन जंगल
का बटना.
हाथों में
सूरज-मंगल
का अटना.
बांधी जाए
प्यार से जिसमें
सारी दुनिया
ऐसी इक
रस्सी का बटना.
सभी दायरे
तोड़-फोड़ कर
जो सबको छाया दे-
बिन लागत की कोशिश
इक ऐसा छप्पर छाने वाली.
फिर भी कुछ भी कभी कहीं हल नहीं हुआ.
हर संसाधन पर
कुछ
घर हैं काबिज.
बाक़ी आबादी
केवल
संकट से आजिज.
धरती के
हर टुकड़े का सच
वे ही लूट रहे हैं
जिन्हें बनाया हाफ़िज.
है तो हक़ हर हाथ में
लेकिन केवल ठप्पे भर
लोकतंत्र की शर्तें
सबके मन भरमाने वाली.
इसीलिए, कुछ भी कभी कहीं हल नहीं हुआ.
सभी कुछ हल ही हो जाएगा तो दुनिया के जीने खाने का मकसद ही ख़त्म नहीं हो जाएगा ?
ReplyDeleteकविता प्यारी है !
यहां तो कुछ और ही चलता है, लोग दूसरों को लूटने की कोशिश में लगे रहते हैं..
ReplyDeleteशायद कभी हल होगा भी नहीं...उताम रचना.
ReplyDeleteसबके मन का करने के प्रयास में किसी के मन का नहीं होता है।
ReplyDeleteग़म की अँधेरी रात में दिल को ना बेकरार कर
ReplyDeleteसुबह जरूर आएगी सुबह का इंतज़ार कर
नीरज
है तो हक़ हर हाथ में
ReplyDeleteलेकिन केवल ठप्पे भर
लोकतंत्र की शर्तें
सबके मन भरमाने वाली.
इसीलिए, कुछ भी कभी कहीं हल नहीं हुआ.
सच है..... इतना ही तो हक़ है.....
बाबा रामदेव और अन्ना की कोशिश का साथ दें। शायद कुछ हला-भला हो जाय। :)
ReplyDeleteनिराशा में डूबे अंतर्मन की व्यथा को बहुत प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति दी है आपने....
ReplyDeleteमन को छूती , उद्वेलित करती बहुत ही सुन्दर रचना...