तुम कहां गए

रतन
बतलाओ तुम कहां गए

बरसों बाद भी तेरी यादें
आती हैं नित शाम-सवेरे
जब आती है सुबह सुहानी
जब देते दस्तक अंधेरे

कोना कोना देखा करता
नजर नहीं तुम आते हो
मन में बसते हो लेकिन क्यों
अंखियों से छिप जाते हो

बतलाओ तुम कहां गए

हम जाते हैं खेत गली हर
हम जाते हैं नदी किनारे
उम्मीदें होती हैं जहां भी
जाते हैं हर चौक चौबारे

पानी में कंकड़ फेंको तो
हलचल जैसे होती है
मुझे देखकर अब यह दुनिया
पगला पगला कहती है

बतलाओ तुम कहां गए

तुम मत आना हम आएंगे
छिपकर तुमसे मिलने को
जानेंगे नहीं दुनिया वाले
मेरे इस इक सपने को

बोझिल ना कर उम्मीदों को
मन को अपने समझाओ
माना होगी मजबूरी कुछ
आ न सको तो बतलाओ

बतलाओ तुम कहां गए

Comments

  1. बहुत सुन्दर रचना है ! आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया ! पूरा पढ़ नहीं पाया ! पर जितना भी पढ़ा बहुत अच्छा लगा ! आगे भी आऊंगा और आनंद लूँगा !

    ReplyDelete

Post a Comment

सुस्वागतम!!

Popular posts from this blog

रामेश्वरम में

Bhairo Baba :Azamgarh ke

इति सिद्धम

Most Read Posts

रामेश्वरम में

Bhairo Baba :Azamgarh ke

Maihar Yatra

इति सिद्धम

...ये भी कोई तरीका है!

Azamgarh : History, Culture and People

पेड न्यूज क्या है?

विदेशी विद्वानों के संस्कृत प्रेम की गहन पड़ताल

आइए, हम हिंदीजन तमिल सीखें

सीन बाई सीन देखिये फिल्म राब्स ..बिना पर्दे का