पुरुख के भाग
‘हे दू नम्मर! अब का ताकते हो? जाओ. तुमको तो मालुमे है कि तुम्हरा नाम किलियर नईं हुआ. भेटिंगे में रह गया है.’
दो नंबर ने कहा कुछ नहीं. बस उस दफ्तर के चपरासी को पूरे ग़ुस्से से भरकर ताका. इस बात का पूरा प्रयास करते हुए कि कहीं उसे ऐसा न लग जाए कि वो उसे हड़काने की कोशिश कर रहे हैं, पर साथ ही इस बात का पूरा ख़याल भी रखा कि वह हड़क भी जाए. आंखों ही आंखों के इशारे से उन्होंने समझाना चाहा कि अबे घोंचू, बड़ा स्मार्ट बन रहा है अब. इसी दफ्तर में एक दिन मुझे देख कर तेरी घिग्घी बंध जाती थी. अब तू मुझे वेटिंग लिस्ट समझा रहा है और अगर कहीं उसमें मेरा नाम क्लियर हो गया होता तो आज तू दो हज़ार बार मेरे कमरे के कोने-अंतरे में पोंछा मारने आता कि कहीं से मेरी नज़र तेरे ऊपर पड़ जाए. ऐसा उन्होंने सोचा, लेकिन कहा नहीं. वैसे सच तो ये है कि यही उनकी ख़ासियत भी है. वो जो सोचते हैं कभी कहते नहीं और जो कहते हैं वो तो क्या उसके आसपास की बातें भी कभी सोचते नहीं हैं. वो वही दिखने की कोशिश करते हैं जो हैं नहीं और जो हैं उसे छिपाने में ही पूरी ऊर्जा गंवा देते हैं. ये बात बहुत दिनों तक उस दफ्तर में रहे होने के नाते उस चपरासी को भी मालूम थी. लिहाजा उसने ताड़ ली. पर उसने भी कुछ कहा नहीं. इतने लंबे समय तक सीधे सरकार के दफ़्तर में चपरासी रहने का बौद्धिक स्तर पर उसने यही तो फ़ायदा उठाया था. वो जानता था कि कभी भी कोई भी घोड़ा-गधा इस दफ़्तर में घुस सकता था. जो उसके जितनी भी क़ाबिलीयत नहीं रखता, वो पूरे देश के सारे अफ़सरों को हांकने का हक़दार हो सकता है. उसे इसी आपिस के सीनियर चपरासी रामखेलावन कका इयाद आते हैं. अकसरे कहा करते थे कि तिरिया के चरित्तर के थाह त हो सकता है कि कौनो जोगी जती पा जाए, लेकिन पुरुख के भाग के थाह कौनो नईं पा सकता.
वैसे दू नंबर से उसे बड़ी सहानुभूति है. वह देख रहा है कि दू नम्मर घर से लेकर संसार तक हर तरफ़ दुए नम्मर रह जा रहा है. एही दफ़्तर के बगल के दफ़्तर में बैठ के चला गेया, लेकिन ई दफ़्तर में नईं बैठ पाया. अब का बैठ पाएगा. अब तो इनके पीछे पूरी लाइन खड़ी है और उहो ऐसी कि बस इनही के धकियाने के फेर में है. एक-दू नईं पूरा तीन-तीन नौजवान. 50 साल से ले के 70 साल के उमिर तक का तो इनके घर ही में मौजूद है. और ई तो ऐसहूं चला-चली के बेला में है. एक बात ऊ और देख चुका है और परतिया चुका है कि जो-जो बगल वाले दफ़्तर में बैठा, ऊ ए दफ़्तर में कबे नईं आ पाया. इनके पहिले भी कुछ बड़े-बड़े लोग ओही दफ़्तर से निपट गए. एही भाग्य है. पर पता नईं कौन ज्योतिखी के ई दिखाते हैं हाथ और ऊ बार-बार बोल देता है कि तुम बन जाओगे. लेकिन का पता भाई, बनिए जाए कबो! ऐसे-ऐसे लोग भी बने हैं जो कभी उसे चाय पिलाते रहे हैं, अपने नाम की पर्ची पहुंचाने के लिए तो ई तो फिर भी...... इसके पहले कि वह दो नंबर को खिसकाता तीन नंबर वाली धड़धड़ाती नज़र आईं. आंख मुंह निपोरते हुए पूरे ग़ुस्से में. एकबारगी तो उसको लगा कि ई तो घुसिये जाएंगी. लेकिन तबे ऐन दरवाजे पर पहुंच गया, ‘जी मैडम! केन्ने जा रही हैं? आपको मालुम है न वेटिंग लिस्ट में आपका नाम अबकी पारी किलियर नईं हुआ है!’ ’हे चल हट तो. तू क्या समझता है मैं तेरी इजाज़त की मोहताज हूं? मुझे जब जाना होगा तो तेरे कहने से जाउंगी?’ एकदम से फायर हो गईं तीन नंबर, ‘अभी मेरा जाने का अपना मूड नहीं है. समझा? तेरी वेटिंग लिस्ट का इंतज़ार मैं नहीं करती.’ अच्छा हुआ कि मैडम इधर-उधर टहलते हुए दफ़्तर के अंदर उसकी नज़र बचा कर एक नज़र मारती हुई आगे बढ़ गईं. मैडम के जाते ही उसने राहत की सांस ली. लेकिन इसके पहले कि बतौर राहत ली गई सांस को बाहर निकाल पाता अपने भरपूर लंपटपन और उचक्केपने के तेवर के साथ फूंय-फांय करते चार नम्मर लौका गए. ऊ आना त चाहते हैं इस दफ़्तर में लेकिन उन्हें कौनो जल्दी नहीं है. जिस काम की इनको बहुत जल्दी हो, उसको भी ई तीन महीना के भेटिंग में डाल सकते हैं. और नाम को सार्थक करने में तो इनका कोई जवाबे नहीं है. इनका बस चले तो देश की पंचवर्षीय योजना का भी नाम बदल के तत्काल कर दें. लेकिन एह बार तो बेचारे इस लायक भी नहीं बचे कि ए दफ़्तर के एन्ने-ओन्ने भी कौनो कोने बैठें. पर ताक-झांक में बेचारे लग गए हैं.
हालांकि ताक-झांक ऊ इस बार भी कर रहे हैं, पर सबसे नज़र बचा के. ऐसे ही जैसे कोई लफंगा लड़कियों के कॉलेज की तरफ़ जाता है. वैसे ही वो नज़र बचा के बड़ी हसरत से चेंबर के अंदर झांक भी गया.
अब जब देख ही लिया तो वो मान भी कैसे जाता! सरकार के दफ्तर का चपरासी ही कैसा जो जो थोड़ा जबरई न कर दे. बोल ही पड़ा, ‘का साहब अबकी बेर त आप भेटिंगों से बाहर हो गए..........’ लेकिन इसके पहले कि उसकी बात पूरी होती चार नम्मर ने उसको अंकवार में भर लिया, ‘ह बुड़बक, अरे भेटिंग-फेटिंग के फेर में कौन पड़ता है जी? हम त तुम्है हेर रहे थे. अरे ज़रा आ जाना घर पे. मलकिन तुमको याद कर रही थीं. लाई-चना भी भेजवाई हैं बचवन के लिए.’ अब चपरासी हाथ जोड़ चुका था, ‘और मालिक गैया के लिए...हें-हें-हें..’
‘हां-हां चारा भी है. रखा है. आना ले जाना.’ चार नम्मर ई कह के अभी आगे बढ़ भी नईं पाए थे कि तब तक एक नम्मर का रेला आ गया. ई ओही एक नम्मर था जो न कभी अंदर झांकने का हिम्मत किया न बाहर खड़े होने का. लेकिन बाह रे भाग. इसे कहते हैं पुरुख के भाग. उसने मन ही मन सोचा और सलाम मारने के लिए बिलकुल अटेंसन की मुद्रा में खड़ा हो गया.
दो नंबर ने कहा कुछ नहीं. बस उस दफ्तर के चपरासी को पूरे ग़ुस्से से भरकर ताका. इस बात का पूरा प्रयास करते हुए कि कहीं उसे ऐसा न लग जाए कि वो उसे हड़काने की कोशिश कर रहे हैं, पर साथ ही इस बात का पूरा ख़याल भी रखा कि वह हड़क भी जाए. आंखों ही आंखों के इशारे से उन्होंने समझाना चाहा कि अबे घोंचू, बड़ा स्मार्ट बन रहा है अब. इसी दफ्तर में एक दिन मुझे देख कर तेरी घिग्घी बंध जाती थी. अब तू मुझे वेटिंग लिस्ट समझा रहा है और अगर कहीं उसमें मेरा नाम क्लियर हो गया होता तो आज तू दो हज़ार बार मेरे कमरे के कोने-अंतरे में पोंछा मारने आता कि कहीं से मेरी नज़र तेरे ऊपर पड़ जाए. ऐसा उन्होंने सोचा, लेकिन कहा नहीं. वैसे सच तो ये है कि यही उनकी ख़ासियत भी है. वो जो सोचते हैं कभी कहते नहीं और जो कहते हैं वो तो क्या उसके आसपास की बातें भी कभी सोचते नहीं हैं. वो वही दिखने की कोशिश करते हैं जो हैं नहीं और जो हैं उसे छिपाने में ही पूरी ऊर्जा गंवा देते हैं. ये बात बहुत दिनों तक उस दफ्तर में रहे होने के नाते उस चपरासी को भी मालूम थी. लिहाजा उसने ताड़ ली. पर उसने भी कुछ कहा नहीं. इतने लंबे समय तक सीधे सरकार के दफ़्तर में चपरासी रहने का बौद्धिक स्तर पर उसने यही तो फ़ायदा उठाया था. वो जानता था कि कभी भी कोई भी घोड़ा-गधा इस दफ़्तर में घुस सकता था. जो उसके जितनी भी क़ाबिलीयत नहीं रखता, वो पूरे देश के सारे अफ़सरों को हांकने का हक़दार हो सकता है. उसे इसी आपिस के सीनियर चपरासी रामखेलावन कका इयाद आते हैं. अकसरे कहा करते थे कि तिरिया के चरित्तर के थाह त हो सकता है कि कौनो जोगी जती पा जाए, लेकिन पुरुख के भाग के थाह कौनो नईं पा सकता.
वैसे दू नंबर से उसे बड़ी सहानुभूति है. वह देख रहा है कि दू नम्मर घर से लेकर संसार तक हर तरफ़ दुए नम्मर रह जा रहा है. एही दफ़्तर के बगल के दफ़्तर में बैठ के चला गेया, लेकिन ई दफ़्तर में नईं बैठ पाया. अब का बैठ पाएगा. अब तो इनके पीछे पूरी लाइन खड़ी है और उहो ऐसी कि बस इनही के धकियाने के फेर में है. एक-दू नईं पूरा तीन-तीन नौजवान. 50 साल से ले के 70 साल के उमिर तक का तो इनके घर ही में मौजूद है. और ई तो ऐसहूं चला-चली के बेला में है. एक बात ऊ और देख चुका है और परतिया चुका है कि जो-जो बगल वाले दफ़्तर में बैठा, ऊ ए दफ़्तर में कबे नईं आ पाया. इनके पहिले भी कुछ बड़े-बड़े लोग ओही दफ़्तर से निपट गए. एही भाग्य है. पर पता नईं कौन ज्योतिखी के ई दिखाते हैं हाथ और ऊ बार-बार बोल देता है कि तुम बन जाओगे. लेकिन का पता भाई, बनिए जाए कबो! ऐसे-ऐसे लोग भी बने हैं जो कभी उसे चाय पिलाते रहे हैं, अपने नाम की पर्ची पहुंचाने के लिए तो ई तो फिर भी...... इसके पहले कि वह दो नंबर को खिसकाता तीन नंबर वाली धड़धड़ाती नज़र आईं. आंख मुंह निपोरते हुए पूरे ग़ुस्से में. एकबारगी तो उसको लगा कि ई तो घुसिये जाएंगी. लेकिन तबे ऐन दरवाजे पर पहुंच गया, ‘जी मैडम! केन्ने जा रही हैं? आपको मालुम है न वेटिंग लिस्ट में आपका नाम अबकी पारी किलियर नईं हुआ है!’ ’हे चल हट तो. तू क्या समझता है मैं तेरी इजाज़त की मोहताज हूं? मुझे जब जाना होगा तो तेरे कहने से जाउंगी?’ एकदम से फायर हो गईं तीन नंबर, ‘अभी मेरा जाने का अपना मूड नहीं है. समझा? तेरी वेटिंग लिस्ट का इंतज़ार मैं नहीं करती.’ अच्छा हुआ कि मैडम इधर-उधर टहलते हुए दफ़्तर के अंदर उसकी नज़र बचा कर एक नज़र मारती हुई आगे बढ़ गईं. मैडम के जाते ही उसने राहत की सांस ली. लेकिन इसके पहले कि बतौर राहत ली गई सांस को बाहर निकाल पाता अपने भरपूर लंपटपन और उचक्केपने के तेवर के साथ फूंय-फांय करते चार नम्मर लौका गए. ऊ आना त चाहते हैं इस दफ़्तर में लेकिन उन्हें कौनो जल्दी नहीं है. जिस काम की इनको बहुत जल्दी हो, उसको भी ई तीन महीना के भेटिंग में डाल सकते हैं. और नाम को सार्थक करने में तो इनका कोई जवाबे नहीं है. इनका बस चले तो देश की पंचवर्षीय योजना का भी नाम बदल के तत्काल कर दें. लेकिन एह बार तो बेचारे इस लायक भी नहीं बचे कि ए दफ़्तर के एन्ने-ओन्ने भी कौनो कोने बैठें. पर ताक-झांक में बेचारे लग गए हैं.
हालांकि ताक-झांक ऊ इस बार भी कर रहे हैं, पर सबसे नज़र बचा के. ऐसे ही जैसे कोई लफंगा लड़कियों के कॉलेज की तरफ़ जाता है. वैसे ही वो नज़र बचा के बड़ी हसरत से चेंबर के अंदर झांक भी गया.
अब जब देख ही लिया तो वो मान भी कैसे जाता! सरकार के दफ्तर का चपरासी ही कैसा जो जो थोड़ा जबरई न कर दे. बोल ही पड़ा, ‘का साहब अबकी बेर त आप भेटिंगों से बाहर हो गए..........’ लेकिन इसके पहले कि उसकी बात पूरी होती चार नम्मर ने उसको अंकवार में भर लिया, ‘ह बुड़बक, अरे भेटिंग-फेटिंग के फेर में कौन पड़ता है जी? हम त तुम्है हेर रहे थे. अरे ज़रा आ जाना घर पे. मलकिन तुमको याद कर रही थीं. लाई-चना भी भेजवाई हैं बचवन के लिए.’ अब चपरासी हाथ जोड़ चुका था, ‘और मालिक गैया के लिए...हें-हें-हें..’
‘हां-हां चारा भी है. रखा है. आना ले जाना.’ चार नम्मर ई कह के अभी आगे बढ़ भी नईं पाए थे कि तब तक एक नम्मर का रेला आ गया. ई ओही एक नम्मर था जो न कभी अंदर झांकने का हिम्मत किया न बाहर खड़े होने का. लेकिन बाह रे भाग. इसे कहते हैं पुरुख के भाग. उसने मन ही मन सोचा और सलाम मारने के लिए बिलकुल अटेंसन की मुद्रा में खड़ा हो गया.
स्वागतम.
ReplyDeleteबहुत अच्छे नंबर देना भाई.
bhai vah vah vah vah
ReplyDeletejai ho aapki
maza aa gaya
badhai ho
एक अनार सौ बीमार लोग लाचार गरीब बे घर द्वार
ReplyDeleteBahut hi mazedaar charcha.
ReplyDeleteAABHAAR.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
देश का क्या होगा..?
ReplyDeleteवही होगा जो मंजूर-ए-नेता होगा....
ReplyDeleteबाह! बाह! बाह!
ReplyDeleteई बाह बाह हमरे तरफ से.
अब एक ठो शिकायत है. छत्तीस नम्मर का. हमसे बोले कि आपका बिलाग पर दर्ज कर दूँ. ऊ बोले हैं;
"हम छत्तीस नम्मर बोल रहा हूँ. हमरे बारे कब्बो लिखेंगे? लेकिन कौनो बात है नाही. पुरुख का भाग का पता त पता नहीं चलता, मानते हैं....लेकिन हमरे भाग का?"
का बतायें, यहां तो पी.एम. इन भेटिंग रह जाते हैं। यहां तो जनता भी निघरघट है। जोग्यता समझती ही नहीं।
ReplyDeleteभेटिंग के ई खेल का कौनो अंत नहीं
ReplyDeleteभाई इष्टदेव जी,
ReplyDeleteआपका व्यंग्य अच्छा और प्रासंगिक है. आजकल ढेर सारे नेताओं का यही हाल है. एक बार फिर बधाई
भाई शिवकुमार जी
ReplyDeleteसबसे पहिले तो आपको धन्यबाद बाहबाही के लिए. रही बात 36 नम्मर के शिकायत की त भाई ओनके त सिकाइत करनी ही नईं चहिए. अरे 36 माने 6 बेर 6 और आप जानबे करते हैं कि ज़माना आजकल उनही के है. उनके भाग भगवान रामचन्द्र जी खोलि गए हैं. उ जब बनबास जा रहे थे तब इ लोग पीछे लग गए थे. तबे भगवान कहे कि भाई अब लोग जाव, कलजुग में तु लोग के राज मिलेगा 14 साल के लिए. मोस्किल ई है कि हम तो सोच रहे थे कि हमरे यानी मनई वाले बरस से 14 बरस है, लेकिन मामला कंफुजिया गया. भगवान इनको अपने बरस से 14 बरस दे दिए. अब देखिए कब तक इनका भाग चटका रहता है! इनका कुछ नरम पड़े तब न पुरुख के भाग......
अरे वाह, मजा आ गया। जमकर लिखा है भाई....नंबर और भेंटिग का खेल
ReplyDeleteBada goodharth chipa hai is katha mrn.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }