अथातो जूता जिज्ञासा-15
जूते के प्रताप की सीमा यहीं सम्पन्न नहीं हो जाती है. नज़र उतारने या बुरी नज़र से अपने भक्तों को बचाने की जूता जी सामर्थ्य तो उनकी शक्तिसम्पन्नता की एक बानगी भर है. वस्तुतः उनकी कूवत इस सबसे भी कहीं बहुत ज़्यादा है. पता नहीं आधुनिक विज्ञान वालों ने अभी मान्यता दी या नहीं, लेकिन सच यह है कि कई दारुण किस्म के रोगों के इलाज में भी जूता जी का प्रयोग धडल्ले से किया जाता है.
आप ठीक समझ रहे हैं. मेरा इशारा मिरगी नामक रोग की ओर ही है. नए ज़माने के पढे-लिखे टाइप समझे जाने वाले लोग फिट्स कहते हैं. पता नहीं इसे फिट्स कहना वे कितना फिट समझते हैं, लेकिन एक बात ज़रूर है और वह यह कि फिट के इस बहुवचन का प्राथमिक उपचार वे भी जूते से ही करते हैं. यक़ीन मानिए, जूते का ऐसा भी उपयोग हो सकता है, यह अपने पिछडे गाँव में रहते हुए मुझे मालूम नहीं हो पाया. जूता जी की इस सामर्थ्य का पता मुझे तब चला जब मैं शहर में आया.
हुआ यों कि एक दिन एक सरकारी दफ्तर में एक सज्जन को फिट्स पड गया. पहले तो लोगों ने यह समझा कि वह शायद फिट हो गए हैं. ऐसा लोगों ने इसलिए समझा क्योंकि वे सज्जन ऐसे लोगों में शामिल थे जिनके लिए खाने से ज़्यादा पीना ज़रूरी था. तो लोगों को पहले यही लगा. लेकिन थोडी ही देर में जब उनके मुँह से झाग निकलने लगी तो लोगों को यह लगा कि अब शायद मामला पीने से बहुत आगे बढ चुका है. और यह अन्दाजा होते ही पूरे दफ्तर में अफरा-तफरी मच गई. उस वक़्त उस दफ्तर में उनके सहकर्मियों से ज़्यादा परेशान मैंने चाय-पान के उस छोटे दुकानदार को देखा जिसके यहाँ उनका खाता चलता था.
ख़ैर उसके ही सुझाव पर पहले तो एक सरकारी डॉक्टर साहब को बुलाया गया. मैने सुना था कि वह डॉक्टर साहब डॉक्टरी विद्या रूस से पढकर आए थे. आने के बाद बहुत देर तक तो डॉक्टर साहब अपना आला, ठंढामीटर और पता नहीं क्या-क्या लगा कर क्या-क्या तो देखते रहे, पर कुछ अन्दाजा लगा नहीं पाए कि आखिर इनको जो हुआ है उसे क्या नाम दिया जाए और इन्हें उसके इस प्रकोप से बचाने यानी कि होश में ले आने के लिए क्या किया जाए. इस बीच वह लगातार छटपटाते रहे और मुँह से झाग फेंकते रहे.
आखिरकार उसी दुकानदार के सुझाव पर उन्हें जूता सुंघाया गया. हालांकि उन्हें जूता सुंघाए जाने का पहले उनके कुछ सहकर्मियों ने विरोध भी किया, पर जब डॉक्टर साहब ने कह दिया कि भाई एक बार करके देखो तो सही. क्या पता कुछ फायदा कर ही जाए, तब भाई लोगों ने उन्हें जूता सुंघाया. जूता सूंघने से वह होश में तो नहीं आए, पर इतना ज़रूर हुआ कि उन्होंने छटपटाना और झाग फेंकना बंद कर दिया. इसके बाद उन्हे अस्पताल ले जाया गया और वहाँ जो कुछ भी हुआ हो उसका साक्षी बनने के लिए मैं वहाँ मौजूद नहीं था.
हालांकि उस वक़्त वहाँ जूता सुंघाने से उनकी हालत में जो सुधार आया था, उस पर मुझे कतई कोई यक़ीन इसलिए नहीं हुआ क्योंकि तब मैं भी ख़ुद को पढा-लिखा मानता था. पहले तो मुझे लगा कि शायद यह जूते का प्रताप नहीं, बल्कि इनकी जीवनलीला की वैलिडिटी का मामला है, पर थोडे दिनों बाद जब उन्हें मैंने दुबारा घूमते पाया तो समझ गया कि उनकी ज़िंदगी फिरसे रिचार्ज होकर आ गई है और यह सब काफ़ी हद तक जूता जी का ही पुण्य प्रताप है.
फिर जब उसी दफ्तर की कैंटीन में बैठे-बैठे एक दिन उनके ही बहाने जूता जी के प्रताप की चर्चा शुरू हुई तो मालूम हुआ कि यह तो सिर्फ़ एक बानगी थी. जूता जी इसके अलावा भी कई अन्य रोगों में उपयोगी साबित होते हैं. एक सज्जन ने बताया कि हांफा-डांफा नामक रोग में भी जूता जी को रोगी के सिर पर से फेर कर उतारा जाता है और इससे आश्चर्यजनक रूप से लोग स्वस्थ होते देखे गए हैं. बताते चलें कि यह जानकारी देने वाले भी वही सज्जन थे जो अपने फिटग्रस्त सहकर्मी को जूता सुंघाए जाने के प्रबल विरोधियों का नेतृत्व कर रहे थे.
(चलते चलिए.....)
लगता है जूता जिज्ञासा कथा चर्चा में देर से पहुँचा हूँ ??
ReplyDeleteचलिए फ़िर आ कर पूरा समय दे कर पढता हूँ जनाब !!
अरे वाह !!! और भी है !!!!
ReplyDeleteकोई बात नहीं प्रवीण जी. कहते हैं, देर आयद दुरुस्त आयद. अब से जुडे इस जूताशोधी समुदाय में. आशा है आप भरपूर आनन्द लेंगे और देश के निर्माण में जूता जी की महती भूमिका को समझते हुए भविष्य में यथोचित उपयोग करेंगे.
ReplyDeleteधन्यवाद.
संगीता जी! अभी तो बहुत है. मैने देश-विदेश में चतुर्दिक फैली जूता संस्कृति पर बहुत गहन अध्ययन और शोध किया है और इस शोध बडे महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले हैं. अब आप तो जानती ही हैं, कोई ज्ञान अपने पास तक रखने से क्या फ़ायदा? इसी भावना के तहत मैं उसे सब्नको बांट देना चाहता हूँ.
ReplyDeleteमिर्गी में जूता सूंघना आम बात है. हम तो आपके इस पुराण का ई-बुक बनाने की सोच रहे हैं. आभार.
ReplyDeletebaat to sahi joote ki chikitsaa vigyaan me parangatata ka pata to isi baat se chalta hai ki flemming ke aawiskaar se pehle hi joota penicillin kaa lep lagaya karta tha,afsos ki joote ko noble naa mila.khair jootaa to khud apneaap me award hai use kya aawashyakta..
ReplyDeletepar aap jaise jootawetta se poochnaa chaahoonga ki in netaaon ki har ati ateet ke andhakaar me antardhaan hoti chali jaa rehi hai..inkaa joota-haar aur jutaa-aahaar se sammanjanak ilaaz jootaa maharaaz kab karenge?
बेशक कुछ बदले या न बदले लेकिन हमें कोशिश तो करनी चहिये। एक दिया अगर ये सोच ले की उसके जलने से सारी दुनिया नही रोशन होगी तो यकीं मानिये दुनिया में बहुत अंधेरा हो जाएगा।
ReplyDeleteभाई एनॉनिमस जी और राहुल जी
ReplyDeleteशुक्रिया आपके उत्तम विचारों के लिए. लगता है, बात पूरी करने से पहले ही आप लोग समझने लगे कि मैं क्या कहना चाहता हूँ. यह तो बहुत अच्छी बात है. आइए, हम सब इस मसले पर खुल कर च्रर्चा करें और बात को बढाएं, इस हद तक कि वास्तव में हमारा उद्देश्य सफल हो.
ख़ास एनॉनिमस भाई के लिए
आप अगर ब्लॉग जगत से बाहर के पाठक हैं तो भी कम से कम अपना ई मेल आई डी तो दे ही सकते हैं. मैं ऐसे क्रांतिधर्मी विचारों वाले मित्रों से सम्पर्क रखना पसन्द करता हूँ.
Anpadhon ,gaanv dehaat walon ko mirgi ke liye joota sunghate to dekha suna hai,parantu padhe likhe logon ke aise krity par aashchary hota hai.
ReplyDeleteभई इष्टदेव जी, हमे तो पता ही नहीं चला इस जूता पुराण के 14 अध्याय भी समाप्त हो चुके हैं.
ReplyDeleteइसका मतलब कि हम तो कथा के पूर्ण पुण्य फल प्राप्ति से वंचित ही रह गए.
खैर बाद में फुरसत में आकर इसके बाकी अध्यायों के पाठन का सौभाग्य प्राप्त करेंगें.
रंजना जी!
ReplyDeleteमैंने तो पढे-लिखों को वो-वो करते देखा है, जो जानकर गांव के अनपढ हंसते हैं. मैंने प्रगतिशील कवियों-आलोचकों को सत्यनारायण व्रत कथा सुनते देखा है, पार्टी कॉमरेड के दर्वाज्जे परघोडे की नाल चढी देखी है और क्या-क्या कहूँ! कभी तफसील से कहूंगा.
dhanyawaad isht jee ,batangar ke baat banaawe koi roura se sikhe!abhi ta filhaal humaar kono id astitva me naikhey filhaal hum 23saal ke wichaarloki bhoote baani...lagale prakat hoeeb.
ReplyDeleteजनाब जूते का इतना महात्म्य है तो हिन्दुस्तानी जनता प्रदर्शनों में मोमबत्ती का प्रयोग क्यों करती है जो बेकार सिद्ध हो रहा है ?
ReplyDeleteजी जी क्यों नहीं!!!!
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